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क्या हस्तमैथुन 'सही सम्भोग' नहीं है?

यौनपरक संवेदना के लिए जब व्यक्ति स्वयं उत्तेजना जगाता है तब उसे हस्तमैथुन कहा जाता है। हस्तमैथुन शब्द के प्रयोग से सामान्यतः यही समझा जाता है कि वह स्त्री या वह पुरूष जो कामोन्माद की चरमसीमा का तीव्र आनन्द पाने के लिए अपनी जननेन्द्रियों से छेड़छाड़ करता है। चरमसीमा का अभिप्राय उस परम उत्तेजना की स्थिति से है जिसेमें जननेन्द्रिय की मांस पेशयां चरम आनन्द देने वाली अंगलीला की कड़ी में प्रवेश करती हैं।

क्या हस्तमैथुन सामान्य बात है?
हां, हस्तमैथुन प्राकृतिक आत्म अन्वेषण की स्वभाविक प्रक्रिया और यौन भावाभिव्यक्ति है।
क्या यह सत्य है कि हस्तमैथुन 'सही सम्भोग' नहीं है। और केवल असफल लोग हस्तमैथुन करते हैं?
नहीं, यह सत्य नहीं है। कुछ यौन विशेषज्ञों के अनुसार जो लोग हस्थमैथुन करते हैं वे साथी के साथ यौन - सम्भोग करते समय बेहतर कार्य करतें हैं क्योंकि अपने शरीर को जानते हैं और उनकी कामाभिव्यक्ति सन्तुष्ट होती है।

क्या हस्तमैथुन से विकास रूक जाता है या गंजापन उम्र से पहले आ जाता है?
यह सही नहीं है।

स्त्री हस्तमैथुन कैसे करती है?
स्त्री अपनी योनि को हिलाना या रगड़ना शुरू करती है खासतौर पे वे अपने भगशिश्न को अपनी पहली या मध्यम अंगुली से हिलाती है | 

कभी कभी योनि के अन्दर 1 या ज्यादा अंगुलिया डालकर उस हिस्से को हिलाना शुरू करती है। जिस स्थान पर जी बिन्दु या जी स्पाट होता है इसके लिए वे वाइब्रेटर,डिल्डो या बेन वा गेंदों का सहारा भी लेती है, बहुत सी महिलाए इसके साथ साथ अपने वक्षो को भी रगड़ती है, कुछ महिलाए गुदा को भी उत्तेजित करती है, कुछ इसके लिए चिकनाई का प्रयोग करती है लेकिन बहुत सी महिलाए प्राक्रतिक चिकनाई को ही काफी समझती है

कुछ महिलाए केवल विचार और सोच मात्र कर के ही मदनोत्कर्श तक पहुँच जाती है, कुछ महिलाए अपनी टाँगे कस के बंद कर लेती है और इतना दबाव बना लेती है जिस से उन्हें यौनसुख अनुभव हो जाता है | कई महिलाये ये काम सार्वजनिक स्थानों पे बिना किसी की नजर में आए कर लेती है

इस क्रिया को महिलाए बिस्तर पे सीधी या उल्टी लेट कर कुर्सी पे बैठ कर, खड़े रह कर या उकडू बैठ कर करती है लेकिन वह क्रिया जिसे बिना शारीरिक संपर्क के पूरा किया जाता है इस श्रेणी में नही आती है

परस्पर हस्तमैथुन 
जब स्त्री-पुरूष दोनो एक दूसरे को यौन सुख देने हेतु एक दूसरे का हस्तमैथुन करते है तो उसे यह नाम दिया गया है

मां लक्ष्मी की पूजा हेतु प्रमुख पूजन सामग्री एवं आरती


दीपावली का पर्व 13 नवंबर 2012, मंगलवार को है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस पूजा में कुछ वस्तुओं का होना बहुत जरुरी माना जाता है क्योंकि ये वस्तुएं मां लक्ष्मी को अति प्रसन्न हैं। इन चीजों में घर में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में सफलता मिलती है। इनमें से प्रमुख 7 चीजें इस प्रकार हैं-   
  
1. स्वास्तिक- 
लोक जीवन में प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व दीवार पर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम इन चारों दिशाओं को दर्शाती स्वास्तिक की चार भुजाएं, ब्रह्मïचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमों का प्रतीक मानी गई हैं। यह चिह्नï केसर, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है।

2. वंदनवार- 
अशोक, आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे दीपावली के दिन पूर्वी द्वार पर बांधा जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की वंदनवार पूरे 31 दिनों तक बंधी रखने से घर-परिवार में एकता व शांति बनी रहती हैं।

3. कौड़ी- 
लक्ष्मी पूजन की सजी थाली में कौड़ी रखने की प्राचीन परंपरा है, क्योंकि यह धन और श्री का पर्याय है। कौड़ी को तिजौरी में रखने से लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।

4. बताशे या गुड़- 
ये भी ज्योति पर्व के मांगलिक चिह्न हैं। लक्ष्मी-पूजन के बाद गुड़- बताशे का दान करने से धन में वृद्धि होती है।

5. ईख (गन्ने)- 
लक्ष्मी की एक सवारी हाथी भी है और हाथी की प्रिय खाद्य सामग्री ईख यानी गन्ना है। दीपावली के दिन पूजन में ईख शामिल करने से ऐरावत प्रसन्न रहते हैं और उनकी शक्ति व वाणी की मिठास घर में बनी रहती है।

6. ज्वार का पोखरा- 
दीपावली के दिन ज्वार का पोखरा घर में रखने से धन में वृद्धि होती है तथा वर्ष भर किसी भी तरह के अनाज की कमी नहीं आती। लक्ष्मी के पूजन के समय ज्वार के पोखरे की पूजा करने से घर में हीरे-मोती का आगमन होता है।

7. रंगोली- 
लक्ष्मी पूजन के स्थान तथा प्रवेश द्वार व आंगन में रंगों के संयोजन के द्वारा धार्मिक चिह्नï कमल, स्वास्तिक कलश, फूलपत्ती आदि अंकित कर रंगोली बनाई जाती है। कहते हैं कि लक्ष्मीजी रंगोली की ओर जल्दी आकर्षित होती हैं।

टैक्स बचाने के नुस्खे

अगर महिलाएं काम कर रही है तो परिवार को कुछ फायदे जरूर मिलते हैं। चलिए ऐसे ही कुछ प्रावधानों पर बात करते हैं जो उनकी कर-बचत में सहायक हो सकते हैं।

शिक्षा संबंधी खर्च
आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत एक व्यक्ति किसी विश्वविद्यालय, स्कूल और शैक्षिक संस्थान में किए गए खर्च पर टैक्स छूट का फायदा उठा सकता है। इसके लिए भारत में फुल टाइम शिक्षा पर एक लाख रुपये तक छूट का फायदा मिलता है। इसमें पीपीएफ, जीवन बीमा और पीएफ जैसी चीजें शामिल हैं।


हालांकि, यह छूट केवल दो बच्चों के लिए ही उपलब्ध है। तो अगर दो से ज्यादा बच्चे हों तो कामकाजी पत्नी टैक्स छूट का फायदा क्लेम कर सकती है क्योंकि बच्चों की सीमा प्रति करदाता पर निर्भर करती है न की प्रति परिवार पर। यहां तक कि अगर परिवार में दो ही बच्चे हों और शिक्षा का खर्च सालाना एक लाख रुपये से ज्यादा हो तो एक लाख रुपये की सीमा बनाए रखने के लिए इसे पति-पत्नी दोनों के बीच बांटा जा सकता है।


मेडिकल इंश्योरेंस
आयकर अधिनियम की धारा 80डी के मुताबिक एक करदाता मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम के भुगतान पर 15,000 रुपये तक की टैक्स छूट का फायदा उठा सकता है। हालांकि, आजकल स्वास्थ्य संबंधी खर्चों को देखते हुए मेडिकल इंश्योरेंस पर 15,000 रुपये की टैक्स छूट की सीमा पर्याप्त नहीं है। इतना ही नहीं 15,000 रुपये की छूट में से 5,000 रुपये की छूट प्रिवेंटिव हेल्थ चेकअप पर मिलती है।


तो व्यक्ति को वास्तविक टैक्स छूट केवल 10,000 रुपये की ही मिल रही है। अगर पति ही एकमात्र करदाता है तो धारा 80डी के तहत 15,000 रुपये से अधिक राशि पर हेल्थ इंश्योरेंस के टैक्स छूट का फायदा क्लेम नहीं किया जा सकता है। हालांकि अगर पत्नी भी नौकरीपेशा हो तो पॉलिसी की खरीदारी और प्रीमियम का भुगतान इस तरह से किया जा सकता है जिससे पत्नी और पति दोनों को ही टैक्स छूट का पूरा फायदा मिले।


लोन रिपेमेंट के फायदे
धारा 80सी के तहत एक करदाता कई आइटम पर टैक्स छूट का फायदा क्लेम कर सकता है। इसके अंतर्गत लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम, प्रोविडेंट फंड, हाउसिंग लोन के रीपेमेंट पर जरूरी छूट का फायदा उठाया जा सकता है। प्रॉपर्टी की कीमतों में काफी इजाफा हुआ है। ऐसे में होम लोन के रिपेमेंट के ज्यादातर मामलों में मूलधन एक लाख रुपये से ज्यादा ही होता है।


यही कारण है कि होम लोन लेने वाले ज्यादातर कर्जदार धारा 80सी के तहत लोन रिपेमेंट पर पूरा फायदा क्लेम नहीं कर पाते हैं। इस तरह की स्थिति में अगर केवल पति ही नौकरीपेशा है तो इसका फायदा ठीक तरह से मिल नहीं पता है। अगर पत्नी भी नौकरीपेशा हो और प्रॉपर्टी में को-ओनर भी हो तो होम लोन पर टैक्स छूट का फायदा मिलकर उठाया जा सकता है।


हाउस प्रॉपर्टी के संबंध में फायदे
घर के संबंध में टैक्स छूट के फायदे के लिए मौजूदा योजना के मुताबिक व्यक्ति के पास अपने इस्तेमाल के लिए एक प्रॉपर्टी हो सकती है जिस पर कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ेगा। अगर किसी स्थिति में व्यक्ति एक से ज्यादा प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करता है तो भी उसे टैक्स नोशनल रेंट के आधार पर देना होगा चाहे उसे कुछ भी किराया न मिला हो।


ऐसे में अगर पत्नी भी नौकरीपेशा हो तो दूसरी प्रॉपर्टी को पत्नी के नाम किया जा सकता है। पति और पत्नी के बीच दो प्रॉपर्टी को सेल्फ ओक्यूपाइड प्रॉपर्टी की श्रेणी में डाला जा सकता है और इस पर कोई नोशनल रेंट भी नहीं देना पड़ेगा।
ठीक उसी तरह टैक्स कानून के अंतर्गत एक रेजीडेंशियल प्रॉपर्टी पर वेल्थ टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है। अगर करदाता एक से ज्यादा रेजीडेंशियल प्रॉपर्टी हासिल कर लेता है तो उसे दूसरे घर के मूल्य पर वेल्थ टैक्स अधिनियम के तरह ाना होगा।


तो अब तक की बातों से एक चीज साफ हो गई कि महिलाओं के लिए अलग से टैक्स छूट का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि, वह मौजूदा टैक्स प्रावधानों के तहत ही टैक्स छूट का फायदा उठा सकती हैं और अपने परिवार की टैक्स देनदारी कम कर सकती हैं।

Romance in office



आज का युवा वर्ग अपना अधिकांश समय ऑफिस में व्यतीत करता है और ऐसे में वर्किग प्लेस उनका दूसरा घर बन जाता है, क्योंकि कामकाजी युवा ऑफिस में 9 से 10 घंटे अपना समय देते हैं।

सामान्यत: ऑफिस में रोमांस होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन ऐसे में आपको अपने दायित्वों को ठीक से निभाना जरूरी हो जाता है।

नीचे दी गई कुछ बातें उन लोगों की मदद कर सकती है जिन्हें ऑफिस में अपने किसी साथी से प्यार हो गया है।

ऐसे रिश्ते की शुरुआत में यह महत्वपूर्ण है कि सामने वाला भी आप में दिलचस्पी ले रहा या नहीं। कोशिश करें कि समाने वाले की तरफ से भी ऐसा कोई इशारा आपको मिले।

अगर कॉफी हाऊस में बैठे हैं और वह किसी प्लान पर आपके विचार जानने के लिए कहता है तो इसका मतलब है कि आपके विचार उसके लिए महत्वपूर्ण है।

ऑफिस रोमांस को समझने के भी कुछ नुस्खे...


  • जब दो लोग हर घंटे बाद कॉफी ब्रेक की जरूरत महसूस करें तो समझ लें कि दोनों के बीच कुछ हो रहा है।
  • जब कर्मचारी कपड़े लैटेस्ट डिजाइन के और नए-नए पहनकर दफ्तर आने लगें और दिवाली या ईद आसपास न हो तो समझो प्रेम पर बहार आई हुई है।
  • जब दो लोग साथ आते हों और साथ जाते हों तो यह महज इत्तेफाक नहीं है भले ही वे यह दिखाने की कोशिश कर रहे हों कि वे आपस में अजनबी हैं।
  • जब बार-बार मोबाइल पर एसएमएस आने लगें या हर आधा घंटे बाद मैसेंजर एलर्ट ई-मेल का संकेत देता हो तो समझ लें दो दिल धड़क रहे हैं।

नवरात्रि कल : घट स्थापना के शुभ मुहूर्त | 16-10-2012

घट स्थापना के शुभ मुहूर्त- 
16 October 2012 | Tuesday
  • सुबह 06:31 से 08:47 तक (चर लग्न तुला) 
  • सुबह 08:47 से 11:02 तक (स्थिर लग्न वृश्चिक) 
  • सुबह 09:18 से 10:45 तक (चर का चौघडिय़ा) 
  • सुबह 10:45 से दोपहर 12:12 तक (लाभ का चौघडिय़ा) 
  • दोपहर 11.49 से 12:35 (अभिजीत मुहूर्त) 
  • दोपहर 12:12 से 01:38 तक (अमृत का चौघडिय़ा) 
  • शाम 07:38 से रात 09:36 तक (स्थिर लग्न वृषभ)
विधि :
पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी शक्ति के अनुसार बनवाए गए सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति की प्रतिष्ठा करें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वस्तिक और उसके दोनों कोनों में बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। पूजन सात्विक हो, राजस या तामसिक नहीं, इस बात का विशेष ध्यान रखें। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

ऑफिस में आपका पहनावा।


समय के साथ ऑफिस का कल्चर भी बदला है। ऑफिस में मेहनत और लगन से काम करना ही सफलता के लिए काफी नहीं है। आपको कई दूसरी चीजों का भी ध्यान रखना होता है और इनमें अहम होता है ऑफिस में आपका पहनावा। कपड़े ही आपका स्टाइल स्टेटमेंट होते हैं। ये आपकी सोच, ऊर्जा और फिटनेस के साथ-साथ काम करने के तरीके को भी बताते हैं। इन बातों को अपनाकर ऑफिस में बनाइए अपनी खास पहचान..

अलग हो आपका अंदाज
आमतौर पर बड़े और कॉरपोरेट ऑफिस में ड्रेस कोड होता है। ऐसे में आपके पास विकल्प सीमित होते हैं लेकिन जहां ड्रेस कोड नहीं है वहां आपको भीड़ से अलग दिखने की जरूरत है। इसके लिए कभी भी अपने कपड़ों या एसेसरीज को ऑफिस के इंटीरियर या कंपनी के लोगो के साथ मैच करके न पहनें। ऐसा करने से आप ऊर्जावान के साथ-साथ फिट महसूस करेंगे, जो आपकी प्रोफेशनल लाइफ के लिए बहुत जरूरी है।

व्यावहारिक हो एसेसरीज
एग्जीक्यूटिव क्लास के लोगों को उन एसेसरीज का इस्तेमाल करना चाहिए जो साधारण और व्यावहारिक हों जैसे एक अच्छी घड़ी, एक स्लिमफिट कैरी बैग। उन्हें धार्मिक चिन्हों, धागों, ब्रेसलेट और अंगूठियों का प्रदर्शन करने से बचना चाहिए। लोगों के बीच अपनी पहचान काम के आधार पर बनाएं, धर्म या मान्यताओं के आधार पर नहीं।

अपनी स्टाइल बनाएं
उन ब्रैंड, कट्स और प्रिंट या रंग के कपड़े पहनने से बचें जो आपके बॉस, मेंटर या साथी काम पर पहन के आते हैं। ऐसा करने से आपकी छवि कॉपी करने वालों की बनती है। अच्छा यह है कि आप सबसे अलग दिखें और ऑफिस में अपना नया स्टाइल बनाएं, जिसे कोई दूसरा कॉपी करे।

जोशीले हों आपके रंग
ऑफिस में उत्साहित और ऊर्जावान दिखना काफी अहम होता है। इसके लिए जरूरी शारीरिक और मानसिक फिटनेस की झलक आपके पहनावे में दिखती है। ऐसे में आप हफ्ते की शुरुआत चटख रंगों से करें। चटख रंग जोश, उत्साह और सकारात्मक सोच के प्रतीक होते हैं। पुरुषों के लिए गाढ़ी नीली, काली, जामूनी रंग की शर्ट अच्छी होगी, जबकि महिलाएं लाल, बैगनी, पिंक, ग्रे रंगों का चुनाव कर सकती हैं। जैसे-जैसे हफ्ता आगे बढ़ता जाए थोड़े हलके रंगों का इस्तेमाल करें। ऑफिस प्रोटोकॉल में कोई दिक्कत न हो तो शुक्रवार या शनिवार को आप कैजुअल ड्रेस से कर सकते हैं।

साफ-सफाई का रखें ध्यान
अच्छे कपड़े के अलावा ऑफिस एटिकेट्स भी काफी जरूरी चीज होती है। आप यह सुनिश्चित करें कि आपके शरीर से बदबू न आए और आपकी त्वचा, बाल और नाखुन स्वस्थ और साफ-सुथरे दिखें। पब्लिक डिलिंग का काम है तो इसका खास ख्याल रखें। अपना हाव-भाव अच्छा बनाए रखें, कंधों को सीधा रखकर चलें, बातचीत का अंदाज अच्छा हो और बातचीत करने के अपने कौशल को बढ़ाना न भूलें।

नामकरण संस्कार

नामकरण शिशु जन्म के बाद पहला संस्कार कहा जा सकता है । यों तो जन्म के तुरन्त बाद ही जातकर्म संस्कार का विधान है, किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में वह व्यवहार में नहीं दीखता । अपनी पद्धति में उसके तत्त्व को भी नामकरण के साथ समाहित कर लिया गया है । इस संस्कार के माध्यम से शिशु रूप में अवतरित जीवात्मा को कल्याणकारी यज्ञीय वातावरण का लाभ पहँुचाने का सत्प्रयास किया जाता है । जीव के पूर्व संचित संस्कारों में जो हीन हों, उनसे मुक्त कराना, जो श्रेष्ठ हों, उनका आभार मानना-अभीष्ट होता है । नामकरण संस्कार के समय शिशु के अन्दर मौलिक कल्याणकारी प्रवृत्तियों, आकांक्षाओं के स्थापन, जागरण के सूत्रों पर विचार करते हुए उनके अनुरूप वातावरण बनाना चाहिए । 

शिशु कन्या है या पुत्र, इसके भेदभाव को स्थान नहीं देना चाहिए । भारतीय संस्कृति में कहीं भी इस प्रकार का भेद नहीं है । शीलवती कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है । 'दश पुत्र-समा कन्या यस्य शीलवती सुता ।' इसके विपरीत पुत्र भी कुल धर्म को नष्ट करने वाला हो सकता है । 'जिमि कपूत के ऊपजे कुल सद्धर्म नसाहिं ।' इसलिए पुत्र या कन्या जो भी हो, उसके भीतर के अवांछनीय संस्कारों का निवारण करके श्रेष्ठतम की दिशा में प्रवाह पैदा करने की दृष्टि से नामकरण संस्कार कराया जाना चाहिए । यह संस्कार कराते समय शिशु के अभिभावकों और उपस्थित व्यक्तियों के मन में शिशु को जन्म देने के अतिरिक्त उन्हें श्रेष्ठ व्यक्तित्व सम्पन्न बनाने के महत्त्व का बोध होता है । 

भाव भरे वातावरण में प्राप्त सूत्रों को क्रियान्वित करने का उत्साह जागता है । आमतौर से यह संस्कार जन्म के दसवें दिन किया जाता है । उस दिन जन्म सूतिका का निवारण-शुद्धिकरण भी किया जाता है । यह प्रसूति कार्य घर में ही हुआ हो, तो उस कक्ष को लीप-पोतकर, धोकर स्वच्छ करना चाहिए । शिशु तथा माता को भी स्नान कराके नये स्वच्छ वस्त्र पहनाये जाते हैं । उसी के साथ यज्ञ एवं संस्कार का क्रम वातावरण में दिव्यता घोलकर अभिष्ट उद्देश्य की पूर्ति करता है । 

यदि दसवें दिन किसी कारण नामकरण संस्कार न किया जा सके । तो अन्य किसी दिन, बाद में भी उसे सम्पन्न करा लेना चाहिए । घर पर, प्रज्ञा संस्थानों अथवा यज्ञ स्थलों पर भी यह संस्कार कराया जाना उचित है ।

यज्ञ पूजन विधि 

  • यज्ञ पूजन की सामान्य व्यवस्था के साथ ही नामकरण संस्कार के लिए विशेष रूप से इन व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए ।
  • यदि दसवें दिन नामकरण घर में ही कराया जा रहा है, तो वहाँ सयम पर स्वच्छता का कार्य पूरा कर लिया जाए तथा शिशु एवं माता को समय पर संस्कार के लिए तैयार कराया जाए ।
  • अभिषेक के लिए कलश-पल्लव युक्त हो तथा कलश के कण्ठ में कलावा बाँध हो, रोली से ॐ, स्वस्तिक आदि शुभ चिह्न बने हों ।
  • शिशु की कमर में बाँधने के लिए मेखला सूती या रेशमी धागे की बनी होती है । न हो, तो कलावा के सूत्र की बना लेनी चाहिए ।
  • मधु प्राशन के लिए शहद तथा चटाने के लिए चाँदी की चम्मच । वह न हो, तो चाँदी की सलाई या अँगूठी अथवा स्टील की चम्मच आदि का प्रयोग किया जा सकता है ।
  • संस्कार के समय जहाँ माता शिशु को लेकर बैठे, वहीं वेदी के पास थोड़ा सा स्थान स्वच्छ करके, उस पर स्वस्तिक चिह्न बना दिया जाए । इसी स्थान पर बालक को भूमि स्पर्श कराया जाए ।
  • नाम घोषणा के लिए थाली, सुन्दर तख्ती आदि हो । उस पर निर्धारित नाम पहले से सुन्दर ढङ्ग से लिखा रहे । चन्दन रोली से लिखकर, उस पर चावल तथा फूल की पंखुड़ियाँ चिपकाकर, साबूदाने हलके पकाकर, उनमें रङ्ग मिलाकर, उन्हें अक्षरों के आकार में चिपकाकर, स्लेट या तख्ती पर रङ्ग-बिरङ्गी खड़िया के रङ्गों से नाम लिखे जा सकते हैं । थाली, ट्रे या तख्ती को फूलों से सजाकर उस पर एक स्वच्छ वस्त्र ढककर रखा जाए । नाम घोषणा के समय उसका अनावरण किया जाए ।
  • विशेष आहुति के लिए खीर, मिष्टान्न या मेवा जिसे हवन सामग्री में मिलाकर आहुतियाँ दी जा सकें ।
  • शिशु को माँ की गोद में रहने दिया जाए । पति उसके बायीं ओर बैठे । यदि शिशु सो रहा हो या शान्त रहता है, तो माँ की गोद में प्रारम्भ से ही रहने दिया जाए । अन्यथा कोई अन्य उसे सम्भाले, केवल विशेष कर्मकाण्ड के समय उसे वहाँ लाया जाए । निर्धारित क्रम से मङ्गलाचरण, षट्कर्म, संकल्प, यज्ञोपवीत परिवर्तन, कलावा, तिलक एवं रक्षा-विधान तक का क्रम पूरा करके विशेष कर्मकाण्ड प्रारम्भ किया जाए ।
नाम रखते समय निम्न बातों का ध्यान रखें :-

  • गुणवाचक नाम रखे जाएँ।
  • महापुरुषों एवं देवताओं के नाम भी बच्चों के नाम रखे जा सकते हैं । 
  • प्राकृतिक विभूतियों के नाम पर भी बच्चों के नाम रखे जा सकते हैं । 
  • लड़के और लड़कियों के उत्साहवर्धक, सौम्य एवं प्रेरणाप्रद नाम रखने चाहिए । 
  • समय-समय पर बालकों को यह बोध भी कराते रहना चाहिए कि उनका यह नाम है, इसलिए गुण भी अपने में वैसे ही पैदा करने चाहिए ।

गणेश चतुर्थी का पर्व



गणेश चतुर्थी 
इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व 19 सितंबर, (बुधवार) 2012 को है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन घर-घर भगवान श्रीगणेश की स्थापना की जाती है और व्रत रखा जाता है। धर्म शास्त्रों में श्रीगणेश को प्रथम पूज्य व ज्ञान तथा बुद्धि का देवता माना गया है। सभी शुभ कार्यों से पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा का विधान है। 

गणेश उत्सव का पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है। इन दिनों में हर गली, मौहल्लों व चौराहों पर भी भगवान श्रीगणेश की स्थापना कर सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसे देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ता है। प्रमुख गणेश मंदिरों में दर्शन करने वालों का तांता लगा रहता है वहीं मंदिरों पर विशेष साज-सज्जा भी की जाती है। हर कोई अपने-अपने तरीके से भगवान श्रीगणेश की आराधना में जुट जाता है। श्रीगणेश को रोज लड्डू व मोदक का भोग लगाया जाता है।

महाराष्ट्र में गणेश उत्सव
महाराष्ट्र में गणेश उत्सव की रौनक देखते ही बनती है। यहां स्थापित की जाने वाली श्रीगणेश की विशालकाय मूर्तियां लोगों की श्रृद्धा व आकर्षण का केंद्र होती हैं।

10 दिन के बाद भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (इस बार 29 सितंबर, शनिवार) को पर्व का समापन होता है। भक्त घरों व सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित श्रीगणेश की मूर्तियों का प्रवाहित करते हैं और कामना करते हैं कि अगले साल फिर से भगवान श्रीगणेश सुख व समृद्धि लेकर उनके घर आएं। चतुर्दशी की रात्रि को आकर्षक झाकियां निकाली जाती हैं जो लोगों को मंत्र मुग्ध कर देती हैं। इसी के साथ गणेश उत्सव का समापन हो जाता है।

‘वास्तु’ से आप क्या समझते हैं ?

इससे पहले कि हम वास्तु के विभिन्न पहलुओं और हमारे मानसिक व शारीरिक हितों पर उनके प्रभाव की बात करें, यह उचित होगा कि इस प्राचीन विज्ञान के कुछ मौलिक तथ्यों के बारे में पाठकों को परिचित करा दिया जाए। 

‘वास्तु’ से आप क्या समझते हैं ?

  • ‘वास्तु’ शब्द संस्कृत ‘वास’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है—निवास करना। यह ‘वास्तु’ और ‘वासना’ शब्दों से भी संबंध रखता है। इसका अभिप्राय है—जीवन को इच्छाओं और वास्तविकता के अनुरूप जीना।

क्या आप साधारण शब्दों में बता सकते हैं कि वास्तुशास्त्र क्या है ?

  • यह प्रकृति के सिद्धांतों के अनुरूप जीने का प्राचीन विज्ञान है।

यह किस हद तक सही है कि वास्तु सिर्फ एक अंधविश्वास है ?

  • वास्तु ठोस सिद्धांतो पर आधारित है, जिनका वैज्ञानिक आधार मौजूद है।

वास्तु का मूल सिद्धांत क्या है

  • हमारा शरीर और यह पूरा ब्रह्मांड पाँच तत्त्वों—वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी और आकाश से बना है। इन सभी तत्त्वों का सही दिशाओं में संतुलन बनाए रखना ही वास्तु का सिद्धांत है।

क्या वास्तु एक धार्मिक पद्धति है, जो सिर्फ हिंदुओं को प्रभावित करता है ?

  • जिस प्रकार सूर्य की ऊर्जा प्रत्येक को लाभ पहुँचाती है उसी प्रकार वास्तु के सिद्धांत सभी मतों के लोगों को प्रभावित करते हैं।

क्या इसका धर्म से कोई संबंध है ?

  • धर्म जीने की एक राह है और वह हमारे जीने के तरीके के अनुरूप होता है। इस ब्रह्मांड में बहुत सी शक्तियां मौजूद हैं और वे सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा छोड़ती हैं। वास्तु नकारात्मक शक्तियों का मुकाबला करने और सकारात्मक शक्तियों को ग्रहण करने में मदद करता है।

क्या वास्तु का कोई आध्यात्मकि पक्ष भी है ?

  • बिलकुल। वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप जीने से शांति प्राप्त होती है, जो हमारी आत्मा और जैव विद्युत क्षेत्र को शक्ति देता है।

वास्तु में कितनी दिशाएँ हैं ?

  • दिशाएँ सिर्फ वास्तु में नहीं हैं बल्कि वे सूर्य से संबद्ध हैं। ये दिशाएँ हैं—पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम।

जाने तिल का महत्व


शरीर पर तिल होने का अपना ही एक महत्व होता है और इसको निम्न प्रकार समझा जा सकता है :

  • माथे पर होने पर बलवान
  • ठुड्डी पर  होने पर स्त्री से प्रेम न रहे
  • दोनों बांहों के बीच होने पर यात्रा होती रहे
  • दाहिनी आंख पर  होने पर स्त्री से प्रेम
  • बायीं आंख पर  होने पर स्त्री से कलह रहे
  • दाहिनी गाल पर  होने पर धनवान
  • बायीं गाल पर  होने पर खर्च बढता जाए
  • होंठ पर होने पर विषयवासना में रत रहे
  • कान पर होने पर अल्पायु हो
  • गर्दन पर  होने पर  आराम मिले
  • दाहिनी भुजा पर  होने पर  मानप्रतिष्ठा मिले
  • बायीं भुजा पर  होने पर झगडालू होना
  • नाक पर  होने पर यात्रा होती रहे
  • दाहिनी छाती पर  होने पर स्त्री से प्रेम रहे
  • बायीं छाती पर  होने पर स्त्री से झगडा होना
  • कमर में  होने पर आयु परेशानी से गुजरे
  • दोनों छाती के बीच  होने पर जीवन सुखी रहे
  • पेट पर  होने पर उत्तम भोजन का इच्छुक
  • पीठ पर होने पर प्राय: यात्रा में रहा करे
  • दाहिने हथेली पर होने पर बलवान हो
  • बायीं हथेली पर  होने पर खूब खर्च करे
  • दाहिने हाथ की पीठ पर  होने पर धनवान हो
  • बाएं हाथ की पीठ पर  होने पर कम खर्च करे
  • दाहिने पैर पे होने पर बुद्धिमान हो
  • बाएं पैर पे होने पर  खर्च अधिक हो

किचन और वास्तु



वास्तु और फेंगशुई (चीन का वास्तु) दोनों ही शास्त्रों में अनेक टिप्स बताई गई हैं जिनसे हमारा जीवन सुखी और समृद्धिशाली बना रहता है। घर का हमारे भाग्य पर सीधा-सीधा प्रभाव पड़ता है। यदि घर में कोई वास्तु दोष है तो इसकी वजह से घर के सभी सदस्यों को परेशानी उठाना पड़ सकती है।

यदि आपके घर के मुख्य दरवाजे से किचन में रखा गैस का चूल्हा दिखता है तो यह अशुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह एक छोटी सी बात है लेकिन इसके प्रभाव काफी बड़े-बड़े होते हैं। क्योंकि ऐसा होने पर नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रीय हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम हो जाता है। फेंगशुई शास्त्र नकारात्मक और सकारात्मक एनर्जी के सिद्धांतों पर ही कार्य करता है।

इसी वजह से घर के मुख्य दरवाजे से यदि किचन में रखा गैस का चूल्हा दिखाई देता है तो चूल्हे का स्थान बदल देना चाहिए। यदि ऐसा संभव ना हो तो किचन में परदा लगाकर रखें।

साथ ही किचन के संबंध में कई अन्य मुख्य बातें जो ध्यान रखनी चाहिए-

  • उत्तर दिशा में रसोई और पूर्व दिशा में दरवाजा बंद होने पर भी ऊर्जा असंतुलित हो जाती है।
  • पूर्व का दरवाजा खोल देने और किचन दक्षिण-पूर्व में कर देने से ऊर्जा का प्रवाह नियमित और संतुलित हो जाता है।
  • किचन खुला और हवादार होना चाहिए।

क्या है वर्चुअल ड्रेसिंग रूम



ऑनलाइन शॉपिंग के स्पेशल फीचर्स के तहत वर्चुअल ड्रेसिंग रूम लॉन्च किए गए हैं। दुनियाभर की कई फैशन वेबसाइट यह सुविधा प्रदान कर रही हैं। हालांकि भारत में अभी इस ट्रेंड को शुरू हुए बमुश्किल एक साल हुआ है, लेकिन इसकी बढ़ती लोकप्रियता ने रिटेल जगत में नई क्रांति ला दी है। बड़े-बड़े फैशन ब्रांड अब इसकी ओर ध्यान दे रहे हैं।

2010 में मैसी ने वर्चुअल मिरर ड्रेसिंग रूम लॉन्च किया। यूजर्स आईपैड और कंप्यूटर की मदद से इस टचस्क्रीन मिरर का इस्तेमाल कर सकते हैं। साइबर सिक्योरिटी को ध्यान में रखकर शॉपर्स को पासवर्ड सिक्योर इंटरनेट एक्सेस दी जाती है, ताकि उनके पर्सनल डिटेल लीक न हों। इस वेबसाइट पर यूजर खुद की लाइफसाइज वर्चुअल फिट इमेज देख सकता है।

वर्चुअल रूम के प्रकार

मोशन डिटेक्टर वर्चुअल ड्रेसिंग रूम
2006 में आईमैगनेट ने मोशन डिटेक्टर लॉन्च किए। 2007 में इनकी मदद से न्यूजीलैंड की एक रिटेल शॉप में वर्चुअल ड्रेसिंग रूम बनाया गया। इसमें एक कैमरा फिट किया गया, जो कस्टमर के मूवमेंट कैच कर सके। स्टोर में लगे टीवी स्क्रीन पर यूजर्स हाथ के मूवमेंट से ड्रेस, कलर चुनकर उसे ट्राय कर सकते हैं।

वीडियो वर्चुअल ड्रेसिंग रूम
वर्चुअल ड्रेसिंग रूम की सबसे ज्यादा एडवांस तकनीक यही है। इसमें यूजर घर बैठे अपने पसंदीदा आउटफिट को ट्राय करके देख सकता है।

वेब कैम वर्चुअल ड्रेसिंग रूम
2009 में जुगारा ने पहला ऑनलाइन वेब कैम वर्चुअल ड्रेसिंग रूम लॉन्च किया। इसमें यूजर मार्कर हाथ में लेकर वेब कैम पर खुद की फोटो लेते हैं। मार्कर को आगे-पीछे करके चुनी हुई ड्रेस खुद पर ट्राय की जा सकती है।

रोबोटिक वर्चुअल ड्रेसिंग रूम
एस्टोनिया कंपनी ने 2010 में फिट्समी नाम से पहला रोबोटिक वर्चुअल रूम शुरू किया। इसमें 2000 से ज्यादा रोबोट बॉडी शेप हैं, जो यूजर को उसके बॉडी शेप के अनुसार ड्रेस चुनने में मदद करते हैं।

कैसे होता है ये सब?
आप आईपैड, स्मार्टफोन या फिर वेब कैम के जरिए किसी भी ड्रेस को वर्चुअली ट्राय करके देख सकते हैं। यह सारा कमाल है एआर यानी ऑग्युमेंटेड रियलिटी का। एक ऐसी तकनीक जो कम्प्यूटर जनरेटेड सेंसेरी इनपुट की मदद से वर्चुअल वर्ल्ड तैयार करती है, या यूं कहें कि रियल वल्र्ड और वर्चुअल वर्ल्ड का अंतर खत्म करती है।

वह (आप) लिख सकती है ? प्रतियोगिता

अपने अन्दर छुपे हुए राईटर को दुनिया के सामने लाने का इससे अच्छा मौका और क्या मिलेगा । माइक्रोसोफ्ट ने अपने भारतीय MSN Special पेज पे भारतीय लेखिकाओ के लिए एक कांटेस्ट शुरू की है,  जिसके लिए -
1. आपका भारतीय होना जरूरी है ।
2. कम से कम 18 वर्ष की उम्र 01.01.2012 को होना आवश्यक है ।
3. अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है ।
  
सर्वश्रेष्ट 12 कहानियों को "Random House India in autumn 2012" में प्रकशित किया जावेगा । यदि आप भी इस कांटेस्ट में शिरकत करना चाहती है तो निचे लिखे किसी भी टोपिक पे एक बढ़िया सी कहानी लिखे और भेज दे माइक्रौसौफ़्ट को । ध्यान रखे की कहानी 5000 शब्दों से ज्यादा की ना हो पाए ।
कहानी लिखने के टोपिक -

a. Woman in the City
'Frankly my dear, I don't give a damn' - Gone With the Wind

b. Growing up in India
'Experience is the name every one gives to their mistakes' - Oscar Wilde

c. The Man in my Life
'Being with him made her feel as though her soul had escaped from the narrow confines of her island country into the vast, extravagant spaces of his.' - The God of Small Things

तो इंतज़ार किस बात का ! शुरू हो जाए और तुरन्त भेजे अपनी के प्यारी सी रजनात्मक कृति 12 जून 2012 से पहले ।

कहानी लिखने एवं भेजने के लिए यहाँ क्लिक करे 
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क्या आप भी है आँखों की कमजोरी से परेशान?



अगर आपको भी चश्मा लगा है तो आपका चश्मा उतर सकता है। नीचे बताए नुस्खों को चालीस दिनों तक प्रयोग में लाएं। निश्चित ही चश्मा उतर जाएगा साथ थी आंखों की रोशनी भी तेज होगी।
  • सुबह नंगे पैर घास पर मार्निंग वॉक करें।
  • नियमित रूप से अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें।
  • बादाम की गिरी, बड़ी सौंफ और मिश्री तीनों का पावडर बनाकर रोज एक चम्मच एक गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें।
  • त्रिफला के पानी से आंखें धोने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
  • पैर के तलवों में सरसों का तेल मालिश करने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
  • सुबह उठते ही मुंह में ठण्डा पानी भरकर मुंह फुलाकर आंखों पर छींटे मारने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

जीवन की सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं।



शास्त्रों के अनुसार गाय, पक्षी, कुत्ता, चींटियां और मछली से हमारे जीवन की सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। 

गाय को रोटी खिलाएं 
यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से गाय को रोटी खिलाएं तो उसके ज्योतिषीय ग्रह दोष नष्ट हो जाते हैं। गाय को पूज्य और पवित्र माना जाता है, इसी वजह से इसकी सेवा करने वाले व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं। 

पक्षियों को दाना डाले 
इसी प्रकार पक्षियों को दाना डालने पर आर्थिक मामलों में लाभ प्राप्त होता है। व्यवसाय करने वाले लोगों को विशेष रूप से प्रतिदिन पक्षियों को दाना अवश्य डालना चाहिए।

कुत्ते को रोटी
यदि कोई व्यक्ति दुश्मनों से परेशान हैं और उनका भय हमेशा ही सताता रहता है तो कुत्ते को रोटी खिलाना चाहिए। नियमित रूप से जो कुत्ते को रोटी खिलाते हैं उन्हें दुश्मनों का भय नहीं सताता है। 

चींटियों को शक्कर और आटा 
कर्ज से परेशान से लोग चींटियों को शक्कर और आटे डालें। ऐसा करने पर कर्ज की समाप्ति जल्दी हो जाती है।

मछली को आटे की गोलियां
जिन लोगों की पुरानी संपत्ति उनके हाथ से निकल गई है या कई मूल्यवान वस्तु खो गई है तो ऐसे लोग यदि प्रतिदिन मछली को आटे की गोलियां खिलाते हैं तो उन्हें लाभ प्राप्त होता है। मछलियों को आटे की गोलियां देने पर पुरानी संपत्ति पुन: प्राप्त होने के योग बनते हैं।

इन पांचों को जो भी व्यक्ति खाना खिलाते हैं उनके सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

दरवाजों की संख्या : वास्तु के सिद्धांत


वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए बनाया गया मकान, उसमें निवास करने वालों के जीवन की खुशहाली, उन्नति एवं समृद्धि का पतीक होता है। मकान में दरवाजे अहम भूमिका निभाते हैं। साधारणतया आम इंसान मकान में दरवाजों की संख्या के बारे में भ्रमित रहता है। क्योंकि वास्तु विषय की लगभग सभी पुस्तकों में दरवाजों की संख्या के बारे में विवरण दिया गया है कि मकान में दरवाजे 2, 4, 6, 8, 12, 16, 18, 22 इत्यादि की संख्या में होने चाहिए। जबकि व्यवहारिकता में दरवाजों की संख्या का कोई औचित्य व आधार ही नहीं है। मकान में दरवाजे आवश्यकता के अनुसार, वास्तु द्वारा निर्देशित उच्च स्थान पर लगाने से इससे शुभ फल पाप्त होते हैं। लेकिन इसके विपरीत नीच स्थल पर दरवाजे लगाने से इसके अशुभ परिणाम ही पाप्त होंगे।

      

उच्च स्थान पर दरवाजे लगाते समय यह भी ध्यान में रखा जाना अत्ति आवश्यक होता है कि मुख्य पवेश द्वार के सामने एक ओर दरवाजा लगाने पर ही यह दरवाजे शुभ फलदायक साबित होंगे। मुख्य द्वार के सामने एक ओर दरवाजा नहीं लगाने की स्थिति में एक खिड़की अवश्य ही लगानी चाहिए। ताकि मुख्य द्वार से आने वाली ऊर्जा मकान में पवेश कर सके। अन्यथा दरवाजे के सामने दरवाजा या खिड़की नहीं होने की स्थिति में यह ऊर्जा परिवर्तित हो जायेगी।

मकान के चारों तरफ वास्तु के सिद्धांत के अनुपात में खुली जगह छोड़ने का तात्पर्य भी यही है कि दरवाजों के माध्यम से इन ऊर्जा शक्तियों का मकान में निर्विघ्न पवेश हो सके। आमने-सामने दो दरवाजे ही रखने से अभीपाय यह है कि आमने-सामने दो से ज्यादा दरवाजे होने पर मकान में पवेश होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्ति में न्यूनता आती है। चित्र संख्या 1 में निर्देशित उच्च (शुभ) तथा चित्र संख्या 2 में निर्देशित नीच (अशुभ) स्थान पर दरवाजे लगाने से पाप्त होने वाले परिणाम :-


दिशाश्रेणीपरिणाम
पूर्वउच्चशुभ, उच्च विचार
पूर्व-ईशानउच्चसर्वश्रेष्ठ, शुभ व सौभाग्यदायक
पूर्व-आग्नेयनीचवैचारिक मतभेद, चोरी, पुत्रों के लिये कष्टकारी
पश्चिम-वायव्यउच्चशुभदायक
पश्चिम-नैऋतनीचआर्थिक स्थिति तथा घर के मुखिया के लिये अशुभ
उत्तर-ईशानउच्चआर्थिक फलदायक, श्रेष्ठ
उत्तर-वायव्यनीचधन हानि, चंचल स्वभाव, तनाव में वृद्धि
दक्षिण-आग्नेयउच्चअर्थ लाभ, स्वास्थदायक
दक्षिण-नैऋतनीचआर्थिक विनाशक, गृहणी की स्थिति कष्टपद
दक्षिण एवं पश्चिमउच्चशुभफलदायक
उत्तरउच्चसुखदायक

अकेलापन वही फील करते हैं , जो सोशलाइजेशन में इंटरेस्ट नहीं लेते



एक्सपर्ट्स की मानें तो , अकेलापन वही फील करते हैं , जो सोशलाइजेशन में इंटरेस्ट नहीं लेते। ऐसे में आप इसे स्थायी स्टेज मानने की बजाय , सोशल होने के लिए मोटिवेशन समझकर चलें।

थोड़ी तकलीफ भी
जब आप खुले दिल से मिलेंगे - जुलेंगे , तो गारंटी के साथ आपको थोड़ी तकलीफ भी मिलेगी। हर छोटी - बड़ी रिलेशनशिप में चुभन और टूटन के पल आते ही हैं। लेकिन दूसरों से कनेक्ट रहने के लिए यह भी झेलना ही होगा। क्योंकि इन्हीं से गुजरकर रिलेशनशिप में गहराई भी आती है। इसलिए गप्पें मारना शुरू कर दें। लास्ट वीकेंड आपने क्या किया , कौन - सी मूवी देखी , क्या पढ़ा ...! - जैसे टॉपिक्स पर बातें कर सकते हैं।

चीयरफुलनेस
अपने लुक्स में थोड़ा एक्सपेरिमेंट करें। लुक्स बोले तो , आपकी बॉडी लैंग्वेज। दरअसल , जो लोग खुद में खोए - खोए और उलझे - उलझे से दिखाई देते हैं , उनसे आस - पास वाले भी कन्नी काटने लगते हैं। जबकि चीयरफुलनेस सबको अट्रैक्ट करती है। जरूरी नहीं कि हैपीनेस के नाम पर आप बत्तीसियां दिखाते रहें। जब आप शांत और संतुष्ट दिखाई देते हैं , तब भी पर्सनैलिटी आकर्षक लगती है।

' ना ' कहें
कई बार फील होता है कि बार - बार आप इस्तेमाल किए जाते हैं। अगर आप दूसरों की बातें गौर से सुन लेते हैं , तो खामियाजे के तौर पर दूसरे अपना रोना रोने के लिए आपके करीब चले आते हैं। लेकिन जब अपने दुख - दर्द बांटने की बारी आती है , तब आपका मखौल बना दिया जाता है। जाहिर है कि ऐसे में चोट तो पहुंचेगी ही। तो फिर अगली बार जब कोई अपनी प्रॉब्लम शेयर करने आए , तो आप खुलकर ' ना ' कहें। सुनने में यह थोड़ा बुरा लग सकता है , लेकिन ऐसा करके आप खुद को फेवर कर रहे हैं। और ऐसे फ्रेंड्स से पीछा छुड़ा रहे हैं , जो केवल अपना दिल हल्का करने के लिए आपके पास आते हैं। दरअसल , आपकी लाइफ में ऐसे लोगों की जरूरत है , जो आपकी परवाह करते हों।

भुला दें बीता हुआ
हो सकता है कि आप जिन लोगों को अपने दिल के करीब मानते रहे हों , उन्होंने आपको इग्नोर किया हो। जरूरत पड़ने पर दोस्तों ने साथ छोड़ दिया हो। आप किसी फिजिकल या मेंटल डिसएबिलिटी से गुजर रहे हों। सोशल बैकग्राउंड आपको परेशान करता हो। लेकिन दिलचस्प यह है कि अपने आप को ऐसे हालातों में घिरा हुआ पाने वाले आप अकेले नहीं हैं। फर्क बस इतना है कि सोशल सर्कल में खुशमिजाज होकर रहने वाले लोग बीती बातों को भुलाना जानते हैं। इसलिए आप भी ऐसा ही करें।

क्वॉलिटी को यस कहें
आपका फ्रेंड - सर्कल कितना बड़ा है , यह मैटर नहीं करता। बल्कि आपके फ्रेंड्स आपको कितना समझ पाते हैं , यह मायने रखता है। अगर कोई नई दोस्ती हुई है , तो उसका आपको जानने - समझने में इंटरेस्ट है भी या नहीं , इस पर गौर करें। याद रखें , अगर किसी रिश्ते में म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग है , तो फिर समय बड़ी खूबसूरती के साथ कटता है।

Mahndi Design No. 12

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