हिन्दू धर्म पंचांग के ज्येष्ठ मास की अमावस्या और पूर्णिमा तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस व्रत का पालन ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी यानि १० जून से ज्येष्ठ अमावस्या यानि १२ जून तक किया जाएगा। ज्येष्ठ पूर्णिमा को व्रत रखने वाली स्त्रियों के लिए इस व्रत का पालन ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी यानि २४ जून से ज्येष्ठ पूर्णिमा २६ तक किया जाएगा। यह व्रत विशेष रुप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस दिन वट वृक्ष या बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। पुराण कथा के अनुसार इसी दिन सती सावित्री ने अपने पातिव्रत्य के बल से अपने मृत पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से प्राप्त कर न केवल नया जीवन दिया बल्कि अखण्ड सौभाग्य का वर भी पाया था। इसलिए यह तिथि वट सावित्री अमावस्या के नाम से प्रसिद्ध है। 
इस व्रत के संबंध में पुराणों में अलग-अलग मत हैं। जहां भविष्यपुराण में यह ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को और अन्य धर्मग्रंथों मे अमावस्या के दिन रखे जाने का विधान बताया है। साथ ही यह व्रत विधवा, कन्या, जिस स्त्री का पुत्र न हो द्वारा भी किया जा सकता है। क्योंकि सती सावित्री न केवल पतिव्रता के रुप में बल्कि एक आदर्श स्त्री का धर्म निभाते हुए अखण्ड सौभाग्य के साथ ही कुटुम्ब के सुख और पुत्रवान होने के वर भी यमदेव से पाए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से व्रत करने वाली स्त्रियां अखण्ड सौभाग्य, पुत्र और परिवार सुख पाती है। 
अविवाहित कन्याएं भी सुयोग्य वर पाती हैं। यहां तक कि विधवा स्त्री का भी संताप और विषाद का अंत होकर सौभाग्य प्राप्त होता है। 

No comments: