Sponsored Links

आइये जाने डे केयर प्रोसेस क्या है ?



आमतौर पर लोगों को लगता है कि अस्पताल में लंबे समय तक रहने से ही उनके दावों को रीइम्बर्समेंट के लायक माना जाएगा। उनका यह सोचना ठीक नहीं है। आज हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के पास ऐसी स्वास्थ्य नीतियां भी हैं, जिससे रोगी को दिनभर की भर्ती में ही भुगतान मिल जाता है और उससे ज्यादा दिन तक अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं पड़ती।

इस नई प्रक्रिया को डे-केयर कहा जाता है। डे-केयर प्रक्रिया में 24 घंटे का हॉस्पिटलाइजेशन नहीं होता है, हालांकि इसका मतलब यह नहीं होता कि इसमें खर्च कम लगता है। सच्चाई यह है कि रेडिएशन और केमोथेरोपी या डायलेसिस में होने वाला कुल खर्च, हो सकता है हर्निया की सर्जरी से ज्यादा हो।

डे-केयर प्रक्रिया के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन लोग इससे जुड़े हेल्थ कवर के चयन में गलतियां कर बैठते हैं। यहां आपको डे-केयर प्रक्रिया से जुड़ी जानकारियां दी जा रही हैं।

डे-केयर प्रकिया
डे-केयर प्रक्रिया की कवर संख्या और श्रेणी इस पर निर्भर करती है कि आप कौन सी इंश्योरेंस कंपनी चुन रहे हैं। जनरल इंश्योरेंस के हेल्थ इंश्योरेंस हेड ने बताया, 'मेडिकल ट्रीटमेंट में तकनीकी प्रगति को देखते हुए डे-केयर प्रक्रिया वाले हेल्थ कवर की सूची बढ़ रही है।' इसके चलते कई बीमारियों का इलाज अब दिनभर में ही हो जाता है, जबकि पहले इसके लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ता था। मीडियामैनेज डॉट कॉम के ई-बिजनेस हेड महावीर चोपड़ा ने बताया, 'मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए पहले 24 घंटे से ज्यादा भर्ती होना पड़ता था, लेकिन अब इसके लिए 12-13 घंटे ही काफी हैं।'

डे-केयर भर्ती प्रक्रिया में मोतियाबिंद, टॉन्सिलैक्टोमी, डायलेसिस और केमोथेरेपी के अलावा और कई प्रकार के दूसरे रोग भी शामिल हैं।

पूरी जानकारी जरूरी
बीमा कंपनियां अपने फायदे के हिसाब से डे-केयर इलाज की भर्ती प्रक्रिया को अपनी पॉलिसी में रखती हैं। इसलिए इसको एक वैकल्पिक हेल्थ प्लान के रूप में चुनना बुद्धिमानी नहीं मानी जाएगी। चोपड़ा ने बताया, 'पॉलिसी चुनते वक्त कई लोग डे-केयर प्रक्रिया के तहत आने वाले रोगों की तुलना में गलती कर बैठते हैं। वे बीमारियों के कवर की संख्या को देखकर भ्रमित हो जाते हैं और इस पहलू को ठीक से परख नहीं पाते हैं।'

कई स्वास्थ्य बीमा कंपनियां अपनी पॉलिसी में ज्यादा रोग कवर करती है, इसका मतलब यह नहीं है कि यह मार्केट का सबसे अच्छा प्लान है। अगर एक कंपनी अपनी पॉलिसी में 162 रोगों को कवर करने का दावा करती है और दूसरी केवल 148 तो इसका मतलब यह नहीं है कि पहली कंपनी का प्लान बढ़िया होगा।

फाइलिंग क्लेम
इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर एस नारायणन ने बताया, 'डे-केयर भर्ती और सामान्य भर्ती के लिए क्लेम प्रक्रिया एक जैसी होती है। हालांकि, भर्ती प्रक्रिया के तहत सामान्य तौर पर कुछ इंश्योरेंस कंपनियां पहले से तय इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने से पहले जानकारी देने का अनुरोध करती है।' कैशलेस फैसिलिटी के मामले में सामान्य और डे-केयर भर्ती प्रक्रिया के नियम थोड़े अलग हैं।

दत्त ने बताया, 'यह भर्ती के लिए पहले से तय तिथि के आधार पर किया जाता है। आमतौर पर अस्पताल में कैशलेस इलाज के पहले बीमा कंपनियों को सूचित करना पड़ता है और ज्यादातर मामलों में इसकी जरूरत नहीं है।'

क्लेम अप्रूवल
डे-केयर प्रक्रिया में क्लेम की मंजूरी लेने में दिक्कत नहीं आती है। दत्त ने बताया, 'जब से सर्जिकल प्रक्रिया का चलन ज्यादा बढ़ा है तब से इलाज के खर्च का पता लगाने में आसानी होती है और इसलिए नियमित हॉस्पिटलाइजेशन के खर्च की तुलना में कैशलेस फैसिलिटी की मंजूरी जल्द मिल जाती है। जब से मूल्यांकन प्रक्रिया आसान हुई है तब से रिइम्बर्समेंट में भी तेजी आ गई है।'

0 comments: