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Astrology



ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र भी एक विद्या है. आपको इस विद्या का मंत्र बताते हैं, जिसके द्वारा ज्योतिषी आपके मन की बात का पता कर लेते है. आप किसी जानकार ज्योतिषी से समय के अनुसार लग्न बनाना सीख लीजिये. आजकल तो कम्प्यूटर पर काफी बेवसाइट समय के अनुसार चलने वाले लगनों को वैदिक या पश्चिमी तरीके से बना देतीं हैं. जैसे ही आप लगन बनाना सीख गये, समझो आपको ज्योतिष के जादू का पता चल गया. अब आपको बताते हैं कि इस लगन के द्वारा किस तरह से मन की बात को जान सकते हैं.

लगन से बायीं तरफ ऊपर के खाने से गिनना शुरु कर दीजिये,जो लगन में सबसे ऊपर का खाना है वो पहला भाव कहलाता है. बायीं तरफ का दूसरा खाना दूसरा भाव और फिर नीचे की ओर देखते हैं तो तीसरा खाना ये तीसरा भाव है. इसी प्रकार से हर खाने को गिनते जाइये और खाने के हिसाब से भाव बनाते जाइये. सभी खाने बारह होते हैं और बारह खाने ही बारह भाव होते हैं. इन सभी खानों में किसी में सूर्य किसी में चन्द्र किसी में मंगल किसी में बुध और किसी में बृहस्पति शुक्र शनि और राहु केतु ग्रह बैठे होते है. जैसे लगन के पहले खाने से सूर्य सातवें खाने में बैठा है तो कहा जायेगा कि सूर्य सातवें भाव में विराजमान है, इसी तरह से सभी ग्रहों की स्थिति को एक कागज पर लिख लीजिये.

अब समस्या आती है कि कौन से ग्रह के किस भाव में होने से क्या चिन्ता मिलती है? अब आपको बताते हैं कि ग्रह और ग्रह के भाव में होने से कैसी चिन्ता होती है. अब जैसे ही ग्रह भाव को छोडेगा, उस व्यक्ति की चिन्ता का अन्त हो जायेगा.

सूर्य का प्रभाव
सबसे पहले सूर्य के बारे में बताते हैं कि वो किस भाव में क्या चिन्ता देता है. सूर्य पहले भाव में हो तो किसी के द्वारा कपट करने और छल करने की चिन्ता है,किसी ने झूठ कहकर बदनाम किया है. सूर्य के दूसरे भाव में होने से जो कार्य किया जा रहा है उसके अन्दर लगने वाले धनबल, बाहुबल या भाग्यबल की चिन्ता है. तीसरे भाव में किसी के द्वारा किये जाने वाले झगडे की चिन्ता है. चौथे भाव में किसी के प्रति जलन चल रही है. पांचवें भाव में सन्तान या शिक्षा या खेल की हार-जीत की चिन्ता है. छठे भाव में रास्ते में जाते वक्त या आते वक्त कोई काम किया जाना था उसकी चिन्ता है. सातवें भाव में होने पर जीवन साथी या साझेदार के अहम भरे शब्द कहने की चिन्ता है. आठवें भाव में ह्रदय की बीमारी या नौकर के द्वारा काम नहीं करने की चिन्ता है. नवें भाव से विदेश में रहने वाले व्यक्ति की चिन्ता है. दसवें भाव में राज्य या सरकार द्वारा परेशान किये जाने की चिन्ता है. ग्यारहवें भाव में सरकार से या पुत्र या पिता के धन की चिन्ता है. बारहवें भाव में आने जाने वाले रास्ते और शत्रु द्वारा परेशान किये जाने की चिन्ता है.

चन्द्रमा का प्रभाव
अब चन्द्रमा के बारे में बताते हैं,कि वो किस भाव में किस प्रकार की चिन्ता देता है. चन्द्रमा पहले भाव में अपने निवास की चिन्ता देता है. दूसरे भाव में धन और विदेश के व्यक्ति या काम की चिन्ता देता है. तीसरे भाव में घर से दूर रहने की चिन्ता और किसी प्रकार के धार्मिक प्रयोजन करने की चिन्ता है. चौथे भाव में कैरियर और मकान या माता या पानी की परेशानी है. पांचवे भाव में संतान या जल्दी से पैसा वाला बनने की चिन्ता है. छठे भाव में किये जाने वाले प्रयासों में असफलता की चिंता है. सातवें भाव में जीवन साथी या साझेदार के द्वारा किये जाने वाले कपट की चिन्ता है. आठवें भाव में मुफ्त में प्राप्त होने वाले धन और पिता के परिवार से मिलने वाली सम्पत्ति की चिन्ता है. नवें भाव में लम्बी दूरी की यात्रा करने या किसी के द्वारा किये गये कपट की कानूनी सहायता प्राप्त नहीं होने की चिंता है. दसवें भाव में वादा खिलाफी की चिन्ता है. ग्यारहवें भाव में मित्र द्वारा धोखा देने की चिन्ता है. बारहवें भाव से चोरी गया या खोयी चीज की चिन्ता होती है.

जाने तिल का महत्व


शरीर पर तिल होने का अपना ही एक महत्व होता है और इसको निम्न प्रकार समझा जा सकता है :

  • माथे पर होने पर बलवान
  • ठुड्डी पर  होने पर स्त्री से प्रेम न रहे
  • दोनों बांहों के बीच होने पर यात्रा होती रहे
  • दाहिनी आंख पर  होने पर स्त्री से प्रेम
  • बायीं आंख पर  होने पर स्त्री से कलह रहे
  • दाहिनी गाल पर  होने पर धनवान
  • बायीं गाल पर  होने पर खर्च बढता जाए
  • होंठ पर होने पर विषयवासना में रत रहे
  • कान पर होने पर अल्पायु हो
  • गर्दन पर  होने पर  आराम मिले
  • दाहिनी भुजा पर  होने पर  मानप्रतिष्ठा मिले
  • बायीं भुजा पर  होने पर झगडालू होना
  • नाक पर  होने पर यात्रा होती रहे
  • दाहिनी छाती पर  होने पर स्त्री से प्रेम रहे
  • बायीं छाती पर  होने पर स्त्री से झगडा होना
  • कमर में  होने पर आयु परेशानी से गुजरे
  • दोनों छाती के बीच  होने पर जीवन सुखी रहे
  • पेट पर  होने पर उत्तम भोजन का इच्छुक
  • पीठ पर होने पर प्राय: यात्रा में रहा करे
  • दाहिने हथेली पर होने पर बलवान हो
  • बायीं हथेली पर  होने पर खूब खर्च करे
  • दाहिने हाथ की पीठ पर  होने पर धनवान हो
  • बाएं हाथ की पीठ पर  होने पर कम खर्च करे
  • दाहिने पैर पे होने पर बुद्धिमान हो
  • बाएं पैर पे होने पर  खर्च अधिक हो

शनि अपनी राशि बदल रहा है

आज से शनि अपनी राशि बदल रहा है इसका असर हर राशि वाले पर पड़ेगा। आज से सब के दिन बदल रहे हैं। अगर आज से ही कुंडली में शनि की स्थिति देखकर शनि के उपाय किए जाए तो किस्मत और पैसा दोनों से सुख मिलेगा। सभी उपाय कारगर और जल्दी असर करने वाले हैं। सभी उपाय बिना रूकावट के कम से कम 40 दिनों तक किए जाने चाहिए। एक बार में एक ही उपाय अपनाएं।




कुंडली में शनि पहले घर में हो तो...

- अच्छे स्वास्थ्य के लिए बड़ के पेड़ की जड़ों में दूध अर्पित करें और दूध से गीली हुई मिट्टी का तिलक करें।
- व्यवसाय की प्रगति के लिए काला सूरमा यानि काजल जमीन में गाड़ें।
- किसी जरूरतमंद को या ब्राह्मण या साधु-संत को तवा दान करें।
- नशा आदि से दूर रहें।
- बंदरों को चने आदि खिलाएं।

कुंडली में शनि दूसरे घर में हो तो...

- दूध या दही का तिलक करें।
- सांप को दूध पिलाएं।
- भैंस को रोज घास खिलाएं।

कुंडली में शनि तीसरे घर में हो तो...

- घर में किसी अंधेरी जगह पर धन, सोना, रुपए आदि रखें।
- काला और सफेद रंग के तीन कुत्ते पालें, घर बनेगा और सुख-समृद्धि बढ़ेगी।
- नशा, मांस से दूर रहें। बहते पानी में चावल बहाएं।
- घर की दहलीज में लोहे की कीलें गाड़ दें।

कुंडली में चौथे घर में हो तो...

- कौओं या भैंस को दूध-चावल या खीर बनाकर खिलाएं।
- सांप को दूध पिलाएं, शनि का दान तेल, उड़द, काले कपड़े का दान करें।
- हरे रंग से दूर रहे। काले वस्त्र ना पहने।
- मछली को चावल खिलाएं। किसी कुएं में दूध और चावल अर्पित करें।

कुंडली में शनि पांचवे घर में हो तो...

- घर के अंधेरे कमरे में हरे मूंग रखें।
- किसी मंदिर में 10 बादाम लेकर जाएं और 5 वहां चढ़ाकर 5 अपने घर में सुरक्षित स्थान पर रखें।
- मांस-मदिरा या बादाम का सेवन बिल्कुल ना करें।

कुंडली में शनि छठे घर में हो तो...

- एक बर्तन में तेल भरकर उसमें अपना मुंह देखें और पानी में बहा दें।
- सांप को दूध पिलाएं।
- नारियल या बादाम नदी में बहाएं।
- व्यवसाय की प्रगति के लिए बुध का उपाय करें।

कुंडली में शनि सातवें घर में हो तो...

- प्रभम भाव खाली है और शनि सातवें स्थान पर है तो बांसुरी में शकर भरे और सुनसान स्थान में गाड़ दें।
- काली गाय को घास खिलाएं, उसकी सेवा करें। बुराइयों एवं अधार्मिक कार्य से बचें।
- किसी बर्तन में शहद भरकर घर में रखें।

कुंडली में शनि आठवें घर में हो तो...

-चांदी धारण करें। नशा आदि बिल्कुल ना करें।
- किसी जरूरतमंद को तवा, चिमटा, अंगीठी का दान करें।
- 8 बादाम नदी में बहाएं।

कुंडली में शनि नवें घर में हो तो...

- अपने साथ दादा और पिता को अवश्य साथ रखें।
- पिली वस्तुओं का दान दें। चांदी रखें।
- घर की छत पर घास या लकड़ी बिल्कुल ना रखें।
- कोशिश करें की दो से ज्यादा मकान न बनाएं।

कुंडली में शनि दसवें घर में हो तो...

- प्रतिदिन चने की दाल पानी में प्रवाहित करें।
- मांस-मदिरा आदि से दूर रहे। अधार्मिक कार्यों से बचें।
- अंधों को रोज खाना खिलाएं।

कुंडली में शनि ग्यारहवें घर में हो तो...

- घर के अंधेरे भाग में 12 बादाम काले कपड़े में बांधकर रखें।
- मांस-मदिरा से दूर रहे।
- शुभ कार्य से पहले पानी का कलश भरकर घर में रखें।
- कोई भी अधर्म करने से बचें।

कुंडली में शनि बारहवें घर में हो तो...

- भैरव महाराज की पूजा करें।
- किसी भी तरह का अधर्म करने से बचें।
- मांस-मदिरा से दूर रहे।
- शनिवार को भैरव मंदिर में सरसो का तेल का दीपक लगाएं।
- घर के अंधेरे भाग में 12 बादाम काले कपड़े में बांधकर हमेशा रखें।

ज्योतिष : सितारों का असर

पार्टनर के साथ झ्रगड़ा, दिनों दिन बढ़ता खर्च और उपर से घर में बढ़ती अशांति से आप परेशान है तो ज्योतिष की मदद लें। ज्योतिष के अनुसार आपकी जिंदगी पर सितारों का पूरा पूरा असर होता है। रोज के बदलते सितारें आपकी जिंदगी बदल देते हैं।

कुछ लोगों की जिंदगी में ऐसे दिन आते तो है लेकिन ये बदलने का नाम नहीं लेते। ऐसे में हर कोई परेशान रहता है और लाखों जतन कर लेता है लेकिन फिर भी शांति नहीं मिलती तो राशि अनुसार कुछ आसान उपाय करने चाहिए। इनका असर देर से शुरु होता है लेकिन लंबे समय तक होता है।

जानिए क्या है ये आसान उपाय-

मेष- लाल कपड़े में हनुमान जी के सीधे पैर का सिंदूर लेकर घर के पूजा स्थान पर रखें।

वृष- इस राशि के लोग शिवलिंग पर चावल चढा़ए और चढ़े हुए चावल सफेद कपड़ें में लेकर पूजा स्थान पर रखें।

मिथुन- मिथुन राशि वाले घर के मेनगेट के उपर गणेश जी का फोटो लगा लें।

कर्क- इस राशि के लोग गंगाजल और गाय का कच्चा दूध मिलाकर घर में छिटें तो घर में शांति और बरकत बनी रहेगी।

सिंह- सिंह राशि के लोग तांबे के लोटे का जल पूरे घर में छिंटें तो जल्दी ही घर में शंाति हो जाएगी।

कन्या- बुध की इस राशि के लोग अपने घर में आंकड़े से बने गणेश की मूर्ति रखें तो जल्दी ही शांति होगी।

तुला- इस राशि के लोग शुक्रवार को लक्ष्मी मंदिर में गाय का घी दान दें।

वृश्चिक- इस राशि के लोग रात को तांबे के लोटे में जल भर कर सिरहाने रखें और सुबह कांटेदार पौधे में डाल दें।

धनु- इस राशि के लोग लक्ष्मी मंदिर से चढ़ा हुआ नारियल पीले कपड़े में घर के मेन गेट पर बांध दें

मकर- इस राशि के लोग शनिवार के दिन अंगिठी और तवे का दान दें।

कुंभ- कुंभ राशि के लोग काला कपड़ा और लोहे की कील का दान दें।

मीन- इस राशि के लोग हर गुरुवार मछलीयों को दाना दें तो घर में शांति बनी रहेगी।

ज्योतिष ज्ञान

पहले के ज्योतिषी रोल वाली, कलात्मक पत्रिका बनाते थे। लेकिन आज का युग कम्प्यूटर का होने से जन्मपत्रिका भी कम्प्यूटर से सटीक बनती है। पूर्व में स्थानीय शोधन की गड़बड़ी से पत्रिका गलत भी बन जाती थी लेकिन आज कम्प्यूटर की गणना व सही सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर पत्रिका बनाई जाती है। आइए हम एन.सी. लहरी की ऐफिमेरिज से बनाना बताएँ ताकि आप स्वयं सही जन्म लग्न निकाल सकें व आपके पास आने वाली पत्रिका को सही है या नहीं, जाँच सकें।

जन्मपत्रिका बनाने के लिए हमें तारीख, मास एवं जन्म का सन् मालूम होना आवश्यक है, वहीं जन्म समय रात्रि बारह बजे के बाद ए.एम. (A.M.) एवं दोपहर बारह बजे से रात्रि बारह बजे के बीच को पी.एम. (P.M.) कहते हैं, यह ज्ञात होना चाहिए। जन्म स्थान का विशेष महत्व होता है, क्योंकि स्थानीय समय से ही शुद्ध पत्रिका निर्माण संभव है।

ज्योतिष - ज्योति = लो (प्रकाश) ज्योतिष = जो अंधकार को दूर कर प्रकाशवान बने उसे ज्योतिषी कहते हैं। ज्योतिष में तभी पारंगत बना जा सकता है जब हमें जन्मपत्रिका का निर्माण करना आता हो। जिन व्यक्तियों को पत्रिका निर्माण करना नहीं आता।

हमें लग्न सारणी की आवश्यकता पड़ेगी, जसमें लग्न का साम्पतिक काल भी ज्ञात करना पड़ेगा, जो एन.सी. लहरी की पुस्तक टेबलस ऑफ असेन्डेण्ट्‍स में है। साइडरीयल टाइम भी उसी में मिल जाएगा। इस प्रकार यह पुस्तक हमारे लिए परम आवश्‍यक है एवं जिस सन् की पत्रिका बनानी हो उस समय का पंचांग होना आवश्यक है।

सबसे पहले हम जानें स्टैंडर्ड समय क्या है। भारतीय समय जैसे दोपहर के इंदौर में बारह बजे हैं, वहीं दिल्ली‍, मुंबई, कश्मीर, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता आदि शहरों, गाँवों में बारह ही बजे होंगे, यह समय 82.30 रेखांश पर आ‍धारित है।

हमें इंदौर का स्थानीय समय बनाना है तो क्या करें। इंदौर का रेखांश 75.51 है, अप 82.30 से घटाएँगे-
82.30 - 75.51 = 6.39

6 अंश 39 कला आया। 1 अंश बराबर 4 मिनट 1 सेकंड बराबर 4 सेकंड।
6 * 4 = 24

39 कला * 4 = 156.60 = 2 मिनट 36 सेकंड प्राप्त हुआ। 24 मिनट में 2 मिनट जोड़े तो 26 मिनट आए, बाकी के 36 सेकंड वैसे ही लिए। इस प्रकार इंदौर का स्थानीय मिनट जानने के लिए हम भारतीय स्टैंडर्ड समय में करीब 26 मिनट 36 सेकंड घटाएँगे तभी स्थानीय समय आएगा।

अक्षांश का भी जानना आवश्‍यक है। हमारे इंदौर का अक्षांश 22.43 है यानी इंदौर का 22.43 विषुवत रेखा से उत्तर में है। इसका टेबलस ऑफ असेन्डेण्ट्‍स में देखकर लग्न ‍निकालने के लिए महत्व होगा। इसी प्रकार हम स्थानीय समय निकाल सकते हैं। हाँ, यदि 83.30 से अधिक रेखांश पर जन्म हो तो स्टैंडर्ड समय में जोड़ना पड़ेगा। जैसे किसी का जन्म 3 जनवरी 1983 में भारतीय समय 6.30 ए.एम. में हुआ तो लोकल समय क्या होगा।

6.30 ए.एम. आई.एस.टी. स्टैंडर्ड समय
26.36 स्थानीय समय है तो घटाएँगे
______________
6.3. 24 यानी स्थानीय समय सुबह के 6 बजकर 3 मिनट 24 सेकंड हुए।

अब साम्पतिक काल जानना है तो दोपहर 12 बजे में 6 घंटा 3 मिनट 24 सेकंड घटाना पड़ेगा, क्योंकि यह समय सुबह का है H = घंटा M = मिनट S = सेकंड।

H M S
12.00.00
- 6 03 24
______________
5. 54. 36

दोपहर बारह बजे से पहले जन्म हुआ समय।

साम्पतिक काल टेबलस ऑफ असेन्डेण्ट्‍स के प्रारंभ में पृष्ठ संख्या 2-4 पर देखें। हम वहाँ से 3 जनवरी का साम्पतिक काल निकालेंगे। - घ.मि.से.
3 जनवरी का साम्पतिक काल 18.45.45 निकाला

1983 का शोधन- 00 मिनट 25 सेकंड है।
इंदौर के लिए संस्कार + 4 सेकंड है।

18.45.45
- 25
______________
18.45.25
+ 4
______________
18.45.29 शुद्ध साइडरीयल टाइम हुआ।

शुद्ध साम्पतिक काल
H M S
18.45. 29
- 5 54 36
______________
12. 05.53
तारामंडल 12 घंटे 50 मिनट 53 सेकंड हुआ।

अब 22.43 अक्षांश लग्न सारिणी में से देखा तो इस प्रकार है। पेज नं. 36 पर 22.35 नार्थ में देखा।
S से राशि 0अंश' से कला जाने।
12 घंटे 48 मिनट के लिए
S 0,
8.8.29 मिला
2 मिनट के लिए निकालना है
12 घंटे 52 मिनट मिला 8.9.24
12 घंटे 48 मिनट का - 8.29
_____
00.55
_____
पेज 36 से नीचे पाया। मिनट है तो 14, 2 मिनट है हेतु 28 कला अत:
8.8.29
+ 28
_____
8.8.57 में 12 घंटे 50 मिनट का हुआ।
अब 53 सेंकड के लिए लगभग 12 कला होगा

8.8.52
+ 12
_____
8.9.04

अब इसमें अमन मांश संशोधन करेंगे यह पेज नं. 5 पर सन् 1983 पर 38 कला देखा।

8.9.04
_ 38
_____
8.8.26

यानी शुद्ध लग्न धनु 8 अंश 26 कला आया। यह शुद्ध लग्न हुआ।

इस प्रकार रात्रि बारह बजे के बाद से दोपहर बारह बजे के पहले शुद्ध लग्न निकाल सकते हैं।

अंक ज्योतिष विज्ञान का महत्व

यहाँ हम अंक ज्योतिष विज्ञान के कार्य करने के तरीके (Method Of Numerology) की विवेचना करेंगे. वैसे तो अंक ज्योतिष में बहुत सारी परिभाषाएँ सामने आती हैं, परन्तु हम इसमें मुख्य रुप से दो परिभाषाओ मूलांक (Root Number/ Ruling Number) तथा भाग्यांक (Fadic Number) की ही चर्चा करेंगे. 

मूलांक (Root Number/ Ruling Number) 
  • किसी भी व्यक्ति की जन्म तारीख उसका मूलांक होता है. 
  • जैसे कि 2 जुलाई को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 2 होता है तथा 14 सितम्बर वाले का 1+4 = 5. 
भाग्यांक (Fadic Number)
  • किसी भी व्यक्ति की सम्पूर्ण जन्म तारीख के योग को घटा कर एक अंक की संख्या को उस व्यक्ति विशेष का भाग्यांक( Bhagya Anka) कहते हैं, 
  • जैसे कि 2 जुलाई 1966 को जन्मे व्यक्ति का भाग्यांक 2+07+1+9+6+6= 31 = 3+1= 4, होगा. 
  • मूलांक तथा भाग्यांक स्थिर होते हैं, इनमें परिवर्तन सम्भव नही. क्योंकि किसी भी तरीके से व्यक्ति की जन्म तारीख बदली नही जा सकती.

सौभाग्य अंक (Destiny Number/ Lucky Number)
  • व्यक्ति का एक और अंक होता है जिसे सौभाग्य अंक (Destiny Number/ Lucky Number) कहते हैं. 
  • यह नम्बर परिवर्तनशील है. 
  • व्यक्ति के नाम के अक्षरो के कुल योग से बनने वाले अंक को सौभाग्य अंक कहा जाता है, 
  • जैसे कि मान लो किसी व्यक्ति का नाम RAMAN है, तो उसका सौभाग्य अंक R=2, A=1, M=4, A=1, एंव N=5 = 2+1+4+1+5 =13 =1+3 =4 होगा. 
  • यदि किसी व्यक्ति का सौभाग्य अंक उसके अनुकूल नही है तो उसके नाम के अंको में घटा जोड करके सौभाग्य अंक (Saubhagya Anka) को परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे कि वह उस व्यक्ति के अनुकूल हो सके. 
  • सौभाग्य अंक का सीधा सम्बन्ध मूलांक से होता है. व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव मूलांक का होता है. चूंकि मूलांक स्थिर अंक होता है तो वह व्यक्ति के वास्तविक स्वभाव को दर्शाता है तथा मूलांक का तालमेल ही सौभाग्य अंक से बनाया जाता है.

व्यक्ति के जीवन में उतार-चढाव का कारण सौभाग्य अंक होता है. उदाहरण के लिए मान लो कि हम किसी शहर में जाकर नौकरी/ व्यवसाय करना चाहते हैं, तो हमें उस शहर का शुभांक (Shubha Anka) मालूम करना होगा फिर उस शुभांक को स्वंय के सौभाग्य अंक से तुलना करेंगे. यदि दोनो अंको में बेहतर ताल-मेल है अर्थात दोनो अंक आपस में मित्र ग्रुप के है तो वह शहर आपके अनुकूल होगा, और यदि दोनो अंक एक दूसरे से शत्रुवत व्यवहार रखते हैं तो उस शहर में आपके कार्य की हानि होगी. 

अब हमारे सामने दो विकल्प हैं, एक तो हम उस शहर विशेष को ही त्याग दें तथा अन्य किसी शहर में चले जायें, यदि एसा करना सम्भव न हो तो दूसरे विकल्प के रुप में हम अपने नाम के अक्षरो में इस प्रकार परिवर्तन करें कि वो उस शहर विशेष से भली भांति तालमेल बैठा लें. यही सबसे सरल तरीका है.

इस प्रकार हम अंक ज्योतिष के माध्यम से अपने जीवन को सुखी एंव समृद्ध बना सकते है एंव दुख व कष्टो को कम कर सकते हैं.

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जन्म तारीख के अनुसार रत्न धारण

अंक ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति की जन्म तारीख के मूलांक के स्वामी का नग धारण करने से सुख-समृद्धि व मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। जन्म तारीख के अनुसार रत्न इस प्रकार हैं, जिन्हें आप पहन सकते हैं-

जन्म तारीख

- 1, 10, 19, 28 का मूलांक 1 का स्वामी सूर्य है- माणिक्य रत्न शुभ रहेगा।

- 2, 11, 20, 29 तारीख को जन्मे व्यक्ति का मूलांक- 2 स्वामी चंद्रमा- मोती पहनें।

- 3, 12, 21, 30 मूलांक- 3, स्वामी गुरू-रत्न- पुखराज

- 4, 13, 22, 31 मूलांक 4 का स्वामी- राहु- गोमेद

- 5, 14, 23 मूलांक 5 स्वामी बुध- पन्ना।

- 6, 15, 24 मूलांक 6 स्वामी शुक्र- हीरा।

- 7, 16, 25 मूलांक 7 स्वामी केतु- लहसुनिया।

- 8, 17, 26 मूलांक 8 स्वामी- शनि- नीलम।

- 9, 18, 27 मूलांक 9 स्वामी मंगल- मूंगा।

ध्यान रखें मूलांक तथा जन्म कुंडली के कारक ग्रह दोनों का नग एक साथ पहनें तो वे परस्पर विरोधी अर्थात शत्रु या अकारक नहीं हों। जैसे दिनांक 4 को कर्क लग्न में जन्मे व्यक्ति मूलांक चार के स्वामी राहु तथा कर्क लग्न के कारक ग्रह चंद्रमा के रत्न मोती को एक साथ धारण नहीं करें। क्योंकि राहु-चंद्र परस्पर शत्रु हैं। इसी प्रकार अन्य लग्नों के कारक तथा जन्म दिनांक के मूलांक के स्वामियों के रत्न धारण में सावधानी बरतें।

जाने हथेली में कहा क्या होता है ...

हमारे हाथ में 7 मुख्य रेखाएं होती है। साथ ही सात गौण रेखाएं होती है। इन रेखाओं का सभी के हाथ में होना आवश्यक नहीं है। वहीं कुछ लोगों के हाथों में मुख्य सात रेखाओं में से भी कुछ रेखाएं नहीं होती है।

यहां सभी महत्वपूर्ण सातों रेखाओं के चित्र दिए जा रहे हैं। इन चित्रों से रेखाओं को समझने काफी आसानी रहेगी। सातों रेखाओं को लाल रंग की लाइन से प्रदर्शित किया गया है।

1. जीवन रेखा: जीवन रेखा शुक्र क्षेत्र को घेरे रहती है। यह रेखा तर्जनी और अंगूठे के मध्य से शुरू होती है और मणिबंध तक जाती है।

2. हृदय रेखा: यह मस्तक रेखा के समानांतर चलती है तथा हथेली पर बुध क्षेत्र के नीचे से आरंभ होकर गुरु क्षेत्र की ओर जाती है।

3. मस्तक रेखा: यह हथेली के मध्य भाग में रहती है तथा जीवन रेखा के उदगम स्थल के समीप ही कही से आरंभ होकर द्वितीय मंगल क्षेत्र अथवा चंद्र क्षेत्र की ओर जाती है।

4. भाग्य रेखा: यह हथेली के मध्यभाग में रहती है तथा मणिबंध अथवा उसी के आसपास से आरंभ होकर शनि क्षेत्र को जाती है।

5. सूर्य रेखा: यह हथेली के मध्यभाग, मंगल क्षेत्र के मध्य से शुरू होकर या मस्तक अथवा हृदय के नीचे से आरंभ होकर सूर्य क्षेत्र की ओर जाती है।

6. स्वास्थ्य रेखा: यह बुध क्षेत्र से आरंभ होकर शुक्र की ओर जाती है।

7. विवाह रेखा: यह बुध क्षेत्र पर आड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखाएं एक से अधिक भी हो सकती हैं।

और अधिक जानने के लिए यहाँ  क्लिक करे

मानसिक अवलोकन

विवाह का मांगलिक प्रसंग हो या परिवार में नन्हे मेहमान के आगमन की खुशी, भारतीय परिवारों में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ही सभी कार्य संपन्न होते हैं। गृहलक्ष्मी  अपने यूज़र्स के लिए पत्रिका मिलान और जन्मकुंडली बनाने की सुविधा एक ही स्थान पर उपलब्ध करवा रहा है। इसके लिए एक ही लॉगिन का उपयोग कर आप स्वयं अपनी व अपने भावी जीवन साथी की कुंडली का मिलान कर सकते हैं और साथ ही बना सकते हैं अपने नन्हे-मुन्नों, मित्र व परिजनों की जन्मकुंडली।
इसकी सहायता से स्वयं कर सकते है निम्न अवलोकन :-
  1. मानसिक
  2. अलौकिक
  3. मनौवैज्ञानिक
  4. आध्यात्मिक
  5. लोकातीत
  6. आत्मा - संबंधी
  7. मन - संबंधी