पूजाघर, आपकी ईश्वर में आस्था का प्रतीक हैं। विश्वास और आस्था के साथ जब आप घर में भगवान को स्थान देते हैं, तो परिवार के कल्याण की कामना करते हैं। वास्तुशास्त्र में घर में पूजा का स्थान नियत करने के कई मार्गदर्शन दिए गए हैं, जिन्हें अपनाकर पूरे परिवार के लिए सुख-समृद्धि का वरण किया जा सकता है। चलिए, घर में पूजा का स्थान कहां होना चाहिए और किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, इस पर नज़र डालें-
घर में पूजा का स्थान पूर्व दिशा में शुभ माना जाता है, क्योंकि पूर्व दिशा से सूर्य उगता है और धरती पर रोशनी का आगमन होता है। दक्षिण की दिशा में पूजा का स्थान शुभ नहीं माना जाता है।
घर में पूजास्थल के सम्बंध में वास्तुशास्त्र में कहा गया है कि उत्तर-पूर्व का स्थान भी भगवान का होता है और इस स्थान को भी पूजा के लिए तय किया जा सकता है। पूजा के समय व्यक्ति का चेहरा पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। पूर्व दिशा पूजा के लिए सबसे अच्छी दिशा मानी जाती है।
यदि पूर्व दिशा की ओर पूजा कर पाना सम्भव न हो, तो उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पूजा करना उचित है। इससे व्यक्ति के जीवन में सुख व समृद्धि आती है।
विशेष स्थिति में पश्चिम की ओर मुंह करके पूजा भी की जा सकती है, लेकिन दक्षिण की तरफ मुंह करके पूजा करना अशुभ माना जाता है।
घर में पूजा का स्थान उत्तर-पूर्व दिशा में हो, तो घर के सदस्यों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पूजाघर उत्तर-पूर्व कोने में या उसके निकट होना चाहिए। उत्तर-पूर्व दिशा में मंदिर और पूजाघर में गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करना, मंगलकारी होता है।
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आरती करना चाहिए। प्रात: सूर्यनमस्कार कर सकें, तो पूजन लाभ के साथ-साथ सेहत लाभ भी मिलेगा।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
आजकल भिन्न-भिन्न प्रकार की धातुओं से मंदिर बनाए जाते हैं लेकिन घर में शुभता की दृष्टि से मंदिर लकड़ी, पत्थर और संगमरमर का होना चाहिए।
मंदिर इमारती लकड़ियों के बने होने चाहिए जैसे चंदन, शाल, चीड़, शीशम, सागौन आदि। पर जंगली लकड़ी से परहेज करना चाहिए जैसे नीम की लकड़ी।
मंदिर, गुम्बदाकार या पिरामिडनुमा होना शुभ माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि मंदिर में तीन गणपति, तीन दुर्गा, दो शिवलिंग, दो शंख, दो शालिग्राम, दो चंद्रमा, दो सूरज, द्वारिका के दो गोमती चक्र एक साथ, एक जगह पर नहीं रखने चाहिए।
ग्रह वास्तु के अनुसार, घर में पूजा के लिए डेढ़ इंच से छोटी और बारह इंच से बड़ी मूर्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बारह इंच से बड़ी मूर्ति की पूजा मंदिरों में की जाती है। घर में पीतल, अष्ठधातु की भी बड़े आकार की मूर्ति नहीं होनी चाहिए।
3 comments:
आप ने बहुत अच्छी जानकारी दी है . लेकिन पता नहीं क्योँ मंदिर के लिए मेरे मन में बहुत सारे सवाल रहते हैं . यदि आप निवारण कर दें तो बहुत बढियां . मंदिर पूर्वअ दिशा की दीवाल पर बनायें लेकिन वह दिवार बाथरूम का दिवार हो तो क्या ठीक है ? धन्यवाद.
संध्या जी,
सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
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hi sir mera nam rani nilesh sodal hai meine poja ghar mai panch dhatu ka kachua plait me pani me rakha he kaya ye sahi hoga ya nahi rakhna chahia pleas muze batae
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