स्वसहायता समूह नए क्षितिज की ओर
स्वसहायता समूह एक ऐसा माध्यम बनकर उभरा है, जिसके जरिए महिलाएं अपने समय का समुचित प्रयोग कर आर्थिक और मानसिक रूप से स्वावलंबी बन सकती हैं।
इसका एक उदाहरण पेश किया है हिमाचल प्रदेश में सोलन विकास खंड की बसाल पंचायत की महिलाओं ने। इन महिलाओं ने स्व सहायता समूह के तहत संगठित होकर स्वरोजगार का ऐसा उद्यम आरंभ किया है, जिससे महिलाएं अपने समय का समुचित इस्तेमाल करने के साथ ही आर्थिक तौर पर भी सशक्त हुई हैं। इस समूह को संगठित करने, आगे बढ़ाने और उसका मार्ग दर्शन करने में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गीता देवी ने अहम कार्य किया है।
गीता देवी के सहयोग एवं मार्गदर्शन में 20 जून 2000 को स्थापित लक्ष्मी स्व सहायता समूह कठार बावरा आज स्वावलम्बन की ओर अग्रसर है। आरंभिक अनिश्चितता एवं शंकाओं के चलते समूह की 16 सदस्यों ने प्रेमा ठाकुर को प्रधान और सीता ठाकुर को सचिव नियुक्त किया। 20 रुपये प्रति सदस्य की मासिक बचत से शुरू किये गये इस समूह ने आपसी विश्वास और सूझबूझ से नए आयाम स्थापित किए हैं।
वर्तमान में समूह की कुल पूंजी एक करोड़ साठ लाख रुपये हो गयी है और इस सामूहिक निधि से उसके प्रत्येक सदस्य को विभिन्न कार्यों के लिए तीन करोड़ 24 लाख रुपये के ऋण दिये गये हैं। समूह ने अभी तक व्यक्तिगत आय उपार्जन कार्य एवं सामूहिक गतिविधियों के लिए बैंक से पांच बार कुल नौ करोड़ 75 लाख रुपये के ऋण लिए हैं और उन्होंने स्वयंसिद्धा के तहत विभिन्न विभागों और संस्थानों से क्षमता विकास एवं कौशल सुधार प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
समूह के सदस्यों ने पारंपरिक कार्यों और नए अवसरों के लिये दुधारू पशु रख रखाव, उद्यान, अचार-चटनी, सॉस, जड़ी-बूटी एवं फूलों की खेती के प्रशिक्षण प्राप्त किए हैं। औषधीय पौधों और फूलों की खेती के लिये उद्यान विभाग से वापसी खरीद व्यवस्था के तहत समूह को जोड़ा गया है। समूह ने सफेद मुसली की खेती के लिए पंद्रह हजार रुपये की लागत से बीज लगाये हैं, जो उसके लिए फायदेमंद सिद्ध हुआ है। उद्यान विभाग ने उसे बीज पर 5000 रुपये की सब्सिडी दी और समय-समय पर खेतों का निरीक्षण करके उसका मार्गदर्शन किया। इसके अतिरिक्त समूह की महिलाओं ने गत वर्ष गेंदे की खेती में 2500 रुपये का मुनाफा कमाया है।
समूह की वर्तमान सचिव मधु ने समूह के सहयोग से अपने शिक्षित बेरोजगार भाई के लिए दुकान उपलब्ध कराई है, जिसकी मासिक बिक्री 20 हजार रुपये है। समूह के मार्फत से बैंक से ऋण लेकर मधु ने कैंटर खरीदा, जिससे उन्हें अच्छी आय प्राप्त हो रही है। इसके अलावा वह समूह के सहयोग से सफेद मुसली और मिल्क थिस्टल की खेती भी कर रही है।
वह बुनायी की मशीन खरीद करके बुनायी, खिलौने और पेंटिंग का कार्य भी करती है, जिससे उन्हें मासिक आय 1200 रुपये होती है।
समूह की अन्य सदस्य कृष्णा वर्मा ने केचुएं की खाद का कार्य आरंभ किया है। पहली बार उन्होंने 200 रुपये के केंचुएं खरीद करके 200 किलो खाद तैयार की है। इस बार उन्होंने 500 किलो खाद तैयार किया है। वह खाद के साथ केंचुएं बेचकर परिवार की आयवृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
समूह की प्रधान प्रेमा ठाकुर और रीता देवी ने समूह से ऋण लेकर गाय खरीदी है और उन्होंने दुग्ध उत्पादन में 15-20 किलो तक वृद्धि की है। प्रेमा ने बताया कि गत वर्ष उन्होंने समूह के माध्यम से बैंक से तीन लाख रुपये का ऋण लिया था, जिसमें से दो लाख पचास हजार रुपये से उन्होंने ग्रीन हाउस स्थापित किया। इसमें उन्होंने शिमला मिर्च आदि लगायी, जिस से अच्छी आमदनी हासिल हुई। 50 हजार रुपये की शेष राशि उन्होंने गीता, कांता और कमला को दी।
उन्होंने इस राशि से गायें खरीदीं, जिससे दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। उन्होंने बताया कि दूध से उनके परिवार का बढ़िया खर्चा चल रहा है।
समूह द्वारा स्थानीय शुलिनी मेले में स्टाल लगाकर अपने उत्पादों अचार, चटनी, सॉस, लहुसन, घी, हल्दी, मिर्च, जैम, खिलौने, पेटिंग, बैग, पर्स आदि की बिक्री की जाती है। बाल विकास परियोजना सोलन के तहत सोलन मंडल की पर्यवेक्षक संतोष शर्मा ने बताया कि सोलन मंडल में 56 स्व सहायता समूह कार्य कर रहे हैं, जिनमें लगभग 850 महिला सदस्य हैं, जो हर क्षेत्र में बढ़िया कार्य कर रही हैं।
बाल विकास परियोजना अधिकारी सोलन सुरेन्द्र तेगटा के अनुसार सोलन विकास खंड में 450 स्व सहायता समूह कार्य कर रहे हैं, जिनमें लगभग पांच हजार महिला सदस्य शामिल हैं। उन्होंने बताया कि सभी स्व सहायता समूह अच्छा कार्य कर रहे हैं और राज्य सरकार के महिला सशक्तीकरण के कार्यों में वह महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं।
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