कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, के अजीब मायने निकाल लिए हैं, आज की पीढ़ी ने। रेत पाने के लिए नदी तक गंवाने को तत्पर हैं हम। युवाओं की विजय का दौर है और इन नए विजेताओं ने मूल्यों की व्याख्या बदल दी है। समाज और संस्कार हाथ बांधे खड़े हैं फिर भी विजय के अट्टहास सुनाई नहीं देते। प्रश्नों की पुकार अब भी कायम है। क्यों? एक पड़ताल।
प्रश्न- १
मैं एक शादीशुदा महिला हूं और जॉब करती थी। निजी कारणों से मुझे यह जॉब छोड़नी पड़ी। जॉब के दौरान मेरा एक लड़के से अफेयर हो गया। हम ऑफिस के बाद अक्सर मिलते थे। दो-तीन बार तो हमारे बीच अंतरंग सम्बंध भी स्थापित हुए, लेकिन इस बीच मैंने जॉब छोड़ दिया। वह लड़का आज भी मुझे सम्बंध स्थापित करने के लिए मजबूर करता है, जिससे अब मैं तंग आ चुकी हूं। मेरे और लड़के के बीच के सम्बंध से मेरे पति अनभिज्ञ हैं। अब लगता है उन्हें बता दूं। लेकिन उसके बाद उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी, इसे लेकर डर बना हुआ है। मैं क्या करूं ?
—संगीता* x पंचकूला हरियाणा
प्रश्न- २
मेरी उम्र 21 वर्ष है और मैं एक 40 वर्षीय शादीशुदा व्यक्ति से प्रेम करती हूं। उनकी पत्नी और दो बच्चे हैं व उनसे मेरा पारिवारिक रिश्ता भी है। वह मेरी चाची के मामा हैं और उनका मेरे घर आना-जाना लगा रहता है। इस बीच मैं उन्हें मन ही मन पसंद करने लगी और परिणामस्वरूप उनसे शारीरिक सम्बंध भी स्थापित किए। वह मुझे अपनी पत्नी मानते हैं और पिछले तीन सालों से हमारे बीच सम्पर्क बना हुआ है। लेकिन अब मेरे और उनके परिवार वालों को हमारे सम्बंधों की जानकारी मिल चुकी है। मेरे पिता ने मेरी चाची का उनके मामा के यहां जाना-आना बंद करवा दिया है और जल्द से जल्द मेरी शादी करना चाहते हैं। लेकिन उन्हीं से शादी करना चाहती हूं। क्या करूं, उलझन में हूं।
—मंदिरा* x जैसलमेर राजस्थान
प्रश्न-३
मैं अभी 11वीं कक्षा में अध्ययनरत हूं। एक प्रतिष्ठित परिवार की लड़की होने के बावजूद पिछले साल एक गरीब परिवार के लड़के से प्यार कर बैठी। हमारे बीच कई बार अंतरंग सम्बंध भी स्थापित हो चुके हैं। इस बात का पता मेरे छोटे भाई को चल चुका है, लेकिन बड़े भाई जो दूसरे शहर में नौकरी करते हैं, उन्हें पता चलने पर मेरी शादी तुरंत करा दी जाएगी, जो मैं नहीं चाहती। मैं उसी लड़के के साथ जीवन बिताना चाहती हूं और किसी भी शर्त पर उसे छोड़ना नहीं चाहती।
—सोनम* x भरतपुर राजस्थान
युवाओं की तादाद ज्यादा है
- आज देश में युवा जनसंख्या का प्रतिशत 50 फीसदी से भी ज्यादा है। इनकी सोच पर बाहरी हवाओं का असर जल्दी पड़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं और युवाओं का विद्रोह भी कोई नया नहीं है। लेकिन मर्यादाओं और संस्कारों की कोई बात ही न हो, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
- क्या पहले कोई युवा नहीं हुआ, विद्रोह का परचम क्या पहले कभी किसी के हाथ न चढ़ा? लेकिन मूल्यों की ज़मीन से पैर कभी नहीं उखड़े थे पहले। विद्रोह सिर उठाता था, पर बड़ों के सामने आवाज़ ऊंची करके नहीं।
- सोच आगे चली जाती थी, वहां जहां पुरानी सोच वाले नहीं पहुंच पाते थे, लेकिन मर्यादाओं पर ऐसी आंच नहीं आई थी पहले। प्रगति ऊंचाइयों की तरफ बढ़ने को कहती है, लेकिन रसातल की तरफ बढ़ना, प्रगति नहीं कही जा सकती।
क्यों आ रहा है बदलाव?
- सब चल सकता है-वाली सोच अब आम है। युवाओं के माता-पिता खुद एक सांस्कृतिक उलझन में पड़े हैं। किसे मानें, कितना मानें? मीडिया का प्रभाव एक बहुत बड़ा घटक है।
- एक छोटी-सी खिड़की, जो हम सबके ड्रॉइंगरूम में मौजूद है, वह दुनिया भर का खुलापन, बेबाकी और व्यक्तिवादी सोच को सामने रख ही रही है। फिल्में तो पहले भी थीं, पर अब टीवी और फैशन की दुनिया भी है, जहां लोकप्रियता के मायने किसी भी अन्य गुण से ज्यादा हैं।
- कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, के अजीब मायने निकाल लिए हैं, आज की पीढ़ी ने। रेत पाने के लिए नदी तक गंवाने को तत्पर हैं हम।
समता की मांग
- एक पक्ष यह भी है इसका कि पहले घर में लड़के-लड़कियों के बीच जो भेदभाव बरता जाता था, वो लड़कियां स्वीकार कर लेती थीं। लेकिन अब उन्हें इससे इंकार है। भाई को मिली हर तरह की आज़ादी अब उनकी भी मांग है।
- विवाह पूर्व सम्बंधों के बारे में जब युवतियों से बातचीत की गई, तो उनका कहना था- क्या लड़के शादी से पहले ऐसा कोई कदम नहीं उठाते? फिर सारी उम्मीदें और बंदिशें लड़कियों पर ही क्यों?
सहारे की तलाश
- छोटी उम्र की लड़कियों में यह एक कारण माना जा सकता है कि घर में अगर भाई या पिता थोड़े से भी कट्टर या स़ख्त मिजाज़ होते हैं, तो लड़कियां सहारे तलाशने के लिए बाहर की ओर प्रवृत्त होती हैं।
- बाहर पुरुष उनकी कमज़ोरियों का फायदा उठाने से बाज़ नहीं आते।
कैसे रोकें इस तूफान को?
- मूल्यों की नए सिरे से व्याख्या करनी होगी। उन्हें आज के माहौल में फिर से स्थापित और परिभाषित करना होगा। लड़कियों और लड़कों के लिए समान मूल्य तय करने होंगे। जो लड़कों के लिए गलत है, वही लड़कियों के लिए भी हो। संस्कारों की ज़िम्मेदारियां दोनों मिलकर लें।
- संस्कृति को एक मज़बूत आधार एक बार फिर देना होगा। सही-गलत की पहचान में आज और कल दोनों को भविष्य की रोशनी में खड़ा होना होगा, तभी नई राह मिलेगी।
........... डॉ. मनीषा मैराल
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