नाम नहीं पहचान चाहिए

इन दिनों मेट्रो सिटीज में एक जबर्दस्त ट्रेंड देखने को मिल रहा है। अब लड़कियां शादी के बाद अपने पति के सरनेम के साथ अपना सरनेम भी लगा रही है । आज से कुछ दशक पहले तक जब किसी लड़की की शादी होती थी, तो पिता की ओर से मिला सरनेम हट जाता था और वह अपने पति का सरनेम लगा लेती थी। मगर अब वे दोनों सरनेम रख रही हैं। जैसे कोमल तनेजा भाटिया -इससे वे ससुराल की ख्वाहिश भी पूरी कर देती हैं और अपनी पहचान भी बनाए रखती हैं। 


दरअसल, सदियों से हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को एक वस्तु माना जाता रहा है। पति पर जिम्मेदारी की तरह, पुत्र पर दायित्व की तरह और पिता पर भार की तरह। इसलिए लड़की के युवा होते ही माता-पिता और घर के बड़े- बूढ़े धर्म और परंपरा के नाम पर उसे वस्तु की तरह दान कर देते थे। अभिज्ञान शाकुंतलम की ये लाइनें 'अर्थो हि कन्या परकीय एव' अर्थात कन्या सचमुच ही पराया धन होती है, इस बात को जाहिर करती है। 

कन्यादान के बाद यह माना जाता था कि इसके बाद लड़की का मायके से कोई सरोकार नहीं रह जाता और इसलिए पिता का सरनेम हटकर पति का हो जाता था। लेकिन बदलते समय के साथ हसबेंड का सरनेम लगाना महिलाओं के लिए अब कोई मजबूरी नहीं रह गया है। इसमें वे अपनी इच्छा और पसंद के मुताबिक बदलाव कर रही हैं। अगर नाम के साथ हसबेंड के सरनेम का अच्छा तालमेल नहीं बैठता, तो उसे लगाने से मना भी कर देती हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 2000 से 2005 तक हर साल लगभग तीस लाख महिलाओं ने शादी के बाद अपने हसबेंड का नाम एडॉप्ट किया, जो कुल शादियों का 90 प्रतिशत था। लेकिन पिछले दो सालों में यानी 2005 से 2009 तक यह घटकर 25 लाख ही रह गया। 

सिर्फ आम लड़कियां ही नहीं, कई सिलेब्रिटीज भी इसे आजादी के प्रतीक की तरह ले रही हैं। आपने सुना होगा, सानिया ने अपनी शादी के बाद कहा कि वे मिर्जा बनी रहेंगी और शोएब मलिक ने भी कहा कि उन्हें इससे कोई एतराज नहीं है। एक्ट्रेस मलायका अरोड़ा खान, ऐश्वर्या राय बच्चन व गौरी हितेन तेजवानी आदि में से किसी ने भी शादी के बाद अपना सरनेम नहीं हटाया। अब यह कहना भी गलत न होगा कि यह अब फैशन का रूप भी अख्तियार कर रहा है। 

साउथ इंडिया में तो हसबेंड का नाम वाइफ का सरनेम बन जाता है। वैसे ही, महाराष्ट्र में भी महिला के नाम के बाद हसबेंड का पूरा नाम लगाने का चलन है। देश से बाहर निकलें, तो अमेरिका में कुछ समय पहले एक सोशल वर्कर लुसी स्टोनर्स ने सरनेम चेंज न करने को नैशनल इशू ही बना दिया था। उसके बाद कई महिलाओं ने अपने पति का सरनेम लगाने से साफ मना कर दिया था। आज भी जो महिलाएं वहां पर पति का सरनेम एडॉप्ट करने से मना करती हैं, उन्हें लुसी स्टोनर्स कहकर उन पर व्यंग्य किया जाता है। हालांकि यूएस और कनाडा में पति का सरनेम रखना महिला की इच्छा पर निर्भर करता है। यही नहीं, वहां पर लड़के भी इस तरह के एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। मसलन, जॉन स्मिथ की शादी जैन मैरी फोडम से हुई, तो उन्होंने अपना नाम जॉन मैरी स्मिथफोड रख लिया। 

ऐसे ही बॉलिवुड एक्ट्रेस एंजेलिना जॉली ने ब्रेड पिट से शादी करने के बाद अपनी बेटी का नाम शिलोह जॉली पिट रख दिया। वैसे, कई सिलेब्रिटीज अपनी पॉपुलैरिटी को देखते हुए शादी के बाद भी प्रफेशनली अपने पुराने सरनेम को ही इस्तेमाल करती हैं, लेकिन कानूनन अपना नाम बदल लेती हैं। अलबम 'गर्ल्स एलाउस' की जानीमानी सिंगर शेरॉल ट्विटी ने फुटबॉलर एसली कॉल से शादी करने के बाद अपना नाम शेरॉल कॉल तो रख लिया, लेकिन प्रफेशन में वह आज भी शेरॉल ट्विटी के नाम से ही जानी जाती हैं। 

इस बारे में कानून विशेषज्ञ कहते हैं कि महिलाओं में जागरूकता तो आई है, लेकिन सरनेम चेंज न करने के पीछे कुछ लीगल वजहें भी हो सकती हैं। मैरिज के बाद सरनेम बदल जाने से लड़की को पासपोर्ट, लाइसेंस वगैरह में कई तरह की दिक्कतों से गुजरना पड़ सकता है।

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