वायरल इन्फेक्शन : बचाव व ईलाज
कॉमन कोल्ड या जुकाम। इसमें नाक बंद हो जाती है, छींकें आती हैं, खांसी हो जाती है, गला खराब रहता है और बुखार भी हो जाता है। इसके फैलने का कारण वातावरण में मौजूद वायरस है जो एक-दूसरे में सांस के जरिये, छींकने से या खांसने पर ड्रॉप्लेट्स द्वारा फैलता है। इसे रेस्पिरिटरी इन्फेक्शन का वायरस कहते हैं, जो जाड़े में ज्यादा फैलता है।
- हैजा भी वायरस से फैलता है। यह किसी भी मौसम में हो सकता है।
- डेंगू, मलेरिया, फ्लू, चिकनगुनिया, पीलिया, डायरिया और हेपेटाइटिस भी वायरस से फैलते हैं, जो साल में कभी भी हो सकते हैं।
- बच्चों में डायरिया फैलने की मुख्य वजह वायरल इन्फेक्शन ही है। इसे वायरल डायरिया कहते हैं।
- सामान्य दर्द और बुखार से लेकर एंकेफ्लाइटिस और मेनिनजाइटिस तक वायरल इन्फेक्शन से हो सकता है।
अपर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन
हम जब छींकते हैं या खांसते हैं तो हवा में सैकड़ों ड्रॉप्लेट्स फैल जाते हैं। हम जब सांस लेते हैं तो यही वायरस हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। एक से चार दिन के भीतर पूरे शरीर में यह फैल जाता है। इसे हम कॉमन कोल्ड या अपर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन कहते हैं।
लोअर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन
कॉमन कोल्ड या वायरल तो दो-तीन दिन में खुद ठीक हो जाता है, लेकिन अगर यह लंबे समय तक रहे तो तेज खांसी, बुखार, नाक से गाढ़ा बलगम, छाती में बलगम जमा होने लगता है। इससे सांस लेने में तकलीफ, बुखार, निमोनिया आदि दिक्कतें बढ़ने लगती हैं। इसे लोअर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन कहा जाता है।
साइनोसाइटिस होने से मरीज की नाक, सिर, माथा जकड़ने लगता है और पूरा चेहरा दर्द करता है और उसे भारीपन महसूस होता है। कई बार नाक से गाढ़ा सा बलगम और साथ में खून आने लगता है। यह वायरल से बैक्टीरियल इन्फेक्शन कहलाता है। वायरल पहली स्टेज है और बैक्टीरियल इन्फेक्शन सेकंडरी, जिसमें मरीज को एंटीबैक्टीरियल दवाएं देना जरूरी हो जाता है।
वायरस फैलने की वजह
- सर्दियों में सुबह-शाम वातावरण में पलूशन की एक परत छाई रहती है। इसी हवा में हम सांस लेते हैं जिसमें हजारों तरह के वायरस होते हैं।
- भीड़भाड़ वाली जगह पर इकट्ठा होने से भी वायरस फैलता है। आजकल मेलों, मॉल, सिनेमा हॉल में छुट्टी बिताने का चलन है। ऐसी जगहों पर एयरकंडिशनर लगे होते हैं। बाहर की ताजा हवा तो मिलती ही नहीं। जब लोग छींकते हैं, खांसते हैं तो वही ड्रॉप्लेट्स पूरी हवा में फैल जाते हैं और लोग वायरस की चपेट में आ जाते हैं।
वायरल और फ्लू में फर्क
वायरल का ही दस गुना बड़ा रूप फ्लू होता है। वायरल में आमतौर पर मरीज बिस्तर नहीं पकड़ता, जबकि फ्लू में अच्छा-खासा बुखार आ जाता है। नाक बहना, गले में इन्फेक्शन होना, तेज छींकें, खांसी और शरीर में दर्द सब एक साथ होता है। फ्लू तीन से पांच दिन में ही एक इंसान को बेहाल कर देता है। फ्लू में एंटीवायरल दवा दी जाती है। इसका पांच दिन का कोर्स होता है।
वायरल इन्फेक्शन का इलाज
एलोपैथी
- अगर किसी को सिर्फ जुकाम हुआ है तो आमतौर पर उसे किसी खास इलाज की जरूरत नहीं होती। जुकाम के बारे में एक बड़ी मशहूर कहावत है - इफ यू ट्रीट द कोल्ड, इट टेक्स वन वीक टाइम, इफ यू डोंट ट्रीट, इट टेक्स सेवन डेज टाइम। कहने का मतलब यह है कि अगर आप दवा लेंगे तो भी इसे ठीक होने में उतना ही टाइम लगेगा और नहीं लेंगे, तो भी। ठीकहोने का समय आप कम नहीं कर सकते।
- दरअसल, हर बीमारी की कुछ फितरत होती है और वह ठीक होने में थोड़ा समय लेती ही है। उसके बाद वह खुद शरीर छोड़कर भागने लगती है। फिर भी अगर करना ही पड़े तो जुकाम में लक्षणों के आधार पर ट्रीटमेंट दिया जाता है। मरीज को तेज छींकें आ रही हैं तो उसे ऐसी दवा दी जाती है जिससे उसकी छींकें रुक जाएं। अगर मरीज की नाक बंद है तो नाक खोलने की दवा दी जाती है और अगर बुखार है तो पैरासीटामोल मसलन कालपोल और क्रोसिन जैसी दवाएं डॉक्टर लिखते हैं।
- जुकाम में एंटीवायरल ड्रग्स नहीं दी जातीं और एंटीबायोटिक्स का तो इसके इलाज में कोई रोल ही नहीं है। कई बार शुरू में वायरल इन्फेक्शन होता है और बाद में बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो जाता है। इसे सेकंडरी बैक्टीरियल इंफेक्शन कहा जाता है। इसमें एंटीबायोटिक्स दवाएं दी जाती हैं।
- अगर किसी मरीज को साथ में बैक्टीरियल इंफेक्शन भी है तो एंटीबायोटिक दी जाएंगी, लेकिन इन्हें कम-से-कम पांच दिन दिया जाता है। कुछ वायरस के लिए एंटीवायरल ड्रग्स भी आ चुके हैं, लेकिन ज्यादातर वायरस के लिए एंटीवायरल ड्रग्स काम नहीं करते। हरपीज, चिकनपॉक्स और हेपेटाइटिस जैसी कुछ बीमारियों के लिए एंटीवायरल ड्रग्स उपलब्ध हैं।
होम्योपैथी
वायरल इन्फेक्शन में इन होम्योपैथिक दवाओं को दिया जाता है:
- तेज छीकें आने और नाक से पानी बहने पर रसटॉक्स ( Rhus Tox ), आर्सेनिक अलबम ( Arsenic Album ), एलीयिम सीपा ( Allium Cepa )
- गले में इन्फेक्शन है तो ब्रायोनिया ( Bryonia ), रस टॉक्स ( Rhus Tox ), जेल्सीमियम ( Gelsemium )
- बदन दर्द और सिर दर्द है तो फेरम फॉस ( Ferrum Phos )
- लोअर रेस्पिरेटरी समस्या है तो ब्रायोनिया ( Bryonia ), कोस्टिकम ( Costicum ) के साथ बायोकेमिक मेडिसिन
ऊपर लिखी गई सभी दवाएं डॉक्टर मरीज की स्थिति और लक्षणों को जांचने-परखने के बाद ही लिखते हैं। बड़ों, बच्चों और महिलाओं के लिए इन दवाओं की अलग-अलग डोज और अलग-अलग पावर होती हैं। इसलिए इन दवाओं को डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए।
आयुर्वेद
- वायरल के इलाज में आयुर्वेद मौसम के मुताबिक खानपान पर जोर देता है।
- तुलसी की पत्तियों में कीटाणु मारने की क्षमता होती है। लिहाजा बदलते मौसम में सुबह खाली पेट दो-चार तुलसी की पत्तियां चबाएं।
- अदरक गले की खराश जल्दी ठीक करता है। इसे नमक के साथ ऐसे ही चूस सकते हैं।
- गिलोय, तुलसी की 8-9 पत्तियां, काली मिर्च के 4-5 दाने, दाल-चीनी 4-5, इतनी ही लौंग, वासा (अड़ूसा) की थोड़ी सी पत्तियां और अदरक या सौंठ मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे तब तक उबालें, जब तक पानी आधा न रह जाए। छानकर नमक या चीनी मिलाकर गुनगुना पी लें। इसे दिन में दो-तीन बार पीने से आराम मिलता है। काढ़ा पीकर फौरन घर के बाहर न निकलें।
- वायरल बुखार में रात को सोते वक्त एक कप दूध में चुटकी भर हल्दी डालकर पिएं। गले में ज्यादा तकलीफ है तो संजीवनी वटी या मृत्युंजय रस की दो टैब्लेट भी इसके साथ लेने से आराम मिलता है।
- गले में इन्फेक्शन है तो सितोपलादि चूर्ण फायदेमंद है। इसे तीन ग्राम शहद में मिलाकर दिन में दो बार चाटें। खांसी में आराम मिलेगा। डायबीटीज के मरीज शहद की जगह अदरक या तुलसी का रस मिलाकर लें। वैसे गर्म पानी से भी इस चूर्ण को लेने से आराम मिल जाएगा।
- त्रिभुवन कीर्ति रस, मृत्युंजय रस या नारदीय लक्ष्मीविलास रस में से किसी एक की की दो-दो टैब्लेट, दिन में तीन बार गुनगुने पानी से लेने से गले को आराम मिलता है।
- टॉन्सिल्स व गले में दर्द है तो कांछनार गुग्गुलू वटी की दो-दो टैब्लेट सुबह-शाम गुनगुने पानी से लें।
बच्चों में वायरल इन्फेक्शन
आम भाषा में बोले जाने वाले कॉमन कोल्ड या जुकाम की शुरुआत बच्चों में नाक बहने, छींक, आंखों से पानी आने और हल्की खांसी से होती है। इसे वायरल भी कहते हैं। बड़े लोग तो अपनी बीमारी के बारे में बता सकते हैं लेकिन दूध पीता बच्चा बोल नहीं पाता। ऐसे बच्चे सांस लेते वक्त आवाजें करते हैं। ऐसा लगता है कि उनकी नाक में ब्लॉकेज है। बच्चा बेवजह रोने लगता है। उसे हल्का बुखार भी हो सकता है। दूसरी ओर ऐसे बच्चे जो बोल सकते हैं, उनमें भी वायरल के वही लक्षण होते हैं। नाक बंद होना, छींकें आना, गले में खराश और आंखों से पानी आना। जब नाक का रास्ता बंद होता है तो वही पानी आंखों के रास्ते बहने लगता है। कुछ बच्चों की नाक बंद होती है तो कुछ को बहुत छींक आती हैं। कुछ बच्चों को हल्का बुखार भी महसूस होता है। आप थर्मामीटर लेकर नापें तो बुखार पता भी नहीं चलता। इसे अंदरूनी बुखार या हरारत भी कहते हैं। सभी बच्चों में जुकाम के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं।
क्या करें कि वायरल हो ही ना
- वायरस दो तरह का होता है- एंडनिक और पेंडनिक। एंडनिक वायरस की वजह से होने वाला फ्लू किसी एक जगह पर दिखाई पड़ता है, जबकि पेंडनिक सब जगह देखा जा सकता है। जैसे स्वाइन फ्लू शुरू में मैक्सिको में हुआ, लेकिन महीने भर बाद भारत पहुंच गया। पेंडनिक वायरस दुनिया भर में एक महीने के भीतर ही फैल सकता है। यह वायरस अपनी शक्ल-सूरत बदल लेता है और एक नए वायरस की तरह दिखना शुरू हो जाता है। यह उन सब लोगों पर अटैक करता है, जो इससे पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं। इससे बचाव के लिए डब्ल्यूएचओ साल में दो बार सितंबर और मार्च में एंटी-फ्लू वैक्सीन रिलीज करता है। सितंबर में उत्तरी क्षेत्र (जहां हम रहते हैं) और मार्च में दक्षिणी क्षेत्र (ऑस्ट्रेलिया) में यह वैक्सीन रिलीज होता है।
- यह वैक्सीन 600 से 900 रुपये के बीच उपलब्ध है, जिसे छह महीने के बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को दिया जा सकता है। छह महीने से कम उम्र के बच्चों को यह साल में दो बार दिया जाता है, जबकि इससे ऊपर के लोगों को साल में केवल एक बार। ये वैक्सीन वैक्सीग्रिप, फ्लूरिक्स, इनफ्लूबैक जैसे नामों से उपलब्ध हैं।
- कोशिश यह होनी चाहिए कि सर्दी न लगे। पूरे कपड़े पहनकर बाहर जाएं।
- कोई खांस रहा हो तो रुमाल हाथ में रखें। खुद भी अगर खांस रहे हैं या छींक रहे हैं तो रुमाल ले लें।
- कभी खाली पेट घर से बाहर न निकलें। खाली पेट शरीर को कमजोर करता है।
- खाना मौसम के हिसाब से लें। अगर बाहर खाएं, तो सफाई का पूरा ध्यान रखें।
- इस मौसम में फ्रिज का पानी पीने से बचें। आइसक्रीम या ज्यादा ठंडी चीज से परहेज करें।
और हो ही जाए तो...
- नमक डालकर गुनगुने पानी के गरारे करें।
- ज्यादा से ज्यादा पानी और विटामिन सी वाली चीजें लें, लेकिन ज्यादा खट्टे फलों से बचना चाहिए।
- वायरल के दौरान सामान्य, पौष्टिक खाना यानी संतुलित आहार लें।
- अगर बुखार है और भूख नहीं लगती, तो हेवी खाना न लें क्योंकि वह बुखार के कारण पचेगा नहीं।
- जहां तक संभव हो सके, गरम व तरल पदार्थ जैसे सूप, दलिया, खिचड़ी और रसेदार सब्जियां भरपूर मात्रा में लें।
- तुलसी, अदरक, शहद और च्यवनप्राश का इस्तेमाल करते रहें।
क्या है टेस्ट
- सिर्फ जुकाम होने पर कोई भी टेस्ट नहीं कराया जाता। डेंगू, मलेरिया, मेनिनजाइटिस, हेपेटाइटिस या एंकेफ्लाइटिस जैसी बीमारियों को कंफर्म करने के लिए ब्लड टेस्ट कराया जाता है। डेंगू होने की आशंका लगती है तो डॉक्टर प्लेटलेट्स काउंट टेस्ट की सलाह देते हैं।
एक्पसपर्ट पैनल
प्रो. एस. वी. मधु एचओडी, मेडिसिन, जीटीबी अस्पताल
डॉ. निलेश आहूजा असिस्टेंट डायरेक्टर, भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी निदेशालय
डॉ. वाई. डी. शर्मा, डेप्युटी डायरेक्टर, भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी निदेशालय
डॉ. मोमिता चक्रवर्ती, एमओ इंचार्ज, होम्योपैथी मेडिसिन, जीटीबी अस्पताल
डॉ. प्रसन्ना भट्ट, सीनियर, कंसलटेंट (पीडिएट्रिक्स), मैक्स बालाजी
1 comment:
नमस्कार
मेरा बेटा तीन वर्ष का है जिसे अक्सर माह में एक बार यान कई बार इससे अधिक नाक बहने की शिकायत रहती है। किरपा करके कोई ऐसा घरेलू नुक्ता बताएं जिससे इस रोग को पूर्ण तरह से ठीक किया जा सके।
धन्यवाद।
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