पति और पत्नी में सामंजस्य

क्या आपने कभी देखा या सोचा है कि किसी दिन पुलिस का कुछ काम टीचर कर ले और टीचर का कुछ काम इंजीनियर। नहीं ना.. फिर क्यों बराबरी का झंडा लेकर चलने वाले ऐसे खयाली पुलाव पकाते हैं कि पति भी घर के काम में जुट जाएं, खाना पकाएं या बर्तन धोएं।

खासकर पत्नी अगर हाउस वाइफ हो और पति कामकाजी हो तो इस तरह की बात करना भी बेस्ट हाफ के नाम पर बेमानी है। शुरुआत में आपको मेरी बात जरूर तथाकथित पुरुषवादी अहंकार से भरपूर लगेगी लेकिन आप अगर ऐसे थोड़ा ध्यान से पढ़े और समझें तो पाएंगे कि कामयाब गृहस्थी के लिए जरूरी है कि ऐसा हरगिज न किया जाए।

चाहे कोई भी संस्थान हो, घर, परिवार, दोस्त या ऑफिस, उसकी कामयाबी के लिए जरूरी है कि काम के बंटवारे में सामंजस्य हो, प्लानिंग के साथ उसे किया जाए और रोल इस तरीके से तय हों कि उसमें कोई कन्फ्यूजन न रहे। लेकिन जब यह बात घर के काम में आती है तो पता नहीं किस फैशन की धार में हम इसे भूलने लगे हैं।

गुलाबी नारीवाद की धारा में प्रचार किया जाने लगा कि अच्छा पति वही होता है जो घर के काम में पत्नी का हाथ बंटाए, रसोई में घुसे... फलाना फलाना। इस बात को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए कि सात से दस घंटे तक दफ्तर में सिर खपाने के बाद थकाहारा आया मर्द अगर मजबूरी में भी ऐसा न कर पाया तो उसे माफ कर दिया जाए, या फिर उसे बुरे पति का तमगा न दिया जाए। क्या कभी कोई पति अपनी हाउस वाइफ से उम्मीद करता है कि वह उसकी कोई फाइल निपटा दे, या उसके दफ्तर का कोई काम कर दे।

ऐसा नहीं है कि घर के काम करने से नफरत है या उसे कम माना जाता है, वह बहुत अच्छा काम है, कभी प्यार दुलार में या छुट्टी के दिन किया भी जा सकता है, लेकिन अच्छे पति के लिए इसे शर्त मान लेना बेस्ट हाफ के खिलाफ ही होगा।

बल्कि कहें कि खतरनाक भी हो सकता है। इसका असर घर के कामकाज और पति के दफ्तर के कामकाज की क्वॉलिटी पर पड़ सकता है। उम्मीदों का इस तरह का ब्लैकमेलिंग नाजायज दबाव बनाने से अच्छा है कि पति और पत्नी के जो तय रोल हैं, दोनों उन्हें ही अच्छी तरह निभाएं।

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