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बच्चे की उम्र की नजाकत को समझें

बढ़ना एक खूबसूरत अहसास है, लेकिन अगर यह बढ़ना आपके और आपके बच्चे के बीच फासले पैदा कर दे, गलतफहमियों को जन्म दे और घर के खुशनुमा माहौल को बर्बाद कर दे तो? घबराइए नहीं, आप ऐसे हालात से बच सकते हैं। बस, थोड़ी समझदारी दिखाते हुए बच्चे की उम्र की नजाकत को समझें और उसके साथ चलने की कोशिश करें। आगे के लेख में बढ़ते बच्चे के साथ रिश्तों की बगिया को कैसे सींचें कि उसमें खुशियों के फूल कैसे लहराएं  के बारे में विस्तृत रूप से बताया जा रहा है :

आमतौर पर छह साल की उम्र तक बच्चा पूरी तरह पैरंट्स के साये में जीता है। वह पैरंट्स की सभी बातों को सही मानते हुए उन्हें फॉलो करता है। लेकिन इस उम्र से आगे निकलने के बाद बच्चे में कई तरह के बदलाव होने लगते हैं, जिन्हें पहचानना और समझना पैरंट्स के लिए जरूरी है। 

6-12 साल 
इस दौरान बच्चे में मानसिक और शारीरिक बदलाव होते हैं। फैंटेसी से बाहर निकलकर वह सेल्फ इमेज बनाता है। वह अपना रोल मॉडल तय करता है और चीजों पर अपनी राय बनाने लगता है। या तो उसमें हीन भावना आ जाती है या फिर वह खुद को हीरो समझने लगता है। स्ट्रेस जैसी समस्या से भी उसका साबका पड़ता है। डिस्लेक्सिया या स्लो लर्नर जैसी प्रॉब्लम भी इसी उम्र में खुलकर सामने आती हैं। बच्चा इस उम्र में खुलकर बात करना चाहता है, जिसे अक्सर पैरंट्स और टीचर अक्सर समझ नहीं पाते। इस फेज के बच्चों के साथ आनेवाली आम समस्याएं हैं : 
स्कूल न जाने की जिद 
  • कई बच्चे स्कूल जाने से बचने लगते हैं। अक्सर इसकी वजह टीचर की डांट या बुलिंग (साथियों द्वारा खिंचाई) होती है। होमवर्क न करना, स्टेज पर जाने का डर, पढ़ाई में कमजोर होना, टाइम पर तैयार न होना, खुद को दूसरे बच्चों से हीन समझना, जैसी वजहें भी बच्चे को स्कूल से मुंह मोड़ने को मजबूर कर सकती हैं। 
क्या करें 
  • बच्चे को समय दें। उससे उसके रुझानों के बारे में बात करें। उसे टाइम पर तैयार करें, यूनिफॉर्म साफ हो और होमवर्क भी कंप्लीट हो। 
  • बच्चा किसी टीचर या साथी की शिकायत करता है तो स्कूल जाकर बात करें लेकिन बदला लेने के लिहाज से नहीं, समस्या को समझने के लिए। 
  • जो बच्चे हाइपरएक्टिव होते हैं, उन्हें अक्सर टीचर शैतान मानकर इग्नोर करने लगती हैं। ऐसे में टीचर से रिक्वेस्ट करें कि बच्चे को एक्टिविटी में शामिल करें और उसे मॉनिटर जैसी जिम्मेदारी दें। इससे वह जिम्मेदार बनता है। 
  • पढ़ाई को थोड़ा दिलचस्प तरीके से पेश करें। उसे बोझ न बनाएं। हर बच्चे की पसंद-नापसंद होती है। उसकी पसंद के सब्जेक्ट पर ज्यादा फोकस करें। 
  • इस उम्र में अनुशासन जरूरी है लेकिन अनुशासन और सजा का फर्क बनाए रखें। सजा के बिना भी बच्चों को अनुशासित किया जा सकता है। 
उम्मीदों का बोझ 
  • पैरंट्स अक्सर इस उम्र में बच्चे से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाने लगते हैं। वे अपनी अधूरी इच्छाओं को उसके जरिए पूरा करने में लग जाते हैं। पढ़ाई के अलावा डांस, पेंटिंग, स्विमिंग, क्रिकेट न जाने क्या-क्या सिखाने के लिए उसे क्लास भेजने लगते हैं। ज्यादा काम करने से बच्चा थकने लगता है और चिड़चिड़ा हो जाता है। उसे लगने लगता है कि वह पैरंट्स की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पा रहा है। दूसरे भाई-बहन से भी कभी तुलना नहीं करें। 
क्या करें 
  • बच्चे की कितनी कैपिबिलिटी है, इसका सही आकलन करें। बच्चे को खाली न बिठाएं, न ही उसे दिशाहीन छोड़ें। लेकिन ध्यान रखें कि बच्चा सुपर ह्यूमन नहीं बन सकता। पढ़ाई, एक्स्ट्रा ऐक्टिविटी, खेल आदि में बैलेंस बनाकर चलें।
  • शुरू में बच्चे को सब कुछ मोटा-मोटा सिखाकर देखें, लेकिन फिर उसकी दिलचस्पी देखें और जो उसे पसंद आए, उसी में आगे बढ़ाएं। 
  • बच्चे को साथ बिठाकर उसकी उसकी रजामंदी से उसका टाइमटेबल बनाएं। लेकिन उसमें थोड़ी छूट रखें। ऐसा न हो कि इतने बजे यह करना है तो करना ही है। बच्चा घर में है, किसी जेल में नहीं। 
  • जो बच्चा अच्छा कर रहा है, हमेशा उसी की तारीफ न करें। अनजाने में ही आपके दूसरे बच्चे में हीनभावना आ जाती है। 
शरीर को लेकर फिक्र 
  • बच्चे में इस उम्र में बहुत-से फिजिकल चेंज होने लगते हैं, जिन्हें लेकर वह अजीब-सी बेचैनी महसूस करता है। शरीर में आ रहे बदलावों को लेकर उसे सहज बनाएं और इस बारे में उसे जानकारी दें। इस उम्र में कुछ लड़कियों को पीरियड भी शुरू हो जाते हैं। 
  • 10-11 साल की उम्र में मांएं बेटियों को बताएं कि आनेवाले एक-दो साल में उनके पीरियड शुरू होंगे और यह एकदम नॉर्मल प्रोसेस है। इसी तरह, पापा बेटों को नाइट फॉल आदि के बारे में बताएं। इससे बच्चा नर्वस नहीं होगा और उसे गिल्ट भी महसूस नहीं होगा। 
  • इस तरह की जानकारी सबके सामने न दें, न ही कभी बच्चे का मजाक बनाएं। 
  • अगर बच्चा मां-पापा के साथ ज्यादा खुला नहीं है तो पैरंट्स बच्चे को जानकारी देने की जिम्मेदारी उस सदस्य को दें, जिसके साथ वह खुला हो। 
  • बच्चे को उसकी उम्र के मुताबिक ही जानकारी दें। उम्र से पहले सब कुछ बता देना भी बच्चे के लिए सही नहीं है। 10-11 साल की उम्र में उसे पूरे रिप्रॉडक्शन सिस्टम के बारे में नहीं बता सकते लेकिन उसे सेक्सुअल एक्साइटमेंट के बारे में बता सकते हैं। 
सेक्सुअल एब्यूज 
  • अब तक बच्चा सही और गलत टच को समझने लगता है। फिर भी पैरंट्स उसे इस बारे में सही से जानकारी दें। उसे बताएं कि आपके शरीर पर आपका हक है और कोई भी अनजान व्यक्ति आपको अलग तरह से छुए तो हमें बताओ। लड़कियों के साथ-साथ लड़कों को भी इस बारे में जागरूक करना जरूरी है। लेकिन इसका जिक्र बार-बार न करें। 
सेक्सुअलिटी से जुड़े सवाल 
  • इस उम्र में बच्चा अक्सर टीवी आदि देखकर कॉन्डम क्या होता है, बच्चे कैसे आते हैं, मैं कहां से आया था, आदि सवाल पूछते हैं। पैरंट्स इन सवालों से बचते हैं। ऐसे सवालों पर गुस्सा न हों और न ही बच्चे को झिड़कें। सवाल करना बच्चों की आदत होती है। सवाल करने पर नहीं, बल्कि वे सवाल न करें तो फिक्र की बात है। 
  • बच्चे की उम्र के मुताबिक सवालों का जवाब जरूर दें। अगर आप उसके सवालों का जवाब नहीं देंगे तो वह बाहर ढूंढेगा और पूरी संभावना है कि वहां उसे अधकचरी और गलत जानकारी मिले, जो खतरनाक हो सकती है। 
  • बच्चे को कभी गलत जवाब न दें। मसलन, अगर वह पूछे कि बच्चे कहां से आते हैं तो यह न बताएं कि आसमान से आते हैं। उसे बताएं कि बच्चे मां के पेट से आते हैं और हो सके तो डिलिवरी के वक्त मां को होनेवाली तकलीफ के बारे में भी बताएं। इससे बच्चा मां से ज्यादा लगाव महसूस करेगा। 
  • जवाब जरूर दें, लेकिन उतना ही, जितना वह समझ पा रहा है। अगर बच्चा बार-बार इस तरह के सवाल करे तो जानने की कोशिश करें कि वह बार-बार सवाल क्यों कर रहा है? कहीं उसे इस सब्जेक्ट को लेकर ऑब्सेशन तो नहीं है। ऐसा हो तो उसे काउंसलर से मिलवाएं। 
जिद करना और उलटा बोलना 
  • इससे पहले तक बच्चा आमतौर पर पैरंट्स की सारी बातें मानता है। पैरंट्स की उम्मीद होती है कि बच्चा अब भी उनकी बातें मानता रहेगा जबकि इस उम्र में उसकी अपनी पसंद, इच्छाएं आदि बनने लगती हैं। हर बात पर 'ऐसा करें, ऐसा न करें' का पैरंट्स का रवैया चालू रहता है। बातें न मानने पर वे बच्चे पर चिल्लाते हैं। बस, यहीं से दिक्कत शुरू होती है। इससे बच्चे के मन में नाराजगी पैदा होती है और वह पैरंट्स को गलत मानने लगता है। ऐसे में अक्सर वह उलटा बोलता है और जिस चीज की जिद करता है, उसे पाने के लिए तुल जाता है। 
  • बच्चे को हमेशा रोकें-टोकें नहीं। इससे उसे लगेगा कि मां-पापा हमेशा रोकते रहते हैं। फिर ऐसे में वह आपसे कोई डिमांड नहीं करेगा और चुप-चुप रहने लगेगा। 
  • बच्चे के फ्रेंड्स की बुराई उसके सामने न करें। इस उम्र में उसे दोस्त काफी करीबी लगने लगते हैं। कुछ कहना ही है तो डायरेक्ट न कहें। उसके दोस्तों को घर पर बुलाएं और उन्हें भी अपने बच्चों की तरह ट्रीट करें। यानी उन्हें खिलाएं-पिलाएं और उनके बातचीत करें। इससे आपको बच्चे के दोस्तों की जानकारी भी रहेगी और बच्चे को अच्छा लगेगा कि आप उसके दोस्तों को भी प्यार देते हैं। 
  • अगर बच्चा कभी झूठ बोले या कोई गलती करे तो सबसे सामने न डांटें। न ही उसे सही-गलत का पाठ पढ़ाएं। इसके बजाय उसे उदाहरण देकर उस काम के नेगेटिव पक्ष बताएं। उदाहरण में खुद को सामने रखें - मसलन, मैं भी जब छोटा था तो क्लास बंक करता था लेकिन बाद में मुझे लगा कि यह सही नहीं है क्योंकि मैं पढ़ाई में पीछे रह गया या बाद में ढेर सारा काम करना पड़ता था। इस तरह से बात करने से वह खुद को कठघरे में खड़ा महसूस नहीं करेगा। 
  • बच्चा आप पर चीखे-चिल्लाए तो भी आप उस पर चिल्लाएं नहीं। उस वक्त छोड़ दें, लेकिन खुद को पूरी तरह नॉर्मल भी न दिखाएं, वरना वह सोचेगा कि वह कुछ भी करेगा, आप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बाद में जब उसका गुस्सा शांत हो जाए तो बैठकर बात करें कि इस तरह बात करना आपको बुरा लगा और इससे उसके दोस्त, टीचर सभी उसे बुरा बच्चा मानेंगे। 
टीवी, नेट, विडियो गेम आदि की लत 
  • अक्सर इस उम्र के बच्चे जरूरत से ज्यादा टीवी से चिपके रहते हैं। वे कार्टून देखने, विडियो गेम खेलने या मोबाइल पर गेम खेलने में बिजी रहते हैं। टीवी या इंटरनेट पर ज्यादा टाइम बिताना आंखों के साथ-साथ दिमाग के लिए भी नुकसानदेह है। आधा-एक घंटा टीवी देखना और एक घंटे कंप्यूटर पर काम करना इस उम्र के बच्चे के लिए काफी है। 
  • बच्चे की अटेंशन डायवर्ट करें। उसे खेल खिलाने पार्क आदि ले जाएं। उसकी एनर्जी का इस्तेमाल सही दिशा में नहीं होगा, तो वह भटक सकता है। 
  • उसके टीवी देखने या विडियो गेम खेलने का टाइम तय करें। रोजाना एक घंटे से ज्यादा टीवी नहीं देखने दें। पैरंट्स अपना भी टीवी देखने का टाइम तय करें। दिन भर टीवी चलता रहेगा तो बच्चे को कैसे रोकेंगे। टीवी और इंटरनेट पर चाइल्ड लॉक लगाकर रखें ताकि वह पैरंट्स की गैर-मौजूदगी में उसे खोल न पाए। 
  • कंप्यूटर पर बच्चे को फोटोशॉप या पेंट आदि सिखाएं। इससे वह कंप्यूटर का रचनात्मक इस्तेमाल कर सकेगा। 
खाने की गलत आदतें 
  • अक्सर बच्चे को फास्ट फूड और जंक फूड की आदत पड़ जाती है और वह पौष्टिक खाने से बचता रहता है, जबकि फास्ट फूड उसे जिद्दी, गुस्सैल और सुस्त बनाता है। खाने में सलाद और फल जरूर शामिल करें। 
  • बच्चे को हर वक्त जंक फूड खाने से न रोकें। उसके साथ बैठकर तय करें कि वह हफ्ते में एक दिन जंक फूड खा सकता है। इसके अलावा, दोस्तों के साथ पार्टी आदि के मौके पर इसकी छूट होगी। 
  • 'नहीं खाना है', कहने के बजाय उसे समझाएं कि ज्यादा जंक फूड खाने के क्या नुकसान हो सकते हैं। लॉजिक देकर समझाने से वह खाने की जिद नहीं करेगा। 
  • पैरंट्स खुद भी जंक फूड न खाएं। इसके अलावा, जिस चीज के बारे में एक बार कह दिया कि इसे खाना गलत है, बाद में किसी बात से खुश होकर बच्चे को उसे खाने की छूट न दें।

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