ध्यान रखे ! बच्चा रहे कॉन्फिडेंट

अगर आपका बच्चा चुप-चुप व अलग से रहता है और जरा-सी बात पर ही सहम जाता है, तो समझ लें कि वह परिवार के माहौल की वजह से खुद को असुरक्षित महसुस कर रहा है। इस सिचुएशन को समय रहते पहचानें और उसे अपना पूरा प्यार व सपोर्ट दें : 
सरोज धूलिया 
नीलिमा की बेटी साक्षी छह साल की है, लेकिन वह किसी से बात करना पसंद नहीं करती। वह स्कूल में न तो किसी के साथ बात करती थी और न ही हंसने-खेलने में उसकी दिलचस्पी थी। पढ़ाई में भी वह लगातार पिछड़ती जा रही थी। सोसाइटी के बच्चे उसे कई नामों से चिढ़ाते थे। अक्सर वह बीमार रहती थी। कभी खांसी, कभी जुकाम, तो कभी चोट लग जाना उसके साथ आए दिन होता रहता था। साक्षी की इस हालत को समझने के बाद आपको लग रहा होगा कि बच्ची का नेचर ही ऐसा होगा। लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि उसकी इस हालत के लिए उसके परिवार का तनावपूर्ण माहौल जिम्मेदार है। 

पैरंट्स के तनावपूर्ण संबंध 
पैरंट्स के तनावपूर्ण संबंध बच्चे के मन में खौफ पैदा कर देते हैं। उसे लगता है कि कब पापा मम्मी पर गुस्सा हो जाएं और उसे गालियां देना व पीटना शुरू कर दें। यही वजह बच्चे का बिस्तरा गीला करने और अंगूठा चूसने जैसी कई चीजों की वजह बनती हैं। डर से वह बिस्तर गीला करता है, तो अंगूठा चूसना उसे इमोशनल सिक्युरिटी देता है। 

अपोलो के साइकाइट्रिस्ट राजेश अग्रवाल कहते हैं, 'अगर आप बच्चे को इस तरह की समस्या से दूर रखना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको खुद को बदलना होगा। आप दोनों के बीच संबंध कितने भी तनावपूर्ण क्यों न हों, लेकिन इन्हें बच्चों के सामने न जाहिर होने दें।' अक्सर पैरंट्स बच्चे के सामने परिवार व रिश्तेदारों की पॉजिटिव व नेगेटिव बातें करते रहते हैं, जिससे बच्चे के मन पर गहरा असर पड़ता है और वह उसी इमेज को आगे तक लेकर चलता है। यही नहीं, बच्चे के सामने आपस में एक-दूसरे को भी भला बुरा न कहें। आप तो कहकर थोड़ी देर में ठीक हो जाते हैं, लेकिन बच्चे के दिमाग में अपनी सोच के मुताबिक इमेज बनती चली जाती है। 

उसके साथ रहें 
बच्चे भी कई तरह की दिक्कतों से गुजरते हैं। मसलन, स्कूल के माहौल में मिक्स न हो पाना या कोई चैप्टर समझ में न आना वगैरह। इसके लिए वे अपनी बातों को अपने दोस्तों व पैरेंट्स से शेयर करते हैं, ताकि कोई समाधान निकालकर उस दिक्कत से बाहर निकल सकें। लेकिन पैरंट्स के ध्यान न देने पर वे अपनी दिक्कतों को अंदर दबा देते हैं, जो तनाव के रूप में बाहर आता है। यही वजह होती है कि धीरे-धीरे बच्चा अकेलेपन का शिकार हो जाता है और चुप रहने लगता है। 

नोएडा के मेट्रो हॉस्पिटल में चाइल्ड स्पेशलिस्ट अजय श्रीवास्तव कहते हैं , 'बच्चे के अच्छे डेवलेपमेंट के लिए पैरंट्स को बच्चे की मानसिक स्थिति पर पूरीनजर रखना जरूरी है , पैरंट्स के पास उसकी रोज की परेशानियों को सुननेका समय नहीं होता। इससे बच्चे में स्कूल के साथ - साथ पैरंट्स के प्रति भीअविश्वास होने लगता है। उसे लगने लगता है कि इस दुनिया में उसका कोईनहीं है। टीचर उसे डांटती है , दोस्त मजाक बनाते हैं और घर पर पैरंट्सउससे बात नहीं करते। इसी सोच के गहराने के साथ अपने अपने में सिमटताचला जाता है। ' 

अमूमन पैरंट्स जरूरी निर्देश देने के अलावा बच्चे पर ध्यान नहीं देते , जिससे उनमें एक गैप आता चला जाता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए आप हररोज बच्चे से उसके स्कूल , दोस्तों , पढ़ाई , शौक वगैरह के बारे में बात करें।उसे नई जिम्मेदारियों का सामना करना सिखाना भी आपकी ड्यूटी है। वैसे ,एक बात अच्छी तरह जान लें कि उसके लिए किसी भी चीज से ज्यादाआपके प्यार और विश्वास की जरूरत है। आप उसे इतना प्यार दें कि आपसेअलग होने की स्थिति में उसे यह महससू नहीं होना चाहिए कि वह आपकोखो रहा है। यह बात उसे मानसिक तौर पर मजबूत करेगी, तो उसकाआत्मविश्वास भी बढ़ाएगी। 
 
बच्चे को दूर ही रखें 
झगड़ा होने पर बच्चे को इधर से उधर संदेश पहुंचाने का माध्यम न बनाएं।बच्चा एक व्यक्ति की सुनता है और फिर दूसरे की। ऐसी स्थिति में उसके लिएसही - गलत तय करना मुश्किल होता है और यह चीज उसके अंदर असुरक्षाकी भावना भर देती है। यही असुरक्षा उसके पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करतीहै। इसलिए बच्चे को अपनी लड़ाई से दूर ही रखें। साथ ही , बिना बात के उसेफटकारें नहीं और न ही उसके साथ ज्यादा सख्ती बरतें

No comments: