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बेहतर है एक बढि़या छाता ले लिया जाए

मौसम अपना हर रंग खूब दिखा रहा है। कभी तेज धूप अटैक करती है, तो कभी सामना बारिश से होता है। मौसम के इन वारों से बचने के लिए बेहतर है एक बढि़या छाता ले लिया जाए। तो जानते हैं, बाजार के पास आपके लिए क्या ऑप्शंस हैं :

बात धूप से बचने की हो या फिर बारिश से, अंब्रेला आपके बहुत काम आएगा। वैसे, छाते का बाजार काफी बड़ा है और यहां आपको लगभग हर वैरायटी व रेंज का छाता मिलेगा। बस आपको अपनी चॉइस फाइनल करनी है।

ट्रेंडी अंब्रेला
आप चाहते हैं आपके अंब्रेला की सभी तारीफ करें, तो आप ट्रेंड के मुताबिक अंब्रेला ही खरीदें। वैसे, इन दिनों पोलका डॉट्स, फ्रिल, डिजिटल प्रिंट्स, चेक्स, ट्राइबल प्रिंट्स वगैरह वाले अंब्रेला ट्रेंड में हैं। अगर आप कलर के मुताबिक अंब्रेला खरीदना चाहते हैं, तो ब्राइट पिंक, वाइट, सी ब्लू, एक्वा ग्रीन, लेमन यलो वगैरह में इसे ले सकते हैं। इसके अलावा, चाइनीज व जैपनीज अंब्रेला भी लड़कियों को खूब पसंद आ रही हैं। बता दें कि ये वन फोल्ड वाले छाते हैं। हालांकि इन्हें कैरी करने में थोड़ी दिक्कत होती है, लेकिन देखने में ये बेहद खूबसूरत होते हैं।

वैरायटी है खूब
बाजार में आपको अंब्रेला कलर, साइज व पैटर्न के अनुसार तमाम स्टाइल में मिल जाएंगे। वैसे, कलरफुल छातों की डिमांड ज्यादा रहती है, लेकिन डिफरेंट टच के लिए ट्रांसपैरंट अंब्रेला लेना अच्छा ऑप्शन है। दरअसल, इस बार बाजार में प्लास्टिक और फैब्रिक को कंबाइन करके तैयार किए गए छाते काफी चल रहे हैं। इनका लुक वाकई अट्रैक्टिव है।

इनमें आपको कई डिजाइंस मिल जाएंगे , जैसे बस प्लास्टिक से बना अंब्रेला। फोल्ड के बेस पर भी अंब्रेला चुना जा सकता है। इसमें वन फोल्डर , टू फोल्डर व थ्री फोल्डर अंब्रेला आपको मिल जाएंगे। अगर आप चाहते हैं कि अंब्रेला बैग में कैरी करें , तो आप थ्री फोल्डर अंब्रेला ले सकते हैं। हालांकि अगर आपके लिए कंफर्ट से ज्यादा स्टाइल मैटर करता है , तो वन फोल्डर अंब्रेला चूज करें। बताते चलें कि वन फोल्डर अंब्रेला में एनिमेटेड प्रिंट्स व डिजिटल प्रिंट्स के अंब्रेला ज्यादा ट्रेंड में हैं।


यूनीसेक्स अंब्रेला
बाजार में अब यूनीसेक्स अंब्रेला भी खूब मिल रहे हैं। इन डिजाइंस को लड़के व लड़कियां दोनों की पसंद को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इनमें ज्यादामर डार्क कलर्स आ रहे हैं , जैसे ब्राउन , ब्लैक , ग्रे। इनमें आप हैवी पैटर्न्स चूज करें , तो बेहतर होगा।


प्राइस रेंज
आप अगर सिंपल अंब्रेला लेना चाहते हैं , तो यह आपको 80 रुपये से 150 रुपये के बीच में मिल जाएगा। इस रेंज में प्लेन व चेक्स वाले अंब्रेला खास हैं। वहीं , डबल फोल्ड व फ्लावर प्रिंट्स के अंब्रेला की कीमत 150 रुपये से 250 रुपये तक के बीच है। इनमें आप डबल शेड्स वाले छाते भी ले सकते हैं। अगर आप चाइनीज या जैपनीज अंब्रेला लेना चाहते हैं , तो इनकी कीमत 200 रुपये से शुरू है। इसमें आपको बॉटम में फ्लावर या फ्रिल वर्क के साथ अंब्रेला मिल जाएंगे।

मल्टी कलर्ड अंब्रेला भी इस मौसम के लिए बेस्ट हैं। इसमें आपको दो - तीन शेड्स के कॉम्बिनेशन से लेकर बेहद कलरफुल अंब्रेला तक मिलेंगे। अगर आप ट्रांसपैरंट अंब्रेला खरीदना चाहते हैं , तो इनकी कीमत 300 रुपये से शुरू होती है। साटन फैब्रिक में भी अंब्रेला काफी पसंद किए जा रहे हैं। इन पर सन फ्लावर या पीकॉक वगैरह की तस्वीर बनी हुई है। इनकी कीमत 350 रुपये से शुरू है।

हालांकि पहले छाते बस राउंड शेप में ही आते थे , लेकिन अब इनमें कट वर्क भी देखने को मिल रहा है। ऐसे में फ्लावर कट , स्क्वेयर कट , ट्राइएंगल कट वगैरह में अंब्रेला मिल जाएंगे। इनकी कीमत 400 रुपये से शुरू होती है।

यही नहीं , बाजार में एक डिफरेंट स्टाइल की अंब्रेला भी इन दिनों खूब छाई हुई है। दरअसल , यह अंब्रेला ऊपर से प्लेन व अंदर से प्रिंटेड होती हैं। यानी अंब्रेला के अंदर बने डिजाइन आप खुद ही देखकर खुश हो सकते हैं। यह आपको 350 रुपये से मिलना शुरू होगा।


किड्स अंब्रेला
छाते की जरूरत बच्चों को भी है और जब तमाम चीजों में किड्स स्पेशल वैरायटी है , तो भला छाते में उनकी चॉइस का ध्यान क्यों नहीं रखा जाता। यही वजह है कि बच्चों की पसंद को ध्यान में रखते हुए उनके लिए छातों की खासी बड़ी रेंज मौजूद है। इनमें खास हैं अल्फाबेट , कार्टून करैक्टर्स और एनिमल प्रिंट्स वाले छाते। इनकी रेंज 200 रुपये के आसपास की है। हालांकि वर्क के हिसाब से यह थोड़ी ऊपर भी जा सकती है।

ट्रैवलिंग टिप्स



ट्रैवलिंग के दौरान ज्यादा सामान लेकर चलना आसान नहीं होता। ऐसे में एक ही बैग या सूटकेस में ज्यादा सामान रखने के लिए दिखानी होगी थोड़ी स्मार्टनेस। जानते हैं इसी से जुड़े कुछ टिप्स:

घुमक्कड़ी हो या काम का सिलसिला, ट्रैवलिंग लाइफ का एक अहम हिस्सा है। यूं तो इसे हम बहुत एंजॉय करते हैं, लेकिन सामान को सही तरीके से कैरी करना इसे और बेहतर बना सकता है।

  • बेल्ट्स को सूटकेस के घेरे के मुताबिक रखें। इस तरह ये रोल करने की तुलना में कम जगह लेंगे।
  • छोटी-छोटी चीजों को आप शूज में रख सकते हैं।
  • पजामे या शॉर्ट्स की जगह सफर में जींस पहनकर चलें। इससे सूटकेस में जगह बचेगी।
  • अगर बाहर जाने के दौरान आप कपड़े धो सकते हैं, तो हर टाइप की दो चीजें कैरी करें। मसलन दो टी-शर्ट्स, शॉर्ट्स के दो पेयर। इस तरह आपको ज्यादा सामान नहीं उठाना पड़ेगा।
  • चीजों को सूटकेस के जिप कंपार्टमेंट में रखना भी स्टोरिंग स्पेस बचाता है। हां, तब आपको यह जरूर ध्यान रखना होगा कि आपने कहां क्या रखा है।
  • ज्यादा कपड़ों के लिए आप 'इंटरवीविंग मेथड' यूज कर सकते हैं। मसलन सूटकेस में पहले पैंट्स व ड्रेसेज जैसी लंबी ड्रेसेज रखें। फिर उसमें जैकेट, शर्ट्स और ब्लाउज वगैरह इनमें रखें। कपड़ों की हर लेयर में टिश्यू पेपर रखें। इससे कपड़ों में रिंकल्स नहीं पड़ेंगे।
  • पासपोर्ट, बर्थ सर्टिफिकेट वगैरह को जिप - लॉक बैग में रखें। इससे सारे डॉक्युमेंट्स एक जगह रहेंगे और इनके खराब होने का डर भी नहीं होगा।
  • अगर ट्रैवल के दौरान आप अपने साथ लैपटॉप , आईपॉड , हेयर ड्रायर, इलैक्ट्रिक रेजर वगैरह साथ ले रहे हैं, तो अलग - अलग अडैप्टर की बजाय यूनिवर्सल अडैप्टर रखें। इससे आपकी बहुत सारी जगह बचेगी।
  • चाबियां, सनग्लासेज, घड़ी वगैरह आप जींस या जैकेट की पॉकेट में रखकर जगह बचा सकते हैं।
  • बेहतर होगा कि कॉस्मेटिक्स आप ट्रैवल साइज में ही खरीदें। इससे आपके लिए उन्हें रखना आसान रहेगा।
  • ऐसी ड्रेसेज रखें, जिन्हें आप मिक्स एंड मैच करके पहन सकें।
  • अगर बैकपैक कर रहे हैं, तो हल्की चीजों को नीचे और भारी आइटम्स को ऊपर रखें। इस तरह सामान भी पूरा आएगा और बैग उठाने में भारी नहीं लगेगा।
  • अगर किसी के लिए गिफ्ट लेकर जा रहे हैं, तो उसे रैप न करवाएं। इस तरह सामान हल्का रहेगा और जगह भी बचेगी।

अपने ब्रा की सही नाप कैसे लें?

यह लेख आपको आपका ब्रा साइज मापने के लिये तरीका बतायेगा जिससे आपको आपके ब्रा के साइज तथा ब्रा का कप साइज (Chest Size and Cup Size) का सटीक नाप मिलेगा । स्तन के साइज का माप तथा ब्रा का कप साइज जानना इस लिये भी जरुरी है चूंकि आज कल बाजर में विभिन्न स्टाइल के विभिन्न कंम्पनियों के उत्पाद बाजर में उपलब्ध है और सभी के नम्बर या साईज का माप भिन्न होता है । कप साइज का माप अलग होता है जो आपके स्तनों को सुंदर और सुडौल दिखने के लिये आवश्यक है 

“लिंगरी स्पेशलिस्ट” एक ऐसा विशेषज्ञ होता है जिसने ब्रा की सही फिटिगं करने का ट्रेनिंग लिया हो । “लिंगरी स्पेशलिस्ट” से ब्रा की सही फिटिंग करवाने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है । “लिंगरी स्पेशलिस्ट” से ब्रा की सही फिटिगं करवाने का फायदा यह है कि आपका ब्रा एकदम सही तरह से आपके वक्ष साईज फिगर के हिसाब से फिट होगा । इसके बाद आपको ब्रा साईज की अलग अलग स्टाईल की ब्रा को पहन पहन कर देखना होगा क्योंकि सभी ब्रा एक ही तरह से फिट नहीं होती । अलग अलग स्टाईल की ब्रा पहन कर देखने से आपको खुद ही महसूस हो जायेगा कि कौन सी ब्रा सबसे अच्छी तरह आपके ब्रेस्ट साईज के हिसाब से फिट हो रही है साथ ही कौन सी ब्रा आपके कपडे के अन्दर सबसे अच्छी दिख रही है । अगर आप अपना ब्रा साईज अपने घर पर ही नापने में ज्यादा सहुलियत महसूस करती हैं तो फिर नीचे लिखे स्टेप्स को अपना कर आप अपना चेस्ट साईज या वक्ष साईज का पता लगा सकती हैं ।

अपने वक्ष (ब्रेस्ट) के नीचे कपडे नापने वाला टेप लपेटें, जिससे कि टेप का सिरा वक्ष के नीचे से होता हुआ पीठ से होकर आकर आपस में मिल जाए । अब जितना टेप पर नंबर आये उसमें 5 और जोडें ।

उदाहरण के लिए आपके वक्ष का टेप के हिसाब से नाप है:
27
अब इसमें जोडें :
+5
=
32
मतलब आपका ब्रा चेस्ट साईज है: 32


उदाहरण के लिए आपके वक्ष का टेप के हिसाब से नाप है:
28
अब इसमें जोडें :
+5
=
33
मतलब आपका ब्रा चेस्ट साईज है: 34

अब आप अपने वक्ष के सबसे बडे या वक्ष के सबसे उभार वाले भाग की नाप लेंगी जिसको “बस्टलाईन” कहते हैं । इसकी नाप लेते वक्त आपके हाथ एकदम नीचे होने चाहिए अत: यह नाप आप स्वयं अकेले नहीं ले सकती हैं इसमे आपको किसी दूसरे कि मदद लेनी होगी । ब्स्टलाईन की नाप लेने में आप अपनी मॉं, बहन या दोस्त की मदद ले सकती हैं ।

आपके बस्टलाईन की नाप आपके ब्रा चेस्ट साईज नाप से ज्यादा होगी । आपके ब्रा चेस्ट साईज नाप और बस्टलाईन की नाप का अंतर ही आपका ब्रा कप साईज है ।


उदाहरण के लिए आपके बस्टलाईन की नाप है :
34”
और आपका ब्रा चेस्ट साईज नाप है (27” + 5”)
32”
अंतर हुआ 34 – 32
= 2 इंच
अत: आपका ब्रा कप साईज हुआ "B cup"

Guide to Figuring Out Bra Cup Size

लड़कियां ब्रा कप साईज कैसे मापें



Cup Size Difference
AA Cup ½ inch
A Cup 1 inch
B Cup 2 inch
C Cup 3 inch
D Cup 4 inch

2011 में रोमांटिक रिलेशनशिप

नया साल शुरू हुआ है, तो क्यों न आप भी अपने रोमांटिक रिलेशनशिप में कुछ नया ट्राई करें! अगर आप चाहते हैं कि आपकी डेटिंग हिट रहे, तो बस कुछ बातों का खयाल रखें। नए साल पर आप चाहते हैं कि आपके और आपके लव पार्टनर के बीच रोमांस हमेशा बना रहे, तो आप इन 11 फंडों को अपनाकर अपनी रोमांस लाइफ को एंन्जॉय कर सकते हैं। चलिए एक नजर डालते हैं 2011 के इन 11 फंडों पर :

1. बिहेवियर में बैलेंस
जब अपने लव पार्टनर के फ्रेंड्स से मिलें या उसे अपने दोस्तों से मिलवाएं, तो उस सिचुएशन में अपने बिहेवियर को बैलेंस रखें। कभी भी हिल- हिलकर और उछल- उछलकर बातें करने से बचें। बॉडी लैंग्वेज से आपकी मैच्योरिटी झलकती है। वैसे भी, आमतौर पर पुरुष गंभीर नेचर की महिलाओं को पसंद करते हैं। हालांकि कभी- कभार हंसी मजाक भी उन्हें पसंद आता है, लेकिन हमेशा आप बच्चों की तरह बिहेव करके उन्हें सबके सामने शर्मिंदा ना करें।

2. यादगार बातें
आप जब अपने लव पार्टनर के साथ टाइम बिताएं, तो उसके साथ अपने पुराने दिनों को याद करें। इससे आप दोनों का रिलेशन और ज्यादा मजबूत होगा। आप एक-दूसरे की अच्छी बातें भी नोट्स पर लिखकर आपस में शेयर करें।

3. एक्सप्रेस करें
आप अपने लव पार्टनर को समय-समय पर बताते रहे कि आप उन्हें कितना प्यार करते हैं। आप उसकी चीजों की तारीफ करना भी ना भूलें। आप उसके हेयर स्टाइल व ड्रेसेज की तारीफ करें। आप अपनी फिलिंग्स भी अपने पार्टनर के साथ शेयर करें। इससे आप दोनों के बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग डिवेलप होगी।

4. खुश रहें
आप खुश रहें और खुश दिखने की कोशिश करें। अगर आप हमेशा चिड़चिड़ी या अपने लव पार्टनर को को टोकते रहेंगे, तो आपका पार्टनर आपकी कंपनी एन्जॉय नहीं कर पाएगा। वैसे, लड़कियों के हार्मोंस हमेशा चेंज होते रहते हैं और इससे उनका बिहेवियर भी बदलता रहता है। ऐसे में आप कोशिश करें कि आपके रूखे व्यवहार से आपका पार्टनर परेशान ना हो।

5. फिट दिखें
आप चाहती हैं कि आपका फ्रेंड आपसे मिलने के लिए हमेशा बेकरार रहे , तो आप छुईमुई की तरह बिहेव ना करें। अकसर लड़कियां अपने लव पार्टनर के साथ थकने या बेकार में परेशान रहती हैं। कोई भी लव पार्टनर नहीं चाहेगा कि उसका पार्टनर परेशान रहे। ऐसे में फिट दिखें।

6. सोबर लगें
अगर आप यह सोचते हैं कि अपने लव पार्टनर के सामने लेटेस्ट ट्रेंड की ड्रेसेज या फिट ड्रेसेज पहनकर उसे इम्प्रेस कर लेंगे , तो ऐसा कतई नहीं है। आप सिंपल ड्रेस भी अच्छे से कैरी करेंगे , तो वह भी आप पर खूब फबेगा। इससे आपका पार्टनर भी आपसे इम्प्रेस होगा।

7. परफेक्ट पार्टनर
आप ही वह लड़की नहीं हैं , जिसे सही परफेक्ट पार्टनर की तलाश है। लड़कों को भी सही मिस परफेक्ट की तलाश रहती है , इसलिए लव गेम खेलने में कोई हर्ज नहीं है। हो सकता है कि इस जरिए ही आपको अपना परफेक्ट पार्टनर मिल जाए।

8. इग्नोर ना करें
अगर आपको कोई लड़का या लड़की पसंद है , तो उसे इग्नोर करने का ड्रामा ना करें। अगर आप उसे इग्नोर करते रहे , तो वह किसी और के साथ एंगेज हो सकता है। अगर आप उसे लाइक करते हैं , तो उसे तुरंत रिस्पॉन्स दें। उसे लंबा वेट ना करवाएं।

9. अहसास करवाएं
आप जब उसके साथ अच्छा फील करें , तो उसे इसका अहसास दिलवाएं। ऐसे में आप उसका हाथ पकड़ें , हग या किस करें। इससे आपके पार्टनर को अहसास होगा कि आप उसके लिए स्पेशल फील करते हैं।

10. फैमिली को जानें
आपके लव पार्टनर की फैमिली में कौन है , किसका कैसा बिहेव है वगैरह जानने की कोशिश करें। इससे आपके पार्टनर को लगेगा कि आप उसकी फैमिली को भी जानना चाहते हैं।

11. पजेसिव बनें
आपका लव पार्टनर ऑफिसर में है , उसने खाना खाया या नहीं व उसकी हेल्थ को लेकर आप पजेसिव बनें। इससे आप दोनों एक - दूसरे के ज्यादा करीब आएंगे और वह आपके लिए स्पेशल फील करेगा।

पति और पत्नी में सामंजस्य

क्या आपने कभी देखा या सोचा है कि किसी दिन पुलिस का कुछ काम टीचर कर ले और टीचर का कुछ काम इंजीनियर। नहीं ना.. फिर क्यों बराबरी का झंडा लेकर चलने वाले ऐसे खयाली पुलाव पकाते हैं कि पति भी घर के काम में जुट जाएं, खाना पकाएं या बर्तन धोएं।

खासकर पत्नी अगर हाउस वाइफ हो और पति कामकाजी हो तो इस तरह की बात करना भी बेस्ट हाफ के नाम पर बेमानी है। शुरुआत में आपको मेरी बात जरूर तथाकथित पुरुषवादी अहंकार से भरपूर लगेगी लेकिन आप अगर ऐसे थोड़ा ध्यान से पढ़े और समझें तो पाएंगे कि कामयाब गृहस्थी के लिए जरूरी है कि ऐसा हरगिज न किया जाए।

चाहे कोई भी संस्थान हो, घर, परिवार, दोस्त या ऑफिस, उसकी कामयाबी के लिए जरूरी है कि काम के बंटवारे में सामंजस्य हो, प्लानिंग के साथ उसे किया जाए और रोल इस तरीके से तय हों कि उसमें कोई कन्फ्यूजन न रहे। लेकिन जब यह बात घर के काम में आती है तो पता नहीं किस फैशन की धार में हम इसे भूलने लगे हैं।

गुलाबी नारीवाद की धारा में प्रचार किया जाने लगा कि अच्छा पति वही होता है जो घर के काम में पत्नी का हाथ बंटाए, रसोई में घुसे... फलाना फलाना। इस बात को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए कि सात से दस घंटे तक दफ्तर में सिर खपाने के बाद थकाहारा आया मर्द अगर मजबूरी में भी ऐसा न कर पाया तो उसे माफ कर दिया जाए, या फिर उसे बुरे पति का तमगा न दिया जाए। क्या कभी कोई पति अपनी हाउस वाइफ से उम्मीद करता है कि वह उसकी कोई फाइल निपटा दे, या उसके दफ्तर का कोई काम कर दे।

ऐसा नहीं है कि घर के काम करने से नफरत है या उसे कम माना जाता है, वह बहुत अच्छा काम है, कभी प्यार दुलार में या छुट्टी के दिन किया भी जा सकता है, लेकिन अच्छे पति के लिए इसे शर्त मान लेना बेस्ट हाफ के खिलाफ ही होगा।

बल्कि कहें कि खतरनाक भी हो सकता है। इसका असर घर के कामकाज और पति के दफ्तर के कामकाज की क्वॉलिटी पर पड़ सकता है। उम्मीदों का इस तरह का ब्लैकमेलिंग नाजायज दबाव बनाने से अच्छा है कि पति और पत्नी के जो तय रोल हैं, दोनों उन्हें ही अच्छी तरह निभाएं।

सेक्स एजुकेशन की जरूरत

वात्स्यायन कहते हैं कि सेक्स एजुकेशन की जरूरत इंसान को है, न कि जानवरों को। वजह यह है कि जानवर एक खास मौसम में सेक्स संबंध बनाते हैं, 

जबकि इंसान हर मौसम में सेक्स करता है। अगर इंसान को सेक्स एजुकेशन की जरूरत है ही, तो क्यों न इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जानी चाहिए, ताकि जवानी की दहलीज पार करते वक्त उसके कदम न बहकें। बच्चों के लिए सेक्स एजुकेशन की जरूरत पर डॉक्टर प्रकाश कोठारी की स्पेशल रिपोर्ट : 

सेक्स के मुद्दे पर जानवरों और इंसान में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। जानवरों में सेक्स की इच्छा ज्यादातर प्रजनन के लिए होती है, जबकि इंसान के केस में सेक्स का मकसद प्रजनन के साथ-साथ आनंद लेना भी होता है। जानवरों में कोई नैतिक मूल्य नहीं होते, न ही विवाह जैसी कोई संस्था होती है, लेकिन इंसान ने एक समाज की रचना की है और विवाह जैसा इंस्टिट्यूशन बनाया है। जाहिर है, इन चीजों के लिए कुछ नीति-नियम का पालन भी उसे करना होता है। 

क्यों जरूरी ?
आज समाज कितना भी पुरातनपंथी हो, लेकिन इंटरनेट, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे माध्यम लोगों की सेक्स की इच्छा को इतना बढ़ा देते हैं कि उसे कंट्रोल करना नामुमकिन हो जाता है। नतीजा होता है, किशोरावस्था में अनचाहे गर्भ, यौन-जनित बीमारियों और यौन अपराधों की समस्या में बढ़ोतरी। सेक्स से जुड़ी गलतफहमियां और गलत धारणाएं इस स्थिति को और कठिन बना देती हैं। ऐसी बुराइयों को दूर करना है तो उसका एक ही तरीका है और वह है सेक्स एजुकेशन। सेक्स एजुकेशन का मतलब यह नहीं है कि हमें लोगों को वह चीज सिखानी है, जो वे नहीं जानते, बल्कि इसका मकसद है उन्हें ऐसा आचरण करना सिखाना, जिसके वे अभ्यस्त नहीं हैं। 

हमारे देश की कुल जनसंख्या का एक-तिहाई हिस्सा किशोर हैं। यही टीनएजर्स आगे चलकर देश संभालेंगे। इसके लिए अभी उन्हें यह ज्ञान देना देश के लिए फायदेमंद है। देश को अगर आर्थिक प्रगति करनी है तो सेक्स एजुकेशन देना बहुत जरूरी है। इसके बगैर आर्थिक प्रगति नामुमकिन है। फाइनैंस मिनिस्टर कितना भी अच्छा बजट दे दें, दो समस्याएं पूरा बजट चाट जाएंगी। पहली बढ़ती हुई जनसंख्या और दूसरी एचआईवी एड्स। ये दोनों समस्याएं देश को खा सकती हैं और इनका इलाज युद्धस्तर पर होना चाहिए। इनका इलाज करने का एकमात्र तरीका है - सेक्स एजुकेशन। आंकड़े बताते हैं कि जिन देशों में सेक्स एजुकेशन सही तरीके से दी गई है, वहां इन दोनों समस्याओं को निबटाया जा चुका है। स्वीडन इसका उदाहरण है। 

क्या है सेक्स एजुकेशन ?
यौन शिक्षा या सेक्स एजुकेशन मानव प्रजननतंत्र की आंतरिक संरचना और शरीर क्रिया का विज्ञान है। यह केवल इस बात की शिक्षा नहीं है कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं, बल्कि इसमें गर्भधारण, गर्भनिरोध, यौन मनोविज्ञान, यौन विविधताएं और प्रेम के घटकों के बारे में जानकारी दी जाती है। इस जानकारी से मन में एक ऐसी नींव पड़ती है, जिसके आधार पर किसी शख्स का विकास एक सेहतमंद और जिम्मेदार वयस्क के रूप में होता है। सेक्स एजुकेशन किसी शख्स को अपनी सेक्सुअलिटी की पहचान देती है। 

सेक्स एजुकेशन कब  ?
सेक्स एजुकेशन की शुरुआत करने की कोई सही या गलत उम्र नहीं होती। हकीकत में देखें तो इसकी अनौपचारिक शुरुआत तो पालने से ही हो जाती है। जैसे-जैसे बच्चे का विकास होता जाता है, उसकी उम्र के मुताबिक उसे शिक्षा दी जाती है। अवचेतन में माता-पिता बच्चे के जन्म के समय से ही उसे सेक्स एजुकेशन देने लगते हैं। वे बच्चे को जिस तरह पकड़ते हैं, छूते हैं और उसके साथ व्यवहार करते हैं, उससे बच्चे में सेक्स एजुकेशन की नींव पड़ जाती है। बच्चे को यह महसूस कराना कि वह बहुत प्रिय है, आने वाली जिंदगी में सेक्स के प्रति उसके नजरिए और उसकी सेक्सुअलिटी पर गहरा असर डालता है। पैरंट्स आपस में जैसा व्यवहार करते हैं और परिवार के बीच आम जिंदगी में जिस तरह पेश आते हैं, उसी से बच्चे का आत्म-सम्मान और शारीरिक रूप-रेखा जैसी चीजें तय होती हैं। इसके अलावा बच्चे की प्रेम करने की जिज्ञासा, अंतरंगता और सुख-दुख बांटने की क्षमता पर भी गहरा असर होता है। 

अगर सेक्स एजुकेशन औपचारिक रूप से देनी हो, तो शुरुआत किशोरावस्था और यौन-व्यवहार शुरू होने से पहले ही कर देनी चाहिए। मिसाल के तौर पर लड़कों के वीर्य स्खलन से पहले और लड़कियों में मासिक धर्म शुरू होने से पहले यानी बच्चा जब आठवीं में आ जाए तभी आदर्श रूप से इस एजुकेशन की शुरुआत की जा सकती है। मोटा नियम यह है कि सेक्स एजुकेशन की शुरुआत बच्चों के सेक्सुअली मैच्योर होने से पहले ही हो जानी चाहिए। इस वक्त दिमाग सेक्स संबंधी ज्ञान को पाने लायक हो चुका होता है। यह उम्र ऐसी है, जब बदन में हॉर्मो का प्रॉडक्शन सबसे ज्यादा होता है। ज्यादा हॉर्मोन की वजह से बच्चे की सेक्स इच्छा भी ज्यादा तेज हो जाती है। सेक्स की इच्छा तेज होने की वजह से अनचाहे गर्भ, यौन-जनित बीमारियों और यौन अपराधों की समस्या में भी बढ़ावा हो सकता है। 

कैसे हो शुरुआत ?
बच्चे आमतौर पर जिज्ञासु होते हैं। सेक्स के प्रति भी उनके मन में तमाम सवाल होते हैं। अगर कोई बच्चा अपनी सेक्स संबंधी जिज्ञासा को अपने मां-बाप के सामने जाहिर नहीं करता, तो उसके मन में यह भाव हो सकता है कि उसके कुछ सवाल से उसके पैरंट्स असहज हो जाएंगे। अगर पैरंट्स सेक्स जैसे विषय पर सहज होंगे, तो बच्चे को महसूस होगा कि यह कोई ऐसा विषय नहीं है जिस पर बात करने की मनाही हो। जब कोई बच्चा किसी गर्भवती महिला को देखता है या उसे नाइट फॉल होता है तो उसके मन में 'क्या और कैसे' जैसे सवालों का अंबार लग जाता है। ऐसी स्थितियों में माता-पिता को अपने बच्चे को आश्वस्त करना चाहिए कि इन सबके बारे में उसकी जिज्ञासाएं सहज और नॉर्मल हैं। कई बार किसी पेपर या मैगजीन में बच्चे के बारे में सचित्र वर्णन या किसी विज्ञापन में बर्थ कंट्रोल के तरीकों की जानकारी बातचीत का प्रभावी स्त्रोत बन जाती है। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों के साथ दोस्ताना रिश्ता कायम करें। इससे बच्चों में उनकी इमेज ऐसे पैरंट्स के रूप में बनेगी, जिन्हें वे सहजता से अपनी जिज्ञासाएं बता सकते हैं। पैरंट्स के इस नजरिये से चाहे बच्चे को पूरी यौन शिक्षा न दी जा सके, लेकिन कम-से-कम इतना तो होगा कि जब भी उनके मन में कोई सवाल उठेगा तो वे अपने पैरंट्स से आसानी से पूछ सकेंगे। 

पैरंट्स रखें ध्यान 
बच्चों में सवाल पूछने की योग्यता को प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है और इसे रचनात्मक जिज्ञासा के रूप में लेना चाहिए। उनके सवालों के जवाब विश्वसनीयता के साथ और उनकी उम्र के मुताबिक देने चाहिए। मुमकिन है कि पैरंट्स किसी सवाल का जवाब न दे पा रहे हों। ऐसे में वे कह सकते हैं कि 'तुमने बहुत अच्छा सवाल पूछा है पर मुझे भी इसका जवाब पता नहीं है। चलो, साथ मिलकर जवाब ढूंढते हैं।' ऐसे पैरंट्स अपने बच्चों का भरोसा जीतने में ज्यादा कामयाब होते हैं। कई बार बच्चे सीधे सवाल करते हैं। वे पूछ सकते हैं 'मैं कहां से आया हूं?' इस सवाल के जवाब की शुरुआत कुछ इस तरह करनी चाहिए 'तुम अपनी मम्मी के शरीर से आए हो। मम्मी-पापा को आपकी जरूरत थी इसलिए आपको लाया गया।' अगर बच्चा यह देखेगा कि आपने उसके सवाल पर बेरुखा व्यवहार नहीं किया, तो वह आपको ज्ञान और मार्गदर्शन के एक स्त्रोत के रूप में देखेगा। इस सवाल से जुड़ी दूसरी जानकारियां उसके बड़े होने पर उसे दी जा सकती हैं। इस वक्त बच्चे को सेक्स कैसे होता है, उसकी डिटेल समझाने की जरूरत नहीं होती। हां, हाथ से बनाए गए किसी स्केच के जरिये उसे चीजें समझाई जा सकती हैं। 

कुछ बच्चे अपने प्राइवेट अंगों को बार-बार छूते रहते हैं। पैरेंट्स को ऐसे में यह डर सताने लगता है कि कहीं बच्चा बड़े होकर ज्यादा जुनूनी न हो जाए! चाहे लड़का हो या लड़की, बच्चों का अपने प्राइवेट अंगों को छूना एक सामान्य प्रक्रिया है क्योंकि प्राइवेट अंगों से आनंद की अनुभूति जुड़ी होती है। उसे हाथ लगाने से बच्चों को आनंद मिलता है। यह आदत धीरे-धीरे खुद ही कम हो जाती है। बहरहाल इतना ध्यान जरूर दें कि कहीं उसके प्राइवेट अंगों के पास कोई लाली, खुजली, सूजन या कोई इंफेक्शन तो नहीं है। अगर ऐसा हो तो डॉक्टर से संपर्क करें। 

पैरंट्स की चिंता 
कुछ पैरंट्स को यह चिंता सताती है कि सेक्स एजुकेशन से कहीं बच्चे का नुकसान न हो जाए। ऐसी चिंताओं का कोई आधार नहीं है। उम्र के मुताबिक दी गई साइंटिफिक सेक्स एजुकेशन बच्चे को कतई नुकसान नहीं पहुंचाएगी। अलबत्ता इसकी अनदेखी करने से जरूर नुकसान हो सकता है। सभी जानते हैं कि सही ज्ञान कभी नुकसान कर ही नहीं सकता। अगर माता-पिता का जवाब बच्चे की समझ से बाहर भी हो, तो भी इससे कोई नुकसान नहीं होगा। हकीकत में इस तरह भविष्य में बातचीत का रास्ता और खुलेगा। 

अगर आपको ऐसा लगता है कि बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने से उनके अंदर उत्तेजना बढ़ती है या उन्हें यौन-जनित बीमारियां हो सकती हैं, तो आप गलत हैं। सचाई यह है कि सेक्स एजुकेशन किसी शख्स की काम भावनाओं को उकसाती नहीं है, बल्कि उसकी जिज्ञासा को सही जानकारी द्वारा संतुष्ट करती है और अपनी सेक्सुअलिटी को पहचानने में उसकी मदद करती है। इससे टीनएजर्स में इतनी समझ विकसित हो जाती है कि वे अपने सेक्स आवेग को सही दिशा दे सकें और समलिंगी और विपरीतलिंगी विकल्पोंमें से सही और बेहतर विकल्प चुन सकें। यह एजुकेशन उन स्त्री-पुरुषों को पहचानने और समझने में भी मदद करती है, जो विकृत कामेच्छा और आवेगों वाले होते हैं। सही सेक्स एजुकेशन से साफ नजरिया विकसित होता है, जिसकी वजह से सामान्य सेक्स की समझ, भूमिका और सेक्स संबंधों को समझने में मदद मिलती है।

पैरंट्स एवं बच्चों के बिहेवियर और परफॉर्मेंस

सारे पैरंट्स की चाहत होती है कि वे अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश दें। वे कोशिश भी करते हैं, फिर भी ज्यादातर पैरंट्स बच्चों के बिहेवियर और परफॉर्मेंस से खुश नहीं होते। उन्हें अक्सर शिकायत करते सुना जा सकता है कि बच्चे ने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया... इसके लिए काफी हद तक पैरंट्स ही जिम्मेदार होते हैं क्योंकि अक्सर किस हालात में क्या कदम उठाना है, यह वे तय ही नहीं कर पाते। किस स्थिति में पैरंट्स को क्या करना चाहिए और क्यों, बता रही हैं प्रियंका सिंह :  

1. बच्चा स्कूल जाने/पढ़ाई करने से बचे तो... 
क्या करते हैं पैरंट्स 
  • पैरंट्स बच्चे पर गुस्सा करते हैं। मां कहती हैं कि तुमसे बात नहीं करूंगी। पापा कहते हैं कि बाहर खाने खिलाने नहीं ले जाऊंगा, खिलौना खरीदकर नहीं दूंगा। थोड़ा बड़ा बच्चा है तो पैरंट्स उससे कहते हैं कि कंप्यूटर वापस कर, मोबाइल वापस कर। तुम बेकार हो, तुम बेवकूफ हो। अपने भाई/बहन को देखो, वह पढ़ने में कितना अच्छा है और तुम बुद्धू। कभी-कभार थप्पड़ भी मार देते हैं। 
क्या करना चाहिए 
  • वजह जानने की कोशिश करें कि वह पढ़ने से क्यों बच रहा है? कई वजहें हो सकती हैं, मसलन उसका आईक्यू लेवल कम हो सकता है, कोई टीचर नापसंद हो सकता है, वह उस वक्त नहीं बाद में पढ़ना चाहता हो आदि। 
  • बच्चा स्कूल जाने लगे तो उसके साथ बैठकर डिस्कस करें कि कितने दिन स्कूल जाना है, कितनी देर पढ़ना है आदि। इससे बच्चे को क्लियर रहेगा कि उसे स्कूल जाना है। बहाना नहीं चलेगा। उसे यह भी बताएं कि स्कूल में दोस्त मिलेंगे। उनके साथ खेलेंगे। 
  • अगर स्कूल से उदास लौटता है तो प्यार से पूछें कि क्या बात है? क्या टीचर ने डांटा या साथियों से लड़ाई हुई। अगर बच्चा बताए कि फलां टीचर या बच्चा परेशान करता है तो उससे कहें कि हम स्कूल जाकर बात करेंगे। स्कूल जाकर बात करें भी लेकिन सीधे टीचर को दोष न दें। 
  • जो बच्चे हाइपरऐक्टिव होते हैं, उन्हें अक्सर टीचर शैतान मानकर इग्नोर करने लगती हैं। ऐसे में टीचर से रिक्वेस्ट करें कि बच्चे को ऐक्टिविटीज में शामिल करें और उसे मॉनिटर जैसी जिम्मेदारी दें। इससे वह जिम्मेदार बनता है। 
  • जिस वक्त वह नहीं पढ़ना चाहता, उस वक्त उसे मजबूर न करें, वरना वह जिद्दी हो जाएगा और पढ़ाई से बचने लगेगा। थोड़ी देर बाद फिर से पढ़ने को कहें। 
  • उसके पास बैठें और उसकी पढ़ाई में खुद को शामिल करें। उससे पूछें कि आज क्लास में क्या हुआ? बच्चा थोड़ा बड़ा है तो आप उससे कह सकते हैं कि तुम मुझे यह चीज सिखाओ क्योंकि यह तुम्हें अच्छी तरह आता है। वह खुश होकर सिखाएगा और साथ ही साथ खुद भी सीखेगा। 
  • छोटे बच्चों को किस्से-कहानियों के रूप में काफी कुछ सिखा सकते हैं। उसे बातों-बातों और खेल-खेल में सिखाएं जैसे किचन में आलू गिनवाएं, बिंदी से डिजाइन बनवाएं आदि। पढ़ाई को थोड़ा दिलचस्प तरीके से पेश करें। हर बच्चे की पसंद-नापसंद होती है। उसकी पसंद के सब्जेक्ट पर ज्यादा फोकस करें। 
  • कभी-कभी उसके फ्रेंड्स को घर बुलाकर उनको साथ पढ़ने बैठाएं। इससे पढ़ाई में उसका मन लगेगा। 
2. उलटा बोले, गालीगलौच करे तो... 
अक्सर पैरंट्स बुरी तरह रिएक्ट करते हैं। बच्चे को उलटा-सीधा बोलने लगते हैं। उस पर चिल्लाते हैं कि फिर से बोलकर दिखा। कई मांएं तो रोने लगती हैं, बातचीत बंद कर देती हैं या फिर ताने मार देती कि मैं तो बुरी हूं, अब क्यों आए मेरे पास? 
  • - बच्चा आप पर चीखे-चिल्लाए तो भी आप उस पर चिल्लाएं नहीं। उस वक्त छोड़ दें, लेकिन खुद को पूरी तरह नॉर्मल भी न दिखाएं, वरना वह सोचेगा कि वह कुछ भी करेगा, आप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बाद में जब उसका गुस्सा शांत हो जाए तो बैठकर बात करें कि इस तरह बात करना आपको बुरा लगा और इससे उसके दोस्त, टीचर सभी उसे बुरा बच्चा मानेंगे। 
  • उसे टाल दें। इसे लेकर बार-बार कुरेदे नहीं। अगर बार-बार बोलेंगे तो उसकी ईगो हर्ट होगी। हां, कहानी के जरिए बता सकते हैं कि एक बच्चा था, जो गंदी बातें करता था। सबने उससे दोस्ती खत्म कर ली आदि। 
  • बच्चे के सामने गाली या खराब भाषा का इस्तेमाल न करें। वह जो सुनेगा, वही सीखेगा। उसे बताएं कि ऐसी भाषा तो भिखारी बोलते हैं, रिक्शावाले भइया बोलते हैं। उनका बैकग्राउंड और वर्क कल्चर बिल्कुल अलग है और तुम्हारा बिल्कुल अलग। 
  • पांच-छह साल से बड़ा बच्चा जान-बूझकर पैरंट्स की मानहानि करने और खुद को पावरफुल दिखाने के लिए बोलता है कि आप अच्छे नहीं हैं। पैरंट्स भी बहुत आसानी से हर्ट हो जाते हैं। इसके बजाय आप कह सकते हैं कि तुम इतने अनलकी हो कि तुम्हारी मां गंदी है। इससे उसका पावरफुल वाला अहसास खत्म होगा। 
3. चोरी करे या किसी की चीजें उठा लाए तो.. 
पैरंट्स बच्चे को पीटने या डांटने लगते हैं। भाई बहनों के आगे उसे जलील करते हैं कि अपनी चीजें संभालकर रखना क्योंकि यह चोर है। कई बार कहते हैं कि तुम हमारे बच्चे नहीं हो सकते। अगर कोई दूसरा ऐसी शिकायत लाता है तो वे मानने को तैयार नहीं होते कि हमारा बच्चा ऐसा कर सकता है। वे पर्दा डालने की कोशिश करने लगते हैं। 
  • चोरी करने पर सजा जरूर दें, लेकिन सजा मार-पीट के रूप में नहीं बल्कि बच्चे को पसंदीदा प्रोग्राम नहीं देखने देना, उसे आउटिंग पर नहीं ले जाना, खेलने नहीं देना जैसी सजा दे सकते हैं। जो चीज उसे पसंद है, उसे कुछ देर के लिए उससे दूर कर दें। 
  • बच्चे का बैग रेग्युलर चेक करें, लेकिन ऐसा उसके सामने न करें। उसमें कोई भी नई चीज नजर आए तो पूछें कि कहां से आई? बच्चा झूठ बोले तो प्यार से पूछें। उसकी बेइज्जती न करें, न ही उसके साथ मारपीट करें। चीज लौटाने को कहें लेकिन पूरी क्लास के सामने माफी न मंगवाएं। बच्चा अगर पांच साल से बड़ा है, तब तो बिल्कुल नहीं। वह क्लास के सामने बोल सकता है कि यह चीज मुझे मिल गई थी। 
  • उसे अकेले में सख्ती से जरूर समझाएं कि उसने गलत किया। चोरी बुरी बात है। अगली बार ऐसा नहीं होना चाहिए। 
  • झूठी पनाह नहीं देनी चाहिए। अगर कोई कहता है कि आपके बच्चे ने चोरी की है तो यह न कहें कि वह ऐसा नहीं कर सकता। इससे उसे शह मिलती है। कहें कि हम अकेले में पूछेंगे। सबके सामने न पूछें लेकिन अकेले में पूरी इंक्वायरी करें। 
  • बच्चे को मोरल एजुकेशन दें। उसे बताएं कि आप कोई चीज उठाकर लाएंगे तो आप टेंशन में रहेंगे कि कोई देख न ले। इस टेंशन से बचने का अच्छा तरीका है कि चोरी न की जाए। 
  • पैरंट्स की जिम्मेदारी है कि वे बच्चे को जरूरत की सारी चीजें उपलब्ध कराएं। इससे उसका झुकाव चोरी की ओर नहीं होगा। 
4. बच्चा झूठ बोले तो... 
अक्सर मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। खुद को कोसने लगते हैं कि हमारी तो किस्मत ही खराब है। उन्हें लगता है कि बच्चे ने बहुत बड़ा पाप कर दिया है। उसके दोस्तों को फोन करके पूछते हैं कि सच क्या है? जब दूसरा कोई शिकायत करता है तो बिना सच जाने बच्चे की ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं कि हमारा बच्चा ऐसा नहीं कर सकता। वे दूसरों के सामने अपनी ईगो को हर्ट नहीं होने देना चाहते। 
क्या करना चाहिए 
  • बच्चा झूठ बोले तो ओवर-रिएक्ट न करें और सबसे सामने न डांटें। न ही उसे सही-गलत का पाठ पढ़ाएं। इसके बजाय उसे उदाहरण देकर उस काम के नेगेटिव पक्ष बताएं। उदाहरण में खुद को सामने रखें - मसलन, मैं जब छोटा था तो क्लास बंक करता था और घर में झूठ बोलता था लेकिन बाद में मैं पढ़ाई में पीछे रह गया या बाद में ढेर सारा काम करना पड़ता था। साथ ही, झूठ बोलने की टेंशन अलग होती थी। इस तरह से बात करने से वह खुद को कठघरे में खड़ा महसूस नहीं करेगा। 
  • खुद में सच सुनने की हिम्मत पैदा करें। हालात का सामना करें। घर में ऐसा माहौल रखें कि बच्चा बड़ी से बड़ी गलती के बारे में बताने से डरे नहीं। बच्चा झूठ तभी बोलता है, जब उसे मालूम होता है कि सच कोई सुनेगा नहीं। उसके भरोसा दिलाएं कि उसकी गलती माफ हो सकती है। 
  • बच्चा झूठ बोलना मां-बाप से ही सीखता है, जबकि 95 फीसदी मामलों में झूठ बोले बिना काम चल सकता है। 
5. उलटी-सीधी जिद करे तो... 
सीधा फरमान जारी कर देते हैं कि तुम जो मांग रहे हो, वह तुम्हें नहीं मिलेगा जबकि कई बार बच्चे की मांग जायज भी होती है। अगर साथ में कोई और तो अक्सर बिना सोचे-समझे बच्चे की इच्छा पूरी भी कर देते हैं ताकि उनकी बातचीत में दखल न हो या फिर दूसरों के सामने उनकी इमेज खराब न हो। 
क्या करना चाहिए 
  • बच्चे को हमेशा रोकें-टोकें नहीं। हर बात के लिए हां करना गलत है तो न करना भी सही नहीं है। 'डोंट डू दिस, डोंट टू दैट' का रवैया सही नहीं है। जो बात मानने वाली है, उसे मान लेना चाहिए। अगर उसकी कुछ बातें मान ली जाएंगी तो वह जिद कम करेगा। मसलन कभी-कभी खिलौना दिलाना, उसकी पसंद की चीजें खिलाना जैसी बातें मान सकते हैं। 
  • ध्यान रहे कि अगर एक बार इनकार कर दिया तो फिर बच्चे की जिद के सामने झुककर हां न करें। बच्चे को अगर यह मालूम हो कि मां या पापा की 'हां' का मतलब 'हां' और 'ना' का मतलब 'ना' है तो वह जिद नहीं करेगा। 
  • किसी भी मसले पर मां-पापा दोनों की सहमति होनी जरूरी है। ऐसा न हो कि एक इनकार करे और दूसरा उस बात के लिए मान जाए। अगर एक सख्त है और दूसरा नरम है तो बच्चा फायदा उठाता है। जो बात नहीं माननी, उसके लिए बिल्कुल साफ इनकार करें, जोर देकर करें और दोनों मिलकर करें। अगर घर में बाकी लोग हैं तो वे भी बच्चे की तरफदारी न करें। 
  • उसे कमजोर बनकर न दिखाएं, न ही उसके सामने रोएं। इससे बच्चा ब्लैकमेलिंग सीख लेता है और बार-बार इस हथियार का इस्तेमाल करने लगता है। 
  • यह न कहें कि अगर तुम यह काम करोगे तो हम वैसा करेंगे, मसलन अगर तुम होमवर्क पूरा करोगे तो आइसक्रीम खाने चलेंगे। उससे कहें कि पहले होमवर्क पूरा कर लो, फिर आइसक्रीम खाने चलेंगे। इससे उसे पता रहेगा कि अपना काम करना जरूरी है। ऐसे में फिजूल जिद बेकार है। 
  • बहस की बजाय कई बार समझौता कर सकते हैं कि चलो तुम थोड़ी देर कंप्यूटर पर गेम्स खेल लो और फिर थोड़ी देर पढ़ाई कर लेना। इससे बच्चा दुनिया के साथ भी नेगोशिएट करना सीख जाता है। हालांकि ऐसा हर बार न हो, वरना बच्चे में ज्यादा चालाकी आ जाती है। 
  • यह भी देखें कि बच्चा जिद कर रहा है या आप जिद कर रहे हैं क्योंकि कई बार पैरंट्स भी बच्चे की किसी बात को लेकर ईगो इशू बना लेते हैं। यह गलत है। 
6. टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर, गेम्स से चिपका रहे तो... 
कई पैरंट्स सीधे टीवी या कंप्यूटर ऑफ कर देते हैं। कई रिमोट छीनकर अपना सीरियल या न्यूज देखने लगते हैं। इसी तरह कुछ मोबाइल छीनने लगते हैं। कुछ इतने बेपरवाह होते हैं कि ध्यान ही नहीं देते कि बच्चा कितनी देर से टीवी देख रहा है या गेम्स खेल रहा है। कई बार मां अपनी बातचीत या काम में दखलंदाजी से बचने से लिए बच्चों से खुद ही बेवक्त टीवी देखने को कह देती हैं। 
  • बच्चे से रिमोट छीनकर बंद न करें और न ही अपनी पसंद का प्रोग्राम लगाकर देखने बैठ जाएं। अपना टीवी देखना कम करें। अक्सर बच्चे स्कूल से आते हैं तो मां टीवी देखती मिलती है। 
  • बच्चे की पसंद के हर प्रोग्राम में कमी न निकालें कि यह खराब है। उससे पूछें कि वह जो देख रहा है, उससे उसने क्या सीखा और हम भी वह प्रोग्राम देखेंगे। 
  • अखबार देखें और बच्चे के साथ बैठकर तय करें कि वह कितने बजे, कौन-सा प्रोग्राम देखेगा और आप कौन-सा प्रोग्राम देखेंगे। इससे बच्चा सिलेक्टिव हो जाता है। 
  • उसके कमरे में टाइम टेबल लगा दें कि वह किस वक्त टीवी देखेगा और कब गेम्स खेलेगा? अगर वह एक दिन ज्यादा देखता है तो निशान लगा दें और अगले दिन कटौती कर दें। 
  • विडियो गेम्स आदि के लिए हफ्ते में कोई खास दिन या वक्त तय करें। 
  • आप खुद भी हर वक्त फोन पर बिजी न रहें, वरना बच्चे से इनकार करना मुश्किल होगा। हां, उसे मोबाइल देते वक्त ही मोबाइल बिल की लिमिट तय करें कि महीने में उसे इतने रुपए का ही मोबाइल खर्च मिलेगा। दूसरों को दिखाने के लिए उसे महंगा फोन न दिलाएं। 
  • उसे बताएं कि ज्यादा लंबी बातचीत से शरीर को क्या नुकसान हो सकते हैं? इतना वक्त खराब करने से पढ़ाई का नुकसान हो सकता है आदि। इसी तरह बताएं कि चैटिंग करें लेकिन बाद में। 
  • अकेले में बच्चे का मोबाइल चेक करें। उसमें गलत एमएमएस नजर आएं या ज्यादातर मेसेज डिलीट मिलें तो कुछ गड़बड़ हो सकती है। 
  • कंप्यूटर ऐसी जगह पर रखें, जहां से उस पर सबकी निगाह पड़ती हो। इससे पता चलता रहेगा कि वह किस वेबसाइट पर क्या कर रहा है। इंटरनेट की हिस्ट्री चेक करें। कंप्यूटर पर बच्चे को फोटोशॉप या पेंट आदि सिखाएं। इससे वह कंप्यूटर का रचनात्मक इस्तेमाल कर सकेगा। 
  • अगर पता लग जाए कि बच्चे में बुरी आदतें पड़ गई हैं तो उसे एकदम डांटें नहीं लेकिन अपने बर्ताव में सख्ती जरूर ले आएं और उसे साफ-साफ बताएं कि आगे से ऐसा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ध्यान रहे कि उसकी गलती का बार-बार जिक्र न करें। 
  • बच्चे की अटेंशन डायवर्ट करें। उसे खेल खिलाने पार्क आदि ले जाएं। उसकी एनजीर् का इस्तेमाल सही दिशा में नहीं होगा, तो वह भटक सकता है। 
7. घर के कामों में हाथ न बंटाए तो... 
क्या करते हैं पैरंट्स 
अक्सर मांएं बच्चों से कहती हैं कि मेरे होते हुए तुम्हें काम करने की क्या जरूरत? बाद में जब बच्चा काम से जी चुराने लगता है तो उसे कामचोर कहने लगती हैं। कई मांएं लड़के-लड़की में भेद करते हुए कहती हैं कि यह काम लड़के नहीं करते, लड़कियां करती हैं। कई बार मांएं सजा के तौर पर काम कराती हैं, मसलन पढ़ नहीं रहे हो तो चलो सफाई करो, किचन में हेल्प करो आदि। बच्चे को लगातार सलाह भी देती रहती हैं, संभलकर गिर जाएगा, टूट जाएगा। 
  • बच्चे को काम बताएं और बार-बार टोकें नहीं कि गिर जाएगा या तुमसे होगा नहीं। बड़ों से भी चीजें गिर जाती हैं। बार-बार टोकने से बच्चे का आत्मसम्मान और इच्छा दोनों खत्म हो जाती हैं। इसके बजाय उसे प्रोत्साहित करें। 
  • बच्चे से पानी मंगवाएं। थोड़ा बड़ा होने पर चाय बनवाएं। सबसे सामने उसकी तारीफ करें कि वह कितनी अच्छी चाय बनाता है। इससे घर के कामों में उसकी दिलचस्पी बनने लगती है क्योंकि आज के वक्त में यह जरूरत बन गई है। 
  • दूसरों के सामने बार-बार शान से यह न कहें कि मैं अपने बच्चे से घर का कोई काम नहीं कराती। इससे उसे लगेगा कि घर का काम नहीं करना शान की बात है। 
8. पीयर प्रेशर में महंगी चीजों की डिमांड करे तो... 
महंगी चीजें मांगने पर या तो बच्चों को डांट पड़ती है या फिर पैरंट्स बेचारगी दिखाते हैं कि हम तो गरीब हैं। हम तुम्हें दूसरों की तरह महंगी चीजें नहीं दिला सकते। 
  • बच्चे के सामने बैठकर बातें करें कि आपके पास कितना पैसा है और उसे कहां खर्च करना है। उसके साथ बैठकर प्लानिंग करें कि इस महीने तुम्हें नए कपड़े मिलेंगे और अगले महीने मैं खरीद लूंगा। इससे उसे आपकी कमाई का आइडिया रहेगा। 
  • अक्सर पैरंट्स अपनी कटौती कर बच्चे की सारी इच्छाएं पूरी करते हैं। हर बार ऐसा न करें, वरना उसकी डिमांड बढ़ती जाएगी और वह स्वार्थी हो सकता है। 
  • उसके सामने यह न करें कि तुम्हारा वह दोस्त फिजूलखर्च है, वह बड़े बाप का बेटा है आदि। बच्चों को अपने दोस्तों की बुराई पसंद नहीं आती। कुछ कहना भी है तो घुमाकर अच्छे शब्दों में कहें कि तुम्हारा दोस्त बहुत अच्छा है लेकिन कभी-कभी थोड़ा ज्यादा खर्च कर देता है, जो सही नहीं है। 
  • बच्चे की नींव इस तरह तैयार करें कि उसकी संगत भी अच्छी हो। उसके दोस्तों पर निगाह रखें और उन्हें अपने घर बुलाते रहें। बच्चे को ऐसे बच्चों के साथ ही दोस्ती करने को प्रेरित करें, जिनकी वैल्यू आपके परिवार के साथ मैच करें। 
9. दूसरे बच्चों से मारपीट करे तो... 
कई पैरंट्स इस बात पर बहुत खुश होते हैं कि उनका बच्चा मार खाकर नहीं आता, बल्कि दूसरे बच्चों को मारकर आता है और वे इसके लिए अपने बच्चे की तारीफ भी करते हैं। दूसरे लोग शिकायत करते हैं तो उलटा पैरंट्स उनसे लड़ने को उतारू हो जाते हैं कि हमारा बच्चा ऐसा नहीं कर सकता। कुछ मांएं कहती हैं कि तुम दूसरे बच्चों को मारोगे तो इंजेक्शन लगवा दूंगी, टीचर से डांट पड़वा दूंगी या झोलीवाला बाबा ले जाएगा। थोड़े दिन बाद बच्चा जान जाता है ये सारी बातें झूठ हैं। तब वह और ज्यादा पीटने लगता है। 
  • अगर घर में बच्चे आपस में लड़ते हैं तो लड़ने दें। आखिर में जब दोनों शिकायत लेकर आएं तो बताएं कि जो भी बड़ा भाई/बहन है, वह खुद आपके आप आकर बात करेगा। दोनों में से किसी का भी पक्ष न लें। 
  • कोई दूसरा शिकायत लेकर आएं तो सुनें। उनसे कह सकते हैं कि मैं बच्चे को समझाऊंगी वैसे, बच्चे तो आपस में लड़ते ही रहते हैं। उनकी बातों में न आएं। इससे लड़ने के बावजूद बच्चों में दोस्ती बनी रहती है। 
  • बच्चे को सामने बिठाकर समझाएं कि अगर आप मारपीट करोगे तो कोई आपसे बात नहीं करेगा। कोई आपसे दोस्ती नहीं करेगा। आप उसे गलती के नतीजे बताएं। 
  • इसके लिए उसे सजा जरूर दें, लेकिन सजा मारपीट या डांट के बजाय दूसरी तरह से दी जाए जैसे कि मां आपसे दो घंटे बात नहीं करेंगी या पसंद का खाना नहीं मिलेगा आदि। 
10. हेल्थी खाने से बचे तो... 
अक्सर मां को लगता है मेरा बच्चा तो कुछ खाता ही नहीं है। वह जबरन उसे खिलाने की कोशिश करती है। अगर वह हेल्दी खाना नहीं खाना चाहता तो मां उसे मैगी, पिज्जा, बर्गर आदि खिला देती है। उसे लगता है कि इस बहाने वह कुछ तो खाएगा। कई पैरंट्स खुद खूब फास्ट फूड खाते हैं या इनाम के तौर पर बच्चे को बार-बार फास्ट फूड की ट्रीट देते हैं। 
  • बच्चे के साथ बैठकर हफ्ते भर का घर का मेन्यू तय करें कि किस दिन कब क्या बनेगा? इसमें एक-आध दिन नूडल्स जैसी चीजें शामिल कर सकते हैं। अगर बच्चा रूल बनाने में शामिल रहेगा तो वह उन्हें फॉलो भी करेगा। यह काम तीन-चार साल के बच्चे के साथ भी बखूबी कर सकते हैं। 
  • कभी-कभी बच्चे की पसंद की चीजें बना दें लेकिन हमेशा ऐसा न करें। पसंद की चीजों में भी ध्यान रहे कि पौष्टिक खाना जरूर हो। 
  • इस डर से कि खा नहीं रहा है, तो कुछ तो खा ले, नूडल्स, सैंडविच, पिज्जा जैसी चीजें बार-बार न बनाएं। वरना वह जान-बूझकर भूखा रहने लगेगा और सोचेगा कि आखिर में उसे पसंद की चीज मिल जाएगी। भूख लगेगी तो बच्चा नॉर्मल खाना खा लेगा। 
  • छोटे बच्चों को खाने में क्रिएटिविटी अच्छी लगती है इसलिए उनके लिए जैम, सॉस आदि से डिजाइन बना दें। सलाद भी अगर फूल, चिड़िया, फिश आदि की शेप में काटकर देंगे तो वह खुश होकर उसे भी खा लेगा। 
  • बच्चे टीचर्स की बातें मानते हैं। टीचर से बात करके टिफिन में ज्यादा और पौष्टिक खाना पैक कर सकते हैं, ताकि वह स्कूल में खा ले। 
  • बच्चे को हर वक्त जंक फूड खाने से न रोकें। उसके साथ बैठकर तय करें कि वह हफ्ते में एक दिन जंक फूड खा सकता है। इसके अलावा, दोस्तों के साथ पार्टी आदि के मौके पर इसकी छूट होगी। 
  • 'नहीं खाना है', कहने के बजाय उसे समझाएं कि ज्यादा जंक फूड खाने के क्या नुकसान हो सकते हैं। लॉजिक देकर समझाने से वह खाने की जिद नहीं करेगा। 
  • पैरंट्स खुद भी जंक फूड न खाएं। इसके अलावा, जिस चीज के बारे में एक बार कह दिया कि इसे खाना गलत है, बाद में किसी बात से खुश होकर बच्चे को उसे खाने की छूट न दें। 
ध्यान दें जरा 
दुनिया में कोई भी पैरंट्स परफेक्ट नहीं होते। कभी यह न सोचें कि हम परफेक्टली बच्चों को हैंडल करेंगे तो वे गलती नहीं करेंगे। बच्चे ही नहीं, बड़े लोग भी गलती करते हैं। अगर बच्चे को कुछ सिखा नहीं पा रहे हैं या कुछ दे नहीं पा रहे हैं तो यह न सोचें कि एक टीचर या प्रवाइडर के रूप में हम फेल हो गए हैं। बच्चों के फ्रेंड्स बनने की कोशिश न करें क्योंकि वे उनके पास काफी होते हैं। उन्हें आपकी जरूरत पैरंट्स के तौर पर है। 

एक्सपर्ट्स पैनल 
प्रो. अरुणा ब्रूटा, डिपार्टमेंट ऑफ सायकॉलजी, डीयू 
श्यामा चोना, एजुकेशनिस्ट और एक्स-प्रिंसिपल, डीपीएस 
एन. एन. नैयर, प्रिंसिपल, एपीजे स्कूल, नोएडा

ध्यान रखे ! बच्चा रहे कॉन्फिडेंट

अगर आपका बच्चा चुप-चुप व अलग से रहता है और जरा-सी बात पर ही सहम जाता है, तो समझ लें कि वह परिवार के माहौल की वजह से खुद को असुरक्षित महसुस कर रहा है। इस सिचुएशन को समय रहते पहचानें और उसे अपना पूरा प्यार व सपोर्ट दें : 
सरोज धूलिया 
नीलिमा की बेटी साक्षी छह साल की है, लेकिन वह किसी से बात करना पसंद नहीं करती। वह स्कूल में न तो किसी के साथ बात करती थी और न ही हंसने-खेलने में उसकी दिलचस्पी थी। पढ़ाई में भी वह लगातार पिछड़ती जा रही थी। सोसाइटी के बच्चे उसे कई नामों से चिढ़ाते थे। अक्सर वह बीमार रहती थी। कभी खांसी, कभी जुकाम, तो कभी चोट लग जाना उसके साथ आए दिन होता रहता था। साक्षी की इस हालत को समझने के बाद आपको लग रहा होगा कि बच्ची का नेचर ही ऐसा होगा। लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि उसकी इस हालत के लिए उसके परिवार का तनावपूर्ण माहौल जिम्मेदार है। 

पैरंट्स के तनावपूर्ण संबंध 
पैरंट्स के तनावपूर्ण संबंध बच्चे के मन में खौफ पैदा कर देते हैं। उसे लगता है कि कब पापा मम्मी पर गुस्सा हो जाएं और उसे गालियां देना व पीटना शुरू कर दें। यही वजह बच्चे का बिस्तरा गीला करने और अंगूठा चूसने जैसी कई चीजों की वजह बनती हैं। डर से वह बिस्तर गीला करता है, तो अंगूठा चूसना उसे इमोशनल सिक्युरिटी देता है। 

अपोलो के साइकाइट्रिस्ट राजेश अग्रवाल कहते हैं, 'अगर आप बच्चे को इस तरह की समस्या से दूर रखना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको खुद को बदलना होगा। आप दोनों के बीच संबंध कितने भी तनावपूर्ण क्यों न हों, लेकिन इन्हें बच्चों के सामने न जाहिर होने दें।' अक्सर पैरंट्स बच्चे के सामने परिवार व रिश्तेदारों की पॉजिटिव व नेगेटिव बातें करते रहते हैं, जिससे बच्चे के मन पर गहरा असर पड़ता है और वह उसी इमेज को आगे तक लेकर चलता है। यही नहीं, बच्चे के सामने आपस में एक-दूसरे को भी भला बुरा न कहें। आप तो कहकर थोड़ी देर में ठीक हो जाते हैं, लेकिन बच्चे के दिमाग में अपनी सोच के मुताबिक इमेज बनती चली जाती है। 

उसके साथ रहें 
बच्चे भी कई तरह की दिक्कतों से गुजरते हैं। मसलन, स्कूल के माहौल में मिक्स न हो पाना या कोई चैप्टर समझ में न आना वगैरह। इसके लिए वे अपनी बातों को अपने दोस्तों व पैरेंट्स से शेयर करते हैं, ताकि कोई समाधान निकालकर उस दिक्कत से बाहर निकल सकें। लेकिन पैरंट्स के ध्यान न देने पर वे अपनी दिक्कतों को अंदर दबा देते हैं, जो तनाव के रूप में बाहर आता है। यही वजह होती है कि धीरे-धीरे बच्चा अकेलेपन का शिकार हो जाता है और चुप रहने लगता है। 

नोएडा के मेट्रो हॉस्पिटल में चाइल्ड स्पेशलिस्ट अजय श्रीवास्तव कहते हैं , 'बच्चे के अच्छे डेवलेपमेंट के लिए पैरंट्स को बच्चे की मानसिक स्थिति पर पूरीनजर रखना जरूरी है , पैरंट्स के पास उसकी रोज की परेशानियों को सुननेका समय नहीं होता। इससे बच्चे में स्कूल के साथ - साथ पैरंट्स के प्रति भीअविश्वास होने लगता है। उसे लगने लगता है कि इस दुनिया में उसका कोईनहीं है। टीचर उसे डांटती है , दोस्त मजाक बनाते हैं और घर पर पैरंट्सउससे बात नहीं करते। इसी सोच के गहराने के साथ अपने अपने में सिमटताचला जाता है। ' 

अमूमन पैरंट्स जरूरी निर्देश देने के अलावा बच्चे पर ध्यान नहीं देते , जिससे उनमें एक गैप आता चला जाता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए आप हररोज बच्चे से उसके स्कूल , दोस्तों , पढ़ाई , शौक वगैरह के बारे में बात करें।उसे नई जिम्मेदारियों का सामना करना सिखाना भी आपकी ड्यूटी है। वैसे ,एक बात अच्छी तरह जान लें कि उसके लिए किसी भी चीज से ज्यादाआपके प्यार और विश्वास की जरूरत है। आप उसे इतना प्यार दें कि आपसेअलग होने की स्थिति में उसे यह महससू नहीं होना चाहिए कि वह आपकोखो रहा है। यह बात उसे मानसिक तौर पर मजबूत करेगी, तो उसकाआत्मविश्वास भी बढ़ाएगी। 
 
बच्चे को दूर ही रखें 
झगड़ा होने पर बच्चे को इधर से उधर संदेश पहुंचाने का माध्यम न बनाएं।बच्चा एक व्यक्ति की सुनता है और फिर दूसरे की। ऐसी स्थिति में उसके लिएसही - गलत तय करना मुश्किल होता है और यह चीज उसके अंदर असुरक्षाकी भावना भर देती है। यही असुरक्षा उसके पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करतीहै। इसलिए बच्चे को अपनी लड़ाई से दूर ही रखें। साथ ही , बिना बात के उसेफटकारें नहीं और न ही उसके साथ ज्यादा सख्ती बरतें

डेटिंग के कॉन्सेप्ट

आजकल का यूथ काफी समझदार हो गया है। यंगस्टर्स का मानना है कि शादी से पहले कम से कम चार-पांच लोगों के साथ डेटिंग एक्सपीरियंस जरूर लेना चाहिए, ताकि आपको सही लाइफ पार्टनर चुनने में कोई प्रॉब्लम ना आए। 

शुरुआत में डेटिंग के कॉन्सेप्ट को लेकर जो कंफ्यूजन पहले के यंगस्टर्स में थी, उससे आज की जेनरेशन निजात पा चुकी है। बल्कि वह इसके जरिए सही पार्टनर की तलाश करती है। 'मैंने दसवीं क्लास में अपनी नॉलेज बढ़ानी शुरू कर दी थी। उस दौरान सभी लोगों को ऐसा करते देखकर मैंने भी ऐसा ही किया। डेटिंग और रिलेशनशिप में करीब 10 साल का लंबा टाइम बिताने के बाद अब मेरे पास इतना एक्सपीरियंस हो गया है कि मैं शादी कर सकता हूं।' 

यह किसी एक यंगस्टर का कहना नहीं है, बल्कि युवाओं की सोच ही अब ऐसी हो गई है। उनका मानना है कि शादी के बंधन में बंधने से पहले डेटिंग का एक्सपीरियंस लेना बेहद जरूरी है। यही वजह है कि अब ज्यादातर यंगस्टर्स डेटिंग का खासा एक्सपीरियंस लेकर ही शादी के बंधन में बंध रहे हैं। 

डेटिंग डायरी 
यूथ का मानना है कि अलग-अलग उम्र में अलग-अलग लोगों के साथ डेट पर जाकर उन्हें जो एक्सपीरियंस मिलते हैं, उनकी बदौलत उन्हें अपना पार्टनर चुनने में काफी मदद मिलती है। अभी तक कई लड़कों के साथ डेट कर चुकीं रक्षा शर्मा बताती हैं, 'स्कूल व कॉलेज और कॉलेज के बाद की डेटिंग बिल्कुल अलग होती है। आपका शुरुआती पार्टनर काफी सीधा होता है। मसलन, वह आपका हाथ पकड़ने में भी हिचकेगा। मुझे लगता है कि कॉलेज के दौरान भी हम सही तरीके से डेटिंग नहीं कर पाते। लेकिन कॉलेज से निकलने तक हम काफी मैच्योर हो जाते हैं। तब आपको समझ में आने लगता है कि आपका डेटिंग कितना झूठ बोल रहा है और उस पर कितना विश्वास किया जा सकता है। बेशक इतना एक्सपीरियंस लेने के बाद आपको अपना लाइफ पार्टनर चुनने में आसानी होती है। ' 

प्रैक्टिस जरूरी है 
तो क्या कई सालों के डेटिंग एक्सपीरियंस से लाइफ पार्टनर चुनने में मदद मिलती है? 20 साल की निवेदिता ओबेरॉय इस बात से काफी हद तक सहमत हैं। उन्हें भले ही अभी तक अपना 'मिस्टर राइट' नहीं मिला है, लेकिन इस तरह उन्हें अच्छे-बुरे का एक्सपीरियंस तो हो ही गया है। वह बताती हैं, 'मैंने नाइंथ क्लास से ही डेटिंग शुरू कर दी थी और अब तक मैं तीन लड़कों के साथ डट पर जा चुकी हूं। हालांकि मुझे उनमें से कोई अपना 'मिस्टर राइट' नहीं लला, लेकिन अब मैं इतना जरूर जानती हूं कि मुझे किस तरह के लड़के के साथ शादी नहीं करनी है।' वहीं, सीए ऐश्वर्या विज कहती हैं, 'आजकल यंगस्टर्स को कंप्यूटर और टीवी से रिलेशनशिप के बारे में काफी जानकारी मिल जाती है। इसलिए जब बात शादी की आती है, तो अपने पार्टनर की टर्म्स को लेकर वे पहले ही क्लीयर होते हैं। इसके लिए डेटिंग एक्सपीरियंस की जरूरत नहीं है।' 

शादी अभी नहीं ? 
ऐसा नहीं है कि यंगस्टर्स सिर्फ डेटिंग एक्सपीरियंस की कमी की वजह से ही शादी करने में हिचकिचा रहे हैं , बल्कि आजकल उनके लिए करियर औरइंडिपेंडेंट लाइफ स्टाइल एक बड़ी प्रायरिटी हैं। कॉम्पिटीशन के इस दौर मेंजाहिर है कि मैरिज यूथ की फर्स्ट प्रायरिटी नहीं रही। पीजी में रहने वाली24 साल की इंजीनियर वंदना कहती हैं , ' मैं शादी क्यों करूं , जबकि मेरेपास लिव इन का ऑप्शन मौजूद है ? सिर्फ सेक्स के लिए शादी करने काकोई मतलब नहीं है। वैसे भी , आजकल प्री मैरिटल सेक्स और लिव इनकाफी कॉमन हो गए हैं। इसके अलावा , अभी मुझे अपनी फ्रीडम खोने कीकोई जल्दी नहीं है। जाहिर है कि शादी के बाद आप एक बंधन में बंध जातेहैं। ' 

फर्स्ट लव 
हाल ही में अपने पहले क्रश हर्ष से शादी करने वाली अनिषा सब्बरवालबताती हैं , ' मैंने पहली बार दसवीं क्लास में डेटिंग शुरू की थी। मुझे हर्ष कासाथ बहुत अच्छा लगा था , लेकिन मेरे यूएस शिफ्ट होने की वजह से हम एक - दूसरे से दूर हो गए। उसके बाद , मैंने कई लोगों के साथ डेट पर गई ,लेकिन मुझे यही लगता था कि मैं अभी भी हर्ष से ही शादी करना चाहती हूं। उसकी हां के बाद हम लोगों के शादी का फैसला कर लिया। ' बेशक , इसमें कोई दो राय नहीं है कि वक्त के साथ इंसान की पसंद बदलती है , लेकिन यहभी सच है कि कई बार वाइन की तरह रिलेशनशिप भी वक्त के साथ बेहतरहो जाती है। 

इतना एक्सपीरियंस ! 
वैसे , आजकल के युवा कुछ ज्यादा एक्सपीरियंस लेने लगे हैं। हालत यह होगई है कि कॉलेज में एंट्री करते वक्त यानी करीबन 17 साल की उम्र में उनकेपास चार से पांच लोगों के साथ डेटिंग एक्सपीरियंस होता है। हाल ही मेंकॉलेज में एंट्री लेने वाले आकाश वाधवा कहते हैं , ' स्कूल में मैंने तीन लड़कियों के साथ डेटिंग की। हालांकि इससे मेरे दिमाग और पॉकेट को काफीझटका लगा। इसलिए अब मैंने थोड़ा ब्रेक ले लिया है। बावजूद इसके , मुझेयही लगता है कि कम उम्र में डेटिंग एक्सपीरियंस फायदेमंद रहते हैं। ' 

एक्स से पंगा 
वैसे , कम उम्र में इतनी सारे पार्टनर्स के साथ डेटिंग करने की वजह से पंगे भीकम नहीं होते। दरअसल , इस तरह यंगस्टर्स के कई सारे एक्स पार्टनर होजाते हैं और जब कभी वे एक - दूसरे से टकराते हैं , तो उनके बीच लड़ाई भीहो जाती है। स्टूडेंट समक्ष बताते हैं , ' मेरी गर्लफ्रेंड ने मेरे बर्थडे वाले दिनकिसी और लड़के के लिए मुझे धोखा दिया। हालांकि वह कुछ दिनों बाद लौटभी आई। फिलहाल मैंने उसे अपनी जिंदगी में लौटने की इजाजत दे दी है ,लेकिन मैं भी इंतजार में हूं कि किसी खास मौके पर धोखा देकर उसे सबकसिखा सकंू। ' जाहिर है कि डेट का एक्सपीरियंस लेने के साथ अपने एक्सपार्टनर्स को सबक सिखाने के लिए यंगस्टर्स किसी भी हद तक जाने को तैयारहैं।

शादी से पहले सेक्स पर पहरा क्यों?

'सेक्स' एक ऐसा शब्द जो सबसे ज्यादा गोपनीय होने के बावजूद आज सर्वाधिक तेजी से उजागर होता जा रहा है। सेक्स, यौन संबंध, शारीरिक संबंध, काम, रति क्रिया...जैसे कई नामों से इसे जाना जाता है। युवाओं और बड़ों को तो स्वयं कुदरत ही इस तिलिस्म से रूबरू करवा देती है। 
किन्तु एक तीसरा वर्ग भी है जिसमें अवयस्क बच्चे आते हैं। बच्चों और विवाह पूर्व युवाओं को सेक्स से दूरी बनाए रखने की प्रेरणा कई स्तरों पर मिलती है। माता-पिता, परिवार, समाज, धर्म और परम्पराएं सभी मिलकर इस महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी सम्हालते हैं। 
समय के साथ ही मान्यताओं और परम्पराओं में बदलाव भी आते जा रहे हैं। बदलाव यदि सही दिशा में हो तब तो ठीक है, किन्तु हालात तो कुछ और ही बयान कर रहे हैं। सेंसर से मुक्त इंटरनेट, लिव इन रिलेशनशिप, को-एजुकेशन, व्यस्त माता-पिता, फिल्मों व टीवी कार्यक्रमों का सीमा रहित खुलापन...इन सभी ने मिलकर ऐसा माहोल बना दिया है कि नई जनरेशन पतन के गहरे दलदल की तरफ बढ़ती जा रही है। 
इतना ही नहीं कुछ तथाकथित विद्वान तो बच्चों को सेक्स ऐजुकेशन देने की भरपूर वकालत कर रहे हैं। ये विद्वान यह नहीं सोचते कि सुरक्षा के नाम पर जिन हथियारों से बच्चों को परिचित करवाया जाता है, बच्चे अपनी स्वाभाविक कौतुकता और जिज्ञासा की आदत के कारण उन हथियारों को चलाकर देखने का भी प्रयास करने लगते हैं। क्या कारण है कि दुनिया के तमाम धर्मों में विवाह पूर्व किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध या सेक्स को पूरी तरह वर्जित और गैर धार्मिक बताया गया है। धर्म और अध्यात्म मात्र श्रद्धा या भक्ति पर ही निर्भर नहीं हैं ये पूरी तरह से वैज्ञानिक सिद्धांतों पर चलते हैं।
आइये जाने उन अज्ञात वैज्ञानिक कारणों को जिनके कारण विवाह पूर्व सेक्स या यौन संबंध को पूरी तरह वर्जित माना गया है:-
  1. 25 वर्ष की उम्र तक शरीर और मस्तिष्क का पूर्ण विकास होने के लिये ब्रह्मचर्य का पालन होना निंतात आवश्यक है।
  2. समाज जिस आधार पर खड़ा है, वह है पति-पत्नी का संबंध। विवाह पूर्व बना यौन संबंध इस आधार को कमजोर कर समाज के पतन का कारण बनता है।
  3. एड्स जैसे लाइलाज रोगों का प्रमुख कारण भी अनैतिक और अधार्मिक यौन संबंध ही होते हैं।
  4. विवाह से पूर्व इंसान को अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को विकसित करना होता है। इस कार्य के लिये जिस एकाग्रता और दृढ़ता की आवश्यकता होती है वही यौन संबंधो के कारण नष्ट हो जाती है।
  5. योग्य, बुद्धिमान और प्रतिभाशाली संतान की प्राप्ति के लिये विवाह पूव का चरित्र और पवित्रता बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं।

बच्चे की उम्र की नजाकत को समझें

बढ़ना एक खूबसूरत अहसास है, लेकिन अगर यह बढ़ना आपके और आपके बच्चे के बीच फासले पैदा कर दे, गलतफहमियों को जन्म दे और घर के खुशनुमा माहौल को बर्बाद कर दे तो? घबराइए नहीं, आप ऐसे हालात से बच सकते हैं। बस, थोड़ी समझदारी दिखाते हुए बच्चे की उम्र की नजाकत को समझें और उसके साथ चलने की कोशिश करें। आगे के लेख में बढ़ते बच्चे के साथ रिश्तों की बगिया को कैसे सींचें कि उसमें खुशियों के फूल कैसे लहराएं  के बारे में विस्तृत रूप से बताया जा रहा है :

आमतौर पर छह साल की उम्र तक बच्चा पूरी तरह पैरंट्स के साये में जीता है। वह पैरंट्स की सभी बातों को सही मानते हुए उन्हें फॉलो करता है। लेकिन इस उम्र से आगे निकलने के बाद बच्चे में कई तरह के बदलाव होने लगते हैं, जिन्हें पहचानना और समझना पैरंट्स के लिए जरूरी है। 

6-12 साल 
इस दौरान बच्चे में मानसिक और शारीरिक बदलाव होते हैं। फैंटेसी से बाहर निकलकर वह सेल्फ इमेज बनाता है। वह अपना रोल मॉडल तय करता है और चीजों पर अपनी राय बनाने लगता है। या तो उसमें हीन भावना आ जाती है या फिर वह खुद को हीरो समझने लगता है। स्ट्रेस जैसी समस्या से भी उसका साबका पड़ता है। डिस्लेक्सिया या स्लो लर्नर जैसी प्रॉब्लम भी इसी उम्र में खुलकर सामने आती हैं। बच्चा इस उम्र में खुलकर बात करना चाहता है, जिसे अक्सर पैरंट्स और टीचर अक्सर समझ नहीं पाते। इस फेज के बच्चों के साथ आनेवाली आम समस्याएं हैं : 
स्कूल न जाने की जिद 
  • कई बच्चे स्कूल जाने से बचने लगते हैं। अक्सर इसकी वजह टीचर की डांट या बुलिंग (साथियों द्वारा खिंचाई) होती है। होमवर्क न करना, स्टेज पर जाने का डर, पढ़ाई में कमजोर होना, टाइम पर तैयार न होना, खुद को दूसरे बच्चों से हीन समझना, जैसी वजहें भी बच्चे को स्कूल से मुंह मोड़ने को मजबूर कर सकती हैं। 
क्या करें 
  • बच्चे को समय दें। उससे उसके रुझानों के बारे में बात करें। उसे टाइम पर तैयार करें, यूनिफॉर्म साफ हो और होमवर्क भी कंप्लीट हो। 
  • बच्चा किसी टीचर या साथी की शिकायत करता है तो स्कूल जाकर बात करें लेकिन बदला लेने के लिहाज से नहीं, समस्या को समझने के लिए। 
  • जो बच्चे हाइपरएक्टिव होते हैं, उन्हें अक्सर टीचर शैतान मानकर इग्नोर करने लगती हैं। ऐसे में टीचर से रिक्वेस्ट करें कि बच्चे को एक्टिविटी में शामिल करें और उसे मॉनिटर जैसी जिम्मेदारी दें। इससे वह जिम्मेदार बनता है। 
  • पढ़ाई को थोड़ा दिलचस्प तरीके से पेश करें। उसे बोझ न बनाएं। हर बच्चे की पसंद-नापसंद होती है। उसकी पसंद के सब्जेक्ट पर ज्यादा फोकस करें। 
  • इस उम्र में अनुशासन जरूरी है लेकिन अनुशासन और सजा का फर्क बनाए रखें। सजा के बिना भी बच्चों को अनुशासित किया जा सकता है। 
उम्मीदों का बोझ 
  • पैरंट्स अक्सर इस उम्र में बच्चे से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाने लगते हैं। वे अपनी अधूरी इच्छाओं को उसके जरिए पूरा करने में लग जाते हैं। पढ़ाई के अलावा डांस, पेंटिंग, स्विमिंग, क्रिकेट न जाने क्या-क्या सिखाने के लिए उसे क्लास भेजने लगते हैं। ज्यादा काम करने से बच्चा थकने लगता है और चिड़चिड़ा हो जाता है। उसे लगने लगता है कि वह पैरंट्स की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पा रहा है। दूसरे भाई-बहन से भी कभी तुलना नहीं करें। 
क्या करें 
  • बच्चे की कितनी कैपिबिलिटी है, इसका सही आकलन करें। बच्चे को खाली न बिठाएं, न ही उसे दिशाहीन छोड़ें। लेकिन ध्यान रखें कि बच्चा सुपर ह्यूमन नहीं बन सकता। पढ़ाई, एक्स्ट्रा ऐक्टिविटी, खेल आदि में बैलेंस बनाकर चलें।
  • शुरू में बच्चे को सब कुछ मोटा-मोटा सिखाकर देखें, लेकिन फिर उसकी दिलचस्पी देखें और जो उसे पसंद आए, उसी में आगे बढ़ाएं। 
  • बच्चे को साथ बिठाकर उसकी उसकी रजामंदी से उसका टाइमटेबल बनाएं। लेकिन उसमें थोड़ी छूट रखें। ऐसा न हो कि इतने बजे यह करना है तो करना ही है। बच्चा घर में है, किसी जेल में नहीं। 
  • जो बच्चा अच्छा कर रहा है, हमेशा उसी की तारीफ न करें। अनजाने में ही आपके दूसरे बच्चे में हीनभावना आ जाती है। 
शरीर को लेकर फिक्र 
  • बच्चे में इस उम्र में बहुत-से फिजिकल चेंज होने लगते हैं, जिन्हें लेकर वह अजीब-सी बेचैनी महसूस करता है। शरीर में आ रहे बदलावों को लेकर उसे सहज बनाएं और इस बारे में उसे जानकारी दें। इस उम्र में कुछ लड़कियों को पीरियड भी शुरू हो जाते हैं। 
  • 10-11 साल की उम्र में मांएं बेटियों को बताएं कि आनेवाले एक-दो साल में उनके पीरियड शुरू होंगे और यह एकदम नॉर्मल प्रोसेस है। इसी तरह, पापा बेटों को नाइट फॉल आदि के बारे में बताएं। इससे बच्चा नर्वस नहीं होगा और उसे गिल्ट भी महसूस नहीं होगा। 
  • इस तरह की जानकारी सबके सामने न दें, न ही कभी बच्चे का मजाक बनाएं। 
  • अगर बच्चा मां-पापा के साथ ज्यादा खुला नहीं है तो पैरंट्स बच्चे को जानकारी देने की जिम्मेदारी उस सदस्य को दें, जिसके साथ वह खुला हो। 
  • बच्चे को उसकी उम्र के मुताबिक ही जानकारी दें। उम्र से पहले सब कुछ बता देना भी बच्चे के लिए सही नहीं है। 10-11 साल की उम्र में उसे पूरे रिप्रॉडक्शन सिस्टम के बारे में नहीं बता सकते लेकिन उसे सेक्सुअल एक्साइटमेंट के बारे में बता सकते हैं। 
सेक्सुअल एब्यूज 
  • अब तक बच्चा सही और गलत टच को समझने लगता है। फिर भी पैरंट्स उसे इस बारे में सही से जानकारी दें। उसे बताएं कि आपके शरीर पर आपका हक है और कोई भी अनजान व्यक्ति आपको अलग तरह से छुए तो हमें बताओ। लड़कियों के साथ-साथ लड़कों को भी इस बारे में जागरूक करना जरूरी है। लेकिन इसका जिक्र बार-बार न करें। 
सेक्सुअलिटी से जुड़े सवाल 
  • इस उम्र में बच्चा अक्सर टीवी आदि देखकर कॉन्डम क्या होता है, बच्चे कैसे आते हैं, मैं कहां से आया था, आदि सवाल पूछते हैं। पैरंट्स इन सवालों से बचते हैं। ऐसे सवालों पर गुस्सा न हों और न ही बच्चे को झिड़कें। सवाल करना बच्चों की आदत होती है। सवाल करने पर नहीं, बल्कि वे सवाल न करें तो फिक्र की बात है। 
  • बच्चे की उम्र के मुताबिक सवालों का जवाब जरूर दें। अगर आप उसके सवालों का जवाब नहीं देंगे तो वह बाहर ढूंढेगा और पूरी संभावना है कि वहां उसे अधकचरी और गलत जानकारी मिले, जो खतरनाक हो सकती है। 
  • बच्चे को कभी गलत जवाब न दें। मसलन, अगर वह पूछे कि बच्चे कहां से आते हैं तो यह न बताएं कि आसमान से आते हैं। उसे बताएं कि बच्चे मां के पेट से आते हैं और हो सके तो डिलिवरी के वक्त मां को होनेवाली तकलीफ के बारे में भी बताएं। इससे बच्चा मां से ज्यादा लगाव महसूस करेगा। 
  • जवाब जरूर दें, लेकिन उतना ही, जितना वह समझ पा रहा है। अगर बच्चा बार-बार इस तरह के सवाल करे तो जानने की कोशिश करें कि वह बार-बार सवाल क्यों कर रहा है? कहीं उसे इस सब्जेक्ट को लेकर ऑब्सेशन तो नहीं है। ऐसा हो तो उसे काउंसलर से मिलवाएं। 
जिद करना और उलटा बोलना 
  • इससे पहले तक बच्चा आमतौर पर पैरंट्स की सारी बातें मानता है। पैरंट्स की उम्मीद होती है कि बच्चा अब भी उनकी बातें मानता रहेगा जबकि इस उम्र में उसकी अपनी पसंद, इच्छाएं आदि बनने लगती हैं। हर बात पर 'ऐसा करें, ऐसा न करें' का पैरंट्स का रवैया चालू रहता है। बातें न मानने पर वे बच्चे पर चिल्लाते हैं। बस, यहीं से दिक्कत शुरू होती है। इससे बच्चे के मन में नाराजगी पैदा होती है और वह पैरंट्स को गलत मानने लगता है। ऐसे में अक्सर वह उलटा बोलता है और जिस चीज की जिद करता है, उसे पाने के लिए तुल जाता है। 
  • बच्चे को हमेशा रोकें-टोकें नहीं। इससे उसे लगेगा कि मां-पापा हमेशा रोकते रहते हैं। फिर ऐसे में वह आपसे कोई डिमांड नहीं करेगा और चुप-चुप रहने लगेगा। 
  • बच्चे के फ्रेंड्स की बुराई उसके सामने न करें। इस उम्र में उसे दोस्त काफी करीबी लगने लगते हैं। कुछ कहना ही है तो डायरेक्ट न कहें। उसके दोस्तों को घर पर बुलाएं और उन्हें भी अपने बच्चों की तरह ट्रीट करें। यानी उन्हें खिलाएं-पिलाएं और उनके बातचीत करें। इससे आपको बच्चे के दोस्तों की जानकारी भी रहेगी और बच्चे को अच्छा लगेगा कि आप उसके दोस्तों को भी प्यार देते हैं। 
  • अगर बच्चा कभी झूठ बोले या कोई गलती करे तो सबसे सामने न डांटें। न ही उसे सही-गलत का पाठ पढ़ाएं। इसके बजाय उसे उदाहरण देकर उस काम के नेगेटिव पक्ष बताएं। उदाहरण में खुद को सामने रखें - मसलन, मैं भी जब छोटा था तो क्लास बंक करता था लेकिन बाद में मुझे लगा कि यह सही नहीं है क्योंकि मैं पढ़ाई में पीछे रह गया या बाद में ढेर सारा काम करना पड़ता था। इस तरह से बात करने से वह खुद को कठघरे में खड़ा महसूस नहीं करेगा। 
  • बच्चा आप पर चीखे-चिल्लाए तो भी आप उस पर चिल्लाएं नहीं। उस वक्त छोड़ दें, लेकिन खुद को पूरी तरह नॉर्मल भी न दिखाएं, वरना वह सोचेगा कि वह कुछ भी करेगा, आप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बाद में जब उसका गुस्सा शांत हो जाए तो बैठकर बात करें कि इस तरह बात करना आपको बुरा लगा और इससे उसके दोस्त, टीचर सभी उसे बुरा बच्चा मानेंगे। 
टीवी, नेट, विडियो गेम आदि की लत 
  • अक्सर इस उम्र के बच्चे जरूरत से ज्यादा टीवी से चिपके रहते हैं। वे कार्टून देखने, विडियो गेम खेलने या मोबाइल पर गेम खेलने में बिजी रहते हैं। टीवी या इंटरनेट पर ज्यादा टाइम बिताना आंखों के साथ-साथ दिमाग के लिए भी नुकसानदेह है। आधा-एक घंटा टीवी देखना और एक घंटे कंप्यूटर पर काम करना इस उम्र के बच्चे के लिए काफी है। 
  • बच्चे की अटेंशन डायवर्ट करें। उसे खेल खिलाने पार्क आदि ले जाएं। उसकी एनर्जी का इस्तेमाल सही दिशा में नहीं होगा, तो वह भटक सकता है। 
  • उसके टीवी देखने या विडियो गेम खेलने का टाइम तय करें। रोजाना एक घंटे से ज्यादा टीवी नहीं देखने दें। पैरंट्स अपना भी टीवी देखने का टाइम तय करें। दिन भर टीवी चलता रहेगा तो बच्चे को कैसे रोकेंगे। टीवी और इंटरनेट पर चाइल्ड लॉक लगाकर रखें ताकि वह पैरंट्स की गैर-मौजूदगी में उसे खोल न पाए। 
  • कंप्यूटर पर बच्चे को फोटोशॉप या पेंट आदि सिखाएं। इससे वह कंप्यूटर का रचनात्मक इस्तेमाल कर सकेगा। 
खाने की गलत आदतें 
  • अक्सर बच्चे को फास्ट फूड और जंक फूड की आदत पड़ जाती है और वह पौष्टिक खाने से बचता रहता है, जबकि फास्ट फूड उसे जिद्दी, गुस्सैल और सुस्त बनाता है। खाने में सलाद और फल जरूर शामिल करें। 
  • बच्चे को हर वक्त जंक फूड खाने से न रोकें। उसके साथ बैठकर तय करें कि वह हफ्ते में एक दिन जंक फूड खा सकता है। इसके अलावा, दोस्तों के साथ पार्टी आदि के मौके पर इसकी छूट होगी। 
  • 'नहीं खाना है', कहने के बजाय उसे समझाएं कि ज्यादा जंक फूड खाने के क्या नुकसान हो सकते हैं। लॉजिक देकर समझाने से वह खाने की जिद नहीं करेगा। 
  • पैरंट्स खुद भी जंक फूड न खाएं। इसके अलावा, जिस चीज के बारे में एक बार कह दिया कि इसे खाना गलत है, बाद में किसी बात से खुश होकर बच्चे को उसे खाने की छूट न दें।