Sponsored Links

Showing posts with label Health Corner. Show all posts

Sexual Addiction Causes, Symptoms, Diagnosis and Treatment

सेक्सुअल ऐडिक्शन एक प्रकार की लत है, जिससे पीड़ित आदमी को हर जगह, दिन और रात सेक्स ही सेक्स सूझता है। ऐसे आदमी अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय सेक्स संबंधित प्रवृत्तियों में बिताने की कोशिश करते हैं, जैसे कि पॉर्न वेबसाइटें देखना, पॉर्न चैट करना, इरोटिक सीडी, मेसेज और एमएमएस तस्वीरों का लेन-देन करना वगैरह। हालांकि ऐसे लोग भी आम आदमियों की तरह ही दिखते हैं और आम लोगों की भी ऐसी चीजों में रुचि कमोबेश हो सकती है, लेकिन एक सेक्स ऐडिक्ट की सेक्सुअल इच्छाएं बेकाबू रहती हैं। उसकी प्यास कभी पूरी तरह बुझती नहीं।

अक्सर ऐसे लोग जानते हैं कि वे सेक्स ऐडिक्ट हैं, लेकिन वे अपनी इच्छाओं को दबा नहीं पाते, जैसे शराब पीने वाला आमतौर पर चाहकर भी शराब पीना रोक नहीं पाता।

क्या है वजहें?
  • कुछ वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि 80 फीसदी सेक्स ऐडिक्ट लोगों के माता-पिता भी जीवन में अक्सर सेक्स ऐडिक्ट रहे होते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि अक्सर ऐसे लोगों में सेक्सुअल एब्यूज की हिस्ट्री भी होती है यानी ज्यादातर ऐसे लोगों के जीवन में कभी-न-कभी यौन शोषण हो चुका होता है। मुमकिन है, बचपन में किसी ने जबर्दस्ती उनके साथ सेक्सुअल छेड़छाड़ की हो।
  • देखा गया है कि जिन परिवारों में मानसिक और भावनात्मक तौर से लोग बिखरे और अलग-थलग हों, ऐसे परिवार के लोगों में भी सेक्स ऐडिक्ट हो जाने की आशंका ज्यादा रहती है।


कैसे-कैसे ऐडिक्ट?
  • सेक्स ऐडिक्टों में कुछ लोग काम विकृतियों से पीड़ित होते हैं। ऐसे लोग समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं, जैसे बच्चों या बुजुर्गों या जानवरों के साथ सेक्स, रेप या छेड़छाड़ आदि। हालांकि हरेक सेक्स ऐडिक्ट काम विकृत नहीं होता। कई बार मानसिक बीमारियों, खासकर पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के शिकार होने के कारण भी लोग सेक्स ऐडिक्ट हो सकते हैं। कुछ सेक्स ऐडिक्ट ड्रग ऐडिक्ट भी होते हैं। कोकीन आदि उत्तेजनात्मक दवाएं लेकर अपने सेक्स ऐडिक्शन को और स्ट्रॉन्ग करने की कोशिश करते हैं। सेक्स ऐडिक्ट अगर ड्रग ऐडिक्ट भी हो तो वह ज्यादा खतरनाक हो जाता है।


क्या है इलाज?
  • सेक्स ऐडिक्ट होना एक बीमारी है, जिसका इलाज होना भी जरूरी है। हालांकि इलाज इतना आसान नहीं है। अलग-अलग तरह के सेक्स ऐडिक्ट का इलाज अलग-अलग तरीके से किया जाता है, जैसे साइबर सेक्स ऐडिक्ट, पोर्न मूवीज, पॉर्न चैट या डायरेक्ट सेक्स ऐडिक्ट आदि।
  • ऐसे लोग अगर अपना इलाज करना चाहते हों तो उन्हें चाहिए कि वे अकेलेपन से बचें। अपनी हॉबीज में टाइम लगाएं, सोशल होकर लोगों से मिले-जुलें, लंबी वॉक और कसरत करें। योगासन, प्राणायाम और ध्यान करें। ये चीजें आपकी मदद कर सकती हैं। दोस्तों-रिश्तेदारों और परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिताएं।
  • कंप्यूटर या इंटरनेट का इस्तेमाल टाइम पास करने की बजाय जरूरी कामों के लिए ही करें। कंप्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल पति-पत्नी दोनों मिलकर करें तो बचाव होगा।
  • जब निराश और हताश हों तो कंप्यूटर या इंटरनेट का इस्तेमाल करने से बचें। साइबर कैफे में ज्यादा समय न बिताएं।
  • अगर मानसिक बीमारी भी महसूस हो तो साइकाइअट्रिस्ट और साइकोलॉजिस्ट की मदद भी ली जा सकती है।
  • इससे निजात पाने के लिए कारगर दवाएं भी मौजूद हैं, लेकिन उसे आप डॉक्टर की सलाह पर ही लें।
  • जिन लोगों की शादीशुदा जिंदगी में समस्याएं आ रही हैं उन्हें किसी मैरिज काउंसलर की राय लेनी चाहिए।
  • शराब, स्मोकिंग, स्मैक आदि नशीली चीजों के सेवन से बचें।
  • इस बात का ध्यान रखें कि आपकी सेक्स के बारे में जिज्ञासा कहीं आदत न बन जाए।
  • कोई ज्यादा सेक्स करता है तो उसे घबराने की जरूरत नहीं। यहां बताए गए सारे उपाय उन्हीं लोगों के लिए हैं, जो सेक्स ऐडिक्ट के साथ-साथ मानसिक रोगों से भी परेशान हों। ऐसे लोगों की पर्सनल और प्रफेशनल लाइफ डिस्टर्ब होने लगती है।

वंडर ब्रा : Genie Bra



अगर आप भी ब्रा पहनने के बाद शरीर पर पडऩे वाले निशान और होने वाली थकान से परेशान हैं तो चिंतामुक्त हो जाइए। बाजार में जल्द एक ऐसी वंडर ब्रा आने वाली है जिसको पहनने के बाद न तो निशान पड़ेंगे और ना ही किसी तरह की कोई और असुविधा होगी। इसे जिन्नी ब्रा नाम दिया गया है।

इसको बनाने वाली कंपनी का कहना है कि यह आपके चलने और बैठने के समय पोस्चर को भी सही रखती है। इसको पहनने वाली महिलाओं को कंधों पर होने वाले दर्द से भी निजात मिलेगी। इसके स्टै्रप्स चौड़े होने के कारण यह टिकी भी रहती है। पहनने के बाद फिगर भी अपने आप उम्दा शेप में दिखनी लगेगी।

एक सप्ताह पहले शुरू हुई यह कंपनी अमेरिका में 10 लाख पीस बेच चुकी है। इसकी ऑनलाइन बिक्री ब्रिटेन में भी शुरू हो चुकी है। इसकी कीमत भी मात्र 59 अमेरिकी डॉलर है। निर्माताओं का कहना है कि यह नाइलोन व स्पैनडैक्स से बनाई गई है। फ्लेक्सीबल होने के कारण इसे किसी भी तरह के आउटफिट के साथ पहना जा सकेगा।

इस बॉडीवियर को लेकर भारतीय डिजाइनरों से बात की गई। एना सिह ने कहा ‘बाहरी कपड़ों की बजाय अंदर पहने जाने वाले कपड़ों की फिटिंग और उनकी क्वालिटी का ज्यादा महत्व होता है। बॉडीवियर या इन्नरवियर हमेशा आपका आत्मविश्वास बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। इनकी खरीदारी के समय अतिरिक्त सावधानी बरती जानी चाहिए।’

इस भारतीय डिजाइनर ने कहा कि विदेशों में अंतवस्त्र खरीदने के समय दुकानदार आपकी सही फिटिंग के बारे में भी बताते हैं। वहां आप इन्हें पहनकर देख सकते हैं। हमारे देश में अभी ऐसा नहीं है। डिजाइनर निशिका लूला का कहना है कि इसका नाम ही इसके बारे में सबकुछ बता देगा।

जब भी महिलाएं ब्रेजर खरीदने जाएं, सुविधा का ख्याल जरूर रखें। उन्होंने कहा, इसमें लगी अंडरवायर जरूर जरा सी परेशानी दे सकती है। नीता लूला कहना है कि अगर कोई ऐसी ब्रा बाजार में आ रही है तो यह बहुत अच्छा है। गलत साइज की ब्रा पहनने से कई प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं। कैंसर तक होने का खतरा बना रहता है।

मॉं का दूध सर्वोतम आहार



छह महीनों तक केवल स्‍तनपान जीवन की बेहतरी शुरूआत

स्‍तनपान:-
शिशु जन्‍म के पश्‍चात् स्‍तनपान एक स्‍वाभाविक क्रिया है। हमारे देश में सभी माताऍं अपने शिशुओं का स्‍तनपान कराती हैं, परन्‍तु पहली बार मॉं बनने वाली माताओं को शुरू में स्‍तनपान कराने हेतु सहायता की आवश्‍यकता होती है। स्‍तनपान के बारे में सही ज्ञान के अभाव में बच्‍चों में कुपोषण का रोंग एवं संक्रमण से दस्‍त हो जाता है।

मॉं का दूध सर्वोतम आहार:-
  • एकनिष्‍ठ स्‍तनपान का अर्थ जन्‍म से छः माह तक के बच्‍चे को मॉं के दूध के अलावा पानी का कोई ठोस या तरल आहार न देना।
  • मॉं के दूध में काफी मात्रा में पानी होता है जिससे छः माह तक के बच्‍चे की पानी की आवश्‍यकताऍं गर्म और शुष्‍क मौसम में भी पूरी हो सके।
  • मॉं के दूध के अलावा बच्‍चे को पानी देने से बच्‍चे का दूध पीना कम हो जाता है और संक्रमण का खतरा बढ जाता है।
  • प्रसव के आधे घण्‍टे के अन्‍दर-अन्‍दर बच्‍चे के मुंह में स्‍तन देना चाहिए।
  • ऑपरेशन से प्रसव कराए बच्‍चों को 4 - 6 घण्‍टे के अन्‍दर जैसे ही मॉं की स्थिति ठीक हो जाए, स्‍तन से लगा देना चाहिए।

प्रथम दूध (कोलोस्‍ट्रम):-
  • प्रथम दूध(कोलोस्‍ट्रम) यानी वह गाढा, पीला दूध जो शिशु जन्‍म से लेकर कुछ दिनों ( 4 से 5 दिन तक) में उत्‍पन्‍न होता है, उसमें विटामिन, एन्‍टीबॉडी, अन्‍य पोषक तत्‍व अधिक मात्रा में होते हैं।
  • यह संक्रमणों से बचाता है, प्रतिरक्षण करता है और रतौंधी जैसे रोगों से बचाता है।
  • स्‍तनपान के लिए कोई भी स्थिति , जो सुविधाजनक हो, अपनायी जा सकती है।
  • कम जन्‍म भार के और समय पूर्व उत्‍पन्‍न बच्‍चे भी स्‍तनपान कर सकते हैं।
  • यदि बच्‍चा स्‍तनापान नहीं कर पा रहा हो तो एक कप और चम्‍मच की सहायता से स्‍तन से निकला हुआ दूध पिलायें।
  • बोतल से दूध पीने वाले बच्‍चों को दस्‍त रोग होने का खतरा बहुत अधिक होता है अतः बच्‍चों को बोतल से दूध कभी नहीं पिलायें।
  • यदि बच्‍चा 6 माह का हो गया हो तो उसे मॉं के दूध के साथ- साथ अन्‍य पूरक आहर की भी आवश्‍यकता होती हैं।
  • इस स्थिति में स्‍तनपान के साथ - साथ अन्‍य घर में ही बनने वाले खाद्य प्रदार्थ जैसे मसली हुई दाल, उबला हुआ आलू, केला, दाल का पानी, आदि तरल एवं अर्द्व तरल ठोस खाद्य प्रदार्थ देने चाहिए, लेकिन स्‍तनपान 11/2 वर्ष तक कराते रहना चाहिए।
  • यदि बच्‍चा बीमार हो तो भी स्‍तनपान एवं पूरक आहार जारी रखना चाहिए स्‍तनपान एवं पूरक आहार से बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य में जल्‍दी सुधार होता है।

बच्‍चों के लिए आहार (6 से 12 महिनें):-
  • स्‍तनपान के साथ-साथ बच्‍चों को अर्धठोस आहार, मिर्च मसाले रहित दलिया / खिचडी, चॉंवल, दालें, दही या दूध में भिगोई रोटी मसल कर दें।
  • एक बार में एक ही प्रकार का भोजन शुरू करें।
  • मात्रा व विविधता धीरे-धीरे बढाऍ।
  • पकाए एवं मसले हूए आलू, सब्जियॉं, केला तथा अन्‍य फल बच्‍चे को दें।
  • शक्ति बढाने के लिए आहार में एक चम्‍मच तेल या घी मिलाएं।
  • स्‍तनपान से पहले बच्‍चे को पूरक आहार खिलाएं।

स्‍तन कैंसर से बचाव के घरेलू नुस्‍खे



ब्रेस्‍ट कैंसर या स्‍तन कैंसर महिलाओं में होने वाली एक भयावह बीमारी है। हाल कि यह एक भ्रम है कि ब्रेस्‍ट कैंसर सिर्फ महिलाओं में होता है। आज पुरूषों में भी इस बीमारी की संख्‍या बढ़ रही है। कैंसर से बचने का सिर्फ एक ही उपाय है जागरूकता और विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का ध्‍येय है, अक्‍टूबर महीने को ब्रेस्‍ट जागरूकता माह मानकर लोगों को इस बीमारी के लिए जागरूक करना। भारत में महिलाएं आज भी अपने स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर जागरूक नहीं हैं और यही कारण है कि इस बीमारी की संख्‍या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

मैक्‍स हैल्‍थकेयर के रेडियेशन आंकालाजिस्‍ट डाक्‍टर ए.के आनंद का कहना है कि महिलाओं और पुरूषों में होने वाले इस कैंसर के वास्‍तविक कारणों का पता नहीं चल पाया है, लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह हार्मोनल या अनुवांशिक कारणों से होता है।

स्‍तन कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन 40 वर्ष की उम्र के बाद इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।
अगर आपके परिवार में पहले से किसी को कैंसर रहा है , तो 40 वर्ष की उम्र के होने के बाद, साल में एक बार जांच ज़रूर करायें।
अगर आप धूम्रपान या मादक पदार्थो का सेवन करती हैं तो भी आपमें कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।

ब्रेस्‍ट कैंसर से बचाव के कुछ घरेलू नुस्‍खे:

काली मिर्च:
काली मिर्च में बहुत अधिक मात्रा में एण्‍टीआक्‍सिडेंट्स होते हैं इसलिए यह किसी भी प्रकार के कैंसर से आपकी सुरक्षा करता है। इसमें पैपरीन होता है, जो एण्‍टी कैंसर के रूप में प्रयोग किया जाता है।

लहसुन: 
लहसुन में भी एण्‍टीआक्‍सिडेंट्स अधिक मात्रा में होते हैं, जिससे यह भी एण्‍टी कैंसर आहार माना जाता है। यह कार्सिनोजेनिक कंपाउन्‍ड को बनने से रोकता है और कैंसर से शरीर की सुरक्षा करता है।

हरी चाय: 
हरी चाय सदियों से अपने औषधीय गुणों के कारण मानी जानती है। यह विभिन्‍न प्रकार के कैंसर से आपकी सुरक्षा करता है। प्रतिदिन हरी चाय के सेवन से कैंसर के सेल्‍स का बनना बंद हो जाता है। दिन में 3 बार हरी चाय पीने से शरीर में पूरी तरह से कैंसर के सेल्‍स का बनने की संभावना खत्‍म हो जाती है।

हल्‍दी: 
खाने में प्रयोग किये जाने वाले इन सामान्‍य चीज़ों का इस्‍तेमाल ज़रूर करें क्‍योंकि स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से भी यह अच्‍छे होते हैं। हल्‍दी में सर्कूमीन नामक फाइटोन्‍यूट्रियेन्‍ट होता है, जो सर्विक्‍स कैंसर से शरीर की सुरक्षा करता है।

हालांकि यह एक भ्रम है कि ब्रेस्‍ट कैंसर सिर्फ महिलाओं में होता है। कैंसर से बचने का इससे आसान और सरल उपाय क्‍या होगा, जो आपके किचन में ही आपको मिल सकता है।

प्याज खाने से कम होता है रक्तचाप



प्याज केवल खाने के स्वाद ही नहीं बढ़ाता है, बल्कि शारीरिक प्रक्रियाओं को भी संतुलित रखता है। सब्जियों में प्याज एक ऐसी सब्जी है, जिसका इस्तेमाल प्रायः हर घर में होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह सिर्फ खाने का स्‍वाद ही नहीं बढ़ाता है, बल्कि वजन कम करने के साथ- साथ डायबीटीज और ब्‍लड प्रेशर जैसी बीमारियों से भी बचाता है। क्‍वीनलैंड यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इन बीमारियों से बचे रहने के लिए ज्‍यादा से ज्‍यादा प्‍याज का सेवन करने की सलाह दी है। उन्होंने शोध में पाया कि  प्याज से निकलने वाला रस रक्तचाप तो कम करता ही है, साथ में लिवर में होने वाली क्षति की मरम्मत करता है।

प्याज है गुणकारी-
  • प्याज में केलिसिन और रायबोफ्लेविन(विटामिन बी) पर्याप्त मात्रा में होता है। इसकी गंध एन-प्रोपाइल-डाय सल्फाइड के कारण आती है।यह पदार्थ पानी में घुलनशील अमीनों अम्लों पर एन्जाइम की क्रिया के कारण बनता है। यह आंख के लिए एर बेहतरीन औषधि भी है और आंख साफ करता है।
  • अगर गर्मियों में लू लग गई हो, तो प्याज का रस दो-चार चम्मच पिएं। इसके रस को कनपटी व छाती पर मलें। प्याज का रस सर पर लगाने से गंजापन दूर हो जाता है।
  • प्याज  को पानी में उबालकर पीने से पेशाब संबंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
  • सरसों के तेल में प्याज का रस मिलाकर मालिश करने से गठिया के दर्द से आराम मिलता है।
  • सिर में दर्द हो, तो प्याज पीसकर पैरों के नीचे तलवे में लगाएं। प्याज को काटकर सूंघने से भी सिर का दर्द ठीक होता है।
  • बवासीर में प्याज के 4-5 चम्मच रस में मिश्री और पानी मिलाकर नियमित रूप से कुछ दिन तक सेवन करने से खून आना बंद हो जाता है।
  • घाव में नीम के पत्ते का रस और प्याज का रस समान मात्रा में मिलाकर लगाने से शीघ्र ही घाव भर जाता है।
  • प्याज के रस में दही, तुलसी का रस तथा नींबू का रस मिलाकर बालों में लगाएं। इससे बालों का गिरना बंद हो जाता है और रूसी की समस्या से भी निजात मिलती है।
  • मासिक धर्म की अनियमितता या दर्द में प्याज के रस के साथ शहद लेने से काफी लाभ मिलता है। इसमें प्याज का रस 3-4 चम्मच तथा शहद की मात्रा एक चम्मच होनी चाहिए। 
  • प्याज के 3-4 चम्मच रस में घी मिलाकर पीने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है।
  • प्याज के रस में चीनी मिलाकर शर्बत बनाएं और पथरी से पीड़ित व्यक्ति को पिलाएं। इसे प्रातः खाली पेट ही पिएं।

आइये जाने डे केयर प्रोसेस क्या है ?



आमतौर पर लोगों को लगता है कि अस्पताल में लंबे समय तक रहने से ही उनके दावों को रीइम्बर्समेंट के लायक माना जाएगा। उनका यह सोचना ठीक नहीं है। आज हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के पास ऐसी स्वास्थ्य नीतियां भी हैं, जिससे रोगी को दिनभर की भर्ती में ही भुगतान मिल जाता है और उससे ज्यादा दिन तक अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं पड़ती।

इस नई प्रक्रिया को डे-केयर कहा जाता है। डे-केयर प्रक्रिया में 24 घंटे का हॉस्पिटलाइजेशन नहीं होता है, हालांकि इसका मतलब यह नहीं होता कि इसमें खर्च कम लगता है। सच्चाई यह है कि रेडिएशन और केमोथेरोपी या डायलेसिस में होने वाला कुल खर्च, हो सकता है हर्निया की सर्जरी से ज्यादा हो।

डे-केयर प्रक्रिया के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन लोग इससे जुड़े हेल्थ कवर के चयन में गलतियां कर बैठते हैं। यहां आपको डे-केयर प्रक्रिया से जुड़ी जानकारियां दी जा रही हैं।

डे-केयर प्रकिया
डे-केयर प्रक्रिया की कवर संख्या और श्रेणी इस पर निर्भर करती है कि आप कौन सी इंश्योरेंस कंपनी चुन रहे हैं। जनरल इंश्योरेंस के हेल्थ इंश्योरेंस हेड ने बताया, 'मेडिकल ट्रीटमेंट में तकनीकी प्रगति को देखते हुए डे-केयर प्रक्रिया वाले हेल्थ कवर की सूची बढ़ रही है।' इसके चलते कई बीमारियों का इलाज अब दिनभर में ही हो जाता है, जबकि पहले इसके लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ता था। मीडियामैनेज डॉट कॉम के ई-बिजनेस हेड महावीर चोपड़ा ने बताया, 'मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए पहले 24 घंटे से ज्यादा भर्ती होना पड़ता था, लेकिन अब इसके लिए 12-13 घंटे ही काफी हैं।'

डे-केयर भर्ती प्रक्रिया में मोतियाबिंद, टॉन्सिलैक्टोमी, डायलेसिस और केमोथेरेपी के अलावा और कई प्रकार के दूसरे रोग भी शामिल हैं।

पूरी जानकारी जरूरी
बीमा कंपनियां अपने फायदे के हिसाब से डे-केयर इलाज की भर्ती प्रक्रिया को अपनी पॉलिसी में रखती हैं। इसलिए इसको एक वैकल्पिक हेल्थ प्लान के रूप में चुनना बुद्धिमानी नहीं मानी जाएगी। चोपड़ा ने बताया, 'पॉलिसी चुनते वक्त कई लोग डे-केयर प्रक्रिया के तहत आने वाले रोगों की तुलना में गलती कर बैठते हैं। वे बीमारियों के कवर की संख्या को देखकर भ्रमित हो जाते हैं और इस पहलू को ठीक से परख नहीं पाते हैं।'

कई स्वास्थ्य बीमा कंपनियां अपनी पॉलिसी में ज्यादा रोग कवर करती है, इसका मतलब यह नहीं है कि यह मार्केट का सबसे अच्छा प्लान है। अगर एक कंपनी अपनी पॉलिसी में 162 रोगों को कवर करने का दावा करती है और दूसरी केवल 148 तो इसका मतलब यह नहीं है कि पहली कंपनी का प्लान बढ़िया होगा।

फाइलिंग क्लेम
इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर एस नारायणन ने बताया, 'डे-केयर भर्ती और सामान्य भर्ती के लिए क्लेम प्रक्रिया एक जैसी होती है। हालांकि, भर्ती प्रक्रिया के तहत सामान्य तौर पर कुछ इंश्योरेंस कंपनियां पहले से तय इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने से पहले जानकारी देने का अनुरोध करती है।' कैशलेस फैसिलिटी के मामले में सामान्य और डे-केयर भर्ती प्रक्रिया के नियम थोड़े अलग हैं।

दत्त ने बताया, 'यह भर्ती के लिए पहले से तय तिथि के आधार पर किया जाता है। आमतौर पर अस्पताल में कैशलेस इलाज के पहले बीमा कंपनियों को सूचित करना पड़ता है और ज्यादातर मामलों में इसकी जरूरत नहीं है।'

क्लेम अप्रूवल
डे-केयर प्रक्रिया में क्लेम की मंजूरी लेने में दिक्कत नहीं आती है। दत्त ने बताया, 'जब से सर्जिकल प्रक्रिया का चलन ज्यादा बढ़ा है तब से इलाज के खर्च का पता लगाने में आसानी होती है और इसलिए नियमित हॉस्पिटलाइजेशन के खर्च की तुलना में कैशलेस फैसिलिटी की मंजूरी जल्द मिल जाती है। जब से मूल्यांकन प्रक्रिया आसान हुई है तब से रिइम्बर्समेंट में भी तेजी आ गई है।'

अपने स्तनों की जांच कैसे करें

स्तन केन्सर का पता प्रारंभि क अवस्था में लगाना महत्वपूर्ण होता है क्योंकि आप सही समय पर वह उपचार ले सकते हैं जो आपका जीवन बचा पायेगा। स्तन केन्सर को प्रारंभि क अवस्था में पाने के लिए आप क्या कर सकते हैं वह यहां बताया गया है:

  • अपने डाक्टर से अपने स्तन की जांच हर 3 वर्षों में करवाएं यदि आप अपनी 20 और 30 वर्ष की आयु में हैं और इसे प्रत्येक वर्ष करवाएं यदि आप 40 वर्ष या इससे ज्यादा आयु की हैं।
  • यह जानकारी रखें कि आपके स्तन कैसे दिखते और (छूने पर) महससू होते हैं: और आपके स्तन के कि सी भी परिवर्तन के बारे में अपने डाक्टर को तत्काल बताएं। आपको अपने स्तन की स्वयं-द्वारा जांच (Breast self- examination- बी.एस.ई.) अपने 20वें वर्ष से शुरू कर देनी चाहि ए। यह पुस्ति का आपको बताएगी कि स्तन की स्वयं-द्वारा जांच कैसे की जाती है।
  • 40 वर्ष की आयु आरंभ होने पर अपने डाक्टर से पूछें की क्या आपके लि ए मैमोग्राम (स्तनों का एक्स-रे) करवाना ठीक रहेगा। 
  • यदि आपके कि सी निकटतम संबंधी जैसे माता, बहन या लड़की को स्तन का केन्सर हो चुका है, तो अपने डाक्टर को बताएं।
अपने स्तनों की जांच कैसे करें
स्तन की स्वयं-द्वारा-जांच करने के कई तरीके हैं। हो सकता है कि आपको यहां बताए गए तरीके से अलग तरीका सि खाया गया हो। वह भी ठीक है। अधि क महत्वपूर्ण यह है कि आप यह जान लें कि आपके लि ए कौन सा तरीका सबसे अच्छा है।

स्तनों की स्वयं-द्वारा-जांच महीने में एक बार करें, सामान्यतया मासि क धर्म शुरू होने के बाद सातवें से दसवें दिन के बीच। यदि आपके मासि क धर्म की अवधि ज्यादा लम्बी नहीं है, तो प्रत्येक महीने का एक दिन स्तन की जांच के लि ए निर्धा रित कर लें – उदाहरण के लिए, महीने का पहला दिन या संभवत: महीने का पन्द्रहवां दिन।

अपने स्तनों की स्वयं-द्वारा-जांच करते समय आप अपने स्तनों में आए बदलाव को देख रही होती हैं। आप इसे स्तन का केन्सर या सिस्ट (पानी जैसे द्रव्य से भरी गांठ) देखने के लिए नहीं कर रही होती हैं, बल्कि आप इसे पिछले माह की गई जांच से कुछ नयापन या भि न्नता देखने के लि ए कर रही होती हैं।

यहां इसको करने की विधि दी जा रही है:
  • शीशे के सामने खड़े होकर अपने स्तनों को देखें।
  • अब सो जाएं और दाएं हाथ से आपके बाएं स्तन और अपने बाएं हाथ से दाएं स्तन की जांच करें।
  • बैठें या या खड़े हो जाएं और अपनी कांखों को जांचें। 
शीशे के सामने खड़े होकर

  • जब शीशे के सामने खड़ी हों, तब अपने स्तनों को देखें: अपनी भुजाओं को अपनी बगलों में रखकर, इसके बाद अपनी भुजाओं को सि र से ऊपर उठाकर, फिर अपने हाथों से अपने नितम्बों को दबाकर, और अपने स्तन की मांसपेशियों को सख्त करके खींचते हुए।
  • अपने स्तनों में आए कैसे भी परिवर्तनों के लि ए देखें। स्तनों की चमड़ी या चूचि यों (निप्पल) के आकार, बनावट, गोलाई, गांठें, चक् कते, ललाई, जैसे परिवर्तनों के लि ए देखें। जब आप शीशे के सामने खड़ी हों तब अपने स्तनों में हो सकने वाले परिवर्तनों को देखें 
सीधे लेटकर



  • सीधा लेटने पर अपने स्तनों में आए बदलाव को महसूस करें
  • अपनी पीठ पर लेटें, दाहि ने कंधे के नीचे एक तकि या लगाएं और अपनी दाहि नी बाजु को सिर के पीछे लगाएं।

  • दाहिने स्तन में गांठों को महसूस करने के लि ए अपने बाएं हाथ की बीच की तीन उंगलि यों के निचले हि स्से (फिंगर पैड्स) को काम में लें। स्तन के ऊतकों को महसूस करने के लि ए फिंगर पैड्स को गोलाकार तरीके से ओवरलैप (Overlap) करते हुए घुमाएं। सीधा लेटने पर अपने स्तनों में आए बदलाव को महसूस करें अंगुलि यों के फिंगर पैड्स का इस्तेमाल करें न कि अंगुली के आगे वाले टिप्स का सीधे लेटकर हल्का दबाएं मध्यम रूप से दबाएं जोर से दबाएं
  • स्तन के सभी ऊत्तकों को महसूस करने के लिए दबाव के तीनों स्तरों का इस्तेमाल करें। चमड़ी के साथ जुड़े हुए ऊत्तकों को महसूस करने के लि ए हल्का दबाव जरूरी है, अधि क गहराई वाले ऊत्तकों को महसूस करने के लि ए मध्यम दबाव, तथा छाती और पसली के समीप के ऊत्तकों को महसूस करने के लिए ठोस दबाव जरूरी होता है। प्रत्येक स्तन की निचली गोलाई में एक ठोस लकीर सामान्य रूप से महसूस होती है।
  • आपके डाक्टर या नर्स को आपको सि खाना चाहिए कि कितने जोर से स्तन को दबाया जाए। स्तन के अगले भाग कि जांच करने से पहले यहॉ बताए गए प्रत्येक दबाव के स्तर का उपयोग स्तन उस भाग के सभी ऊत्तकों को महसूस करने के लिए करें।
  • अपने समस्त स्तन की जांच के लिए ऊपर-तथा-नीचे की ओर वाली विधि का इस्तेमाल करें।
  • ऊपर-तथा-नीचे की ओर वाली विधि का उपयोग कांख से आरंभ करके छाती के बीच की हड्डी के मध्य तक करें।, यह सुनिश ्चित कर लें कि स्तन के नीचे जाते हुए पसलि यों तक, तथा ऊपर तक गर्दन या गर्दन की हड्डी तक, पूरे स्तन क्षेत्र की जांच कर ली गई है।
  • इसी प्रकार बाएं स्तन की जांच दाएं हाथ के फिंगर पैड्स का उपयोग करते हुए करें। अपने समस्त स्तन की जांच के लिए ऊपर-तथा-नीचे की ओर वाली विधि का इस्तेमाल करें।
बैठकर या खड़े होकर
  • आप कांख (भुजा के अंदर) के हि स्से को इस तरह बेहतर महसूस कर सकेंगी।
  • बैठते या खड़े होते हुए और जब आपकी भुजा थोड़ी सी ऊपर उठी हुई हो तब प्रत्येक कांख को जांचें। जब आप सबसे पहली बार अपने स्तनों की जांच करना शुरू करेंगी उस समय आप क्या महसूस करती हैं यह जान पाना कठिन होगा। बार-बार अभ्यास करने के साथ आप अपने स्तनों के बारे में जानने लग जाएंगी। अपने स्तन के बारे में जांच के दौरान अपने अहसास के बारे में जानने की मदद के लि ए अपने नर्स या डाक्टर से भी पूछें क्योंकि वे ही आपके स्तनों की जांच करते हैं।
अपने डाक्टर से मिलें, यदि आप कोई लक्षण नोट करें:

  • लम्प (मुलायम गांठ), कठोर गांठ या स्तन में मोटापन 
  • स्तन के आकार या बनावट में बदलाव
  • चमड़ी में गड्डा, या सि कुड़न अथवा झुर्री
  • चूची या स्तन की चमड़ी पर चक् कता (रैश), ललाई या पपड़ी बनना
  • चूची से खून-से रंग के पानी या खून का बहना
  • स्तन में नया दर्द जो जा नहीं रहा होता है
  • चूची की हाल में हुई सि कुड़न
  • कांख में कठोर गांठ

असामान्य वक्षस्थल हेतु सामान्य घरेलु उपाय



आयुर्वेदिक उपचार : 
अरंडी के पत्ते, घीग्वार (ग्वारपाठा) की जड़, इन्द्रायन की जड़, गोरखमुंडी एक छोटी कटोरी, सब 50-50 ग्राम। पीपल वृक्ष की अन्तरछाल, केले का पंचांग (फूल, पत्ते, तना, फल व जड़) , सहिजन के पत्ते, अनार की जड़ और अनार के छिलके, खम्भारी की अन्तरछाल, कूठ और कनेर की जड़, सब 10-10 ग्राम। सरसों व तिल का तेल 250-250 मिलीग्राम तथा शुद्ध कपूर 15 ग्राम। यह सभी आयुर्वेद औषधि की दुकान पर मिल जाएगा।

निर्माण विधि : 
सब द्रव्यों को मोटा-मोटा कूट-पीसकर 5 लीटर पानी में डालकर उबालें। जब पानी सवा लीटर बचे तब उतार लें। इसमें सरसों व तिल का तेल डालकर फिर से आग पर रखकर उबालें। जब पानी जल जाए और सिर्फ तेल बचे, तब उतारकर ठंडा कर लें, इसमें शुद्ध कपूर मिलाकर अच्छी तरह मिला लें। बस दवा तैयार है। 

असामान्य व अविकसित स्तनो हेतु प्रयोग विधि : 
इस तेल को नहाने से आधा घंटा पूर्व और रात को सोते समय स्तनों पर लगाकर हलके-हलके मालिश करें।

लाभ : 
इस तेल के नियमित प्रयोग से 2-3 माह में स्तनों का उचित विकास हो जाता है और वे पुष्ट और सुडौल हो जाते हैं। ऐसी युवतियों को तंग चोली नहीं पहननी चाहिए और सोते समय चोली पहनकर नहीं सोना चाहिए। इस तेल का प्रयोग लाभ न होने तक करना चाहिए।

अन्य लाभकारी उपाय :
फिटकरी 20 ग्राम, गैलिक एसिड 30 ग्राम, एसिड आफ लेड 30 ग्राम, तीनों को थोड़े से पानी में घोलकर स्तनों पर लेप करें और एक घंटे बाद शीतल जल से धो डालें। लगातार एक माह तक यदि यह प्रयोग किया गया तो 45 वर्ष की नारी के स्तन भी नवयौवना के स्तनों के समान पुष्ट हो जाएंगे।

गम्भारी की छाल 100 ग्राम व अनार के छिलके सुखाकर कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। दोनों चूर्ण 1-1 चम्मच लेकर जैतून के इतने तेल में मिलाएं कि लेप गाढ़ा बन जाए। इस लेप को स्तनों पर लगाकर अंगुलियों से हलकी-हलकी मालिश करें। आधा घंटे बाद कुनकुने गर्म पानी से धो डालें। जो भी परिणाम मिले, उसकी सूचना कृपया हमें जरूर दें।

छोटी कटेरी नामक वनस्पति की जड़ व अनार की जड़ को पानी के साथ घिसकर गाढ़ा लेप करें। इस लेप को स्तनों पर लगाने से कुछ दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।

बरगद के पेड़ की जटा के बारीक नरम रेशों को पीसकर स्त्रियां अपने स्तनों पर लेप करें तो स्तनों का ढीलापन दूर होता है और कठोरता आती है।

इन्ही के साथ सर्वोत्तम यह भी रहेगा कि रात को सोने से पहले किसी भी तेल की 10 मिनट तक मालिश करें। या तो स्वयं करें या अपने पति से कराएं, मालिश के दिनों में गेप न करें, रेगुलर करें व दो माह बाद चमत्कार देखें। स्तनों की मालिश हमेशा नीचे से ऊपर ही करें।

स्तनों की शिथिलता दूर करने के लिए एरण्ड के पत्तों को सिरके में पीसकर स्तनों पर गाढ़ा लेप करने से कुछ ही दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है। कुछ व्यायाम भी हैं, जो वक्षस्थल के सौन्दर्य और आकार को बनाए रखते हैं।

महिलाओं के शरीर में स्तनों का विशिष्ट स्थान है, इस दृष्टि से इनकी देखभाल और सुरक्षा करना बहुत जरूरी है। आज हर युवती चाहती है कि उसके स्तन उन्नत, सुडौल व विकसित दिखें। चेहरे के अलावा स्त्रियों के उन्नत स्तन ही आकर्षण का केन्द्र होते हैं।

जब किसी कारण किसी युवती के वक्षस्थल का समुचित विकास नहीं हो पाता तो वह चिंतित और दुःखी हो उठती है, प्रायः हमउम्र सहेलियों एवं परिवार की महिलाओं के सामने लज्जा का अनुभव करती है। उसे यह भी संकोच और भय होता है कि विवाह के बाद पति के सामने उसकी क्या स्थिति होगी।

शारीरिक सौंदर्य एवं देहयष्टि की दृष्टि से स्त्री शरीर में सुन्दर, स्वस्थ और सुडौल स्तन शारीरिक आकर्षण के प्रमुख अंग तो हैं ही, नवजात शिशु को पोषक, शुद्ध और स्वास्थ्यवर्द्धक आहार उपलब्ध कराने वाले एकमात्र अंग भी हैं। कुमारी अथवा विवाहित युवतियों के लिए इन अंगों का स्वस्थ, पुष्ट और सुडौल होना आवश्यक माना जाता है।

स्त्री के शरीर में पुष्ट, उन्नत और सुडौल स्तन जहां उसके अच्छे स्वास्थ्य के सूचक होते हैं, वहीं नारित्व की गरिमा और सौन्दर्य वृद्धि करने वाले प्रमुख अंग भी होते हैं। अविकसित, सूखे हुए और छोटे स्तन भद्दे लगते हैं, वहीं ज्यादा बड़े-ढीले और बेडौल स्तन भी स्त्री के व्यक्तित्व और सौन्दर्य को नष्ट कर देते हैं। स्तनों का सुडौल, पुष्ट और उन्नत रहना स्त्री के अच्छे स्वास्थ्य और

स्वस्थ शरीर पर ही निर्भर है। घरेलू कामकाज और खासकर हाथों से परिश्रम करने के काम अवश्य करना चाहिए।

स्तनों का उचित विकास न होने के पीछे शारीरिक स्थिति भी एक कारण होती है। यदि शरीर बहुत दुबला-पतला हो, गर्भाशय में विकार हो, मासिक धर्म अनियमित हो तो युवती के स्तन अविकसित और छोटे आकार वाले रहेंगे, पुष्ट और सुडौल नही हो पाएंगे। एक कारण मानसिक भी होता है, लगातार चिंता, तनाव, शोक, भय और कुंठा से ग्रस्त रहने वाली, स्वभाव से निराश, नीरस और उदासीन प्रवृत्ति की युवती के भी स्तन अविकसित ही रहेंगे।

यदि वंशानुगत शारीरिक दुबलापन न हो तो उचित आहार और हलके व्यायाम से शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाया जा सकता है। जब पूरा शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाएगा तो स्तन भी विकसित और पुष्ट हो जाएंगे। शरीर बहुत ज्यादा दुबला-पतला, चेहरा पिचका हुआ और आंखें धंसी हुई होंगी तो यही हालत स्तनों की भी होता स्वाभाविक है।

इसके अलावा युवतियों की एक समस्या और है- बेडौल, ज्यादा बड़े आकार के व शिथिल स्तन होना। इसके कारण हैं शरीर का मोटा होना, चर्बी ज्यादा होना, ज्यादा मात्रा में भोजन करना, मीठे व गरिष्ठ पदार्थों का सेवन, सुबह ज्यादा देर तक सोना, दिन में अधिक देर तक सोना आदि। मानसिक कारणों में एक कारण और है- कामुक विचारों का चिंतन करना, अश्लील साहित्य या चित्रों का अवलोकन, हमउम्र सहेलियों से कामुकतापूर्ण बातें, किसी बहाने से अपने स्तन सहलवाना या मर्दन करवाना, किसी बहाने से स्तनों को छूने के पुरुषों को ज्यादा मौके देना आदि।

आयुर्वेद ने स्तनों की उत्तमता को यूं कहा है- स्तन अधिक ऊंचे न हों, अधिक लम्बे न हों, अधिक कृश (मांसरहित) न हों, अधिक मोटे न हों। स्तनों के चुचुक (निप्पल) उचित रूप से ऊंचे उठे हुए हों, ताकि बच्चा भलीभांति मुंह में लेकर सुखपूर्वक दूध पी सके, ऐसे स्तन उत्तम (स्तन सम्पत्‌) माने गए हैं।

नारी शरीर में स्तनों का विकास किशोर अवस्था के शुरू होते ही, 12-13 वर्ष की आयु होते ही होने लगता है और 16 से 18 वर्ष की आयु तक इनका विकास होता रहता है। गर्भ स्थापना होने की स्थिति में इनका विकास तेजी से होता है, ताकि बालक का जन्म होते ही, उसे इनसे दूध मिल सके। स्तनों का यही प्रमुख एवं महत्वपूर्ण उपयोग है।

स्तनों की देखभाल
कभी-कभी स्तनों में हलकी सूजन और कठोरता आ जाती है। मासिक धर्म के दिनों में प्रायः यह व्याधि हुआ करती है, जो मासिक ऋतु स्त्राव बन्द होते ही ठीक हो जाती है। ऐसी स्थिति में गर्म पानी से नैपकिन गीला करके स्तनों को सेकना चाहिए।

गर्भावस्था के दिनों में स्तनों को भली प्रकार धोना, अच्छे साबुन का प्रयोग करना, चुचुकों को साफ रखना यानी चुचुक बैठे हुए और ढीले हों तो उन्हें आहिस्ता से अंगुलियों से पकड़कर खींचना व मालिश द्वारा उन्नत व पर्याप्त उठे हुए बनाना चाहिए, ताकि नवजात शिशु के मुंह में भलीभांति दिए जा सकें। यदि हाथों के सहयोग से यह सम्भव न हो सके तो 'ब्रेस्ट पम्प' के प्रयोग से चुचुकों को उन्नत और
उठे हुए बनाया जा सकता है।

कभी-कभी चुचुकों में कटाव, शोथ या अलसर जैसी व्याधि हो जाती है, इसके लिए थोड़ा सा शुद्ध घी (गाय के दूध का) लें, सुहागा फुलाकर पीसकर इसमें मिला दें। माचिस की सींक की नोक के बराबर गंधक भी मिला लें। इन तीनों को अच्छी तरह मिलाकर मल्हम जैसा कर लें और स्तनों के चुचुक पर दिन में 3-4 बार लगाएं। ताजे मक्खन में थोड़ा सा कपूर मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है।

सावधानियां
किशोरावस्था में जब स्तनों का आकार बढ़ रहा हो, तब तंग अंगिया या ब्रेसरी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि उचित आकार की और तनिक ढीली अंगिया पहनना चाहिए। बिना अंगिया पहने नहीं रहना चाहिए वरना स्तन बेडौल और ढीले हो जाएंगे। ज्यादा तंग अंगिया पहनने से स्तनों के स्वाभाविक विकास में बाधा पड़ती है।

भलीभांति शारीरिक परिश्रम करने वाली, हाथों से काम करने वाली किशोर युवतियों के अंग-प्रत्यंगों का उचित विकास होता है और स्तन बहुत सुडौल और पुष्ट हो जाते हैं। प्रायः घरेलू काम जैसे कपड़े धोना, छाछ बिलौना, कुएं से पानी खींचना, बर्तन मांजना, झाड़ू-पोछा लगाना और चक्की पीसना ऐसे ही व्यायाम हैं, जो स्त्री के शरीर के सब अवयवों को स्वस्थ और सुडौल रखते हैं।

बच्चे को जन्म देते ही स्तनों का प्रयोग शुरू हो जाता है। स्तन के चुचुकों को भलीभांति अच्छे साबुन-पानी से धोकर साफ करके ही शिशु के मुंह में देना चाहिए। यदि बच्चे को दूध पिलाने के बाद भी स्तनों में दूध भरा रहे तो इस स्थिति में हाथ से या 'ब्रेस्ट पम्प' से, दूध निकाल देना चाहिए। सब प्रयत्न करने पर भी स्तन में कोई व्याधि, सूजन या पीड़ा हो तो शीघ्र ही किसी कुशल स्त्री चिकित्सक को दिखा देना चाहिए।

किसी भी स्थिति में स्तनों पर आघात नहीं लगने देना चाहिए। स्तन में कभी कोई छोटी सी गांठ हो जाए जो कठोर हो और स्तन से दूध की जगह खून आने लगे तो यह स्तन के कैंसर हो सकने की चेतावनी हो सकती है। ऐसी स्थिति में तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना जरूरी है।

जल ही जीवन है

पानी कार्बोहाइड्रेट्स,प्रोटीन और वसा की तरह की न्यूट्रिशन है। लगभग 70 फीसदी बॉडी पानी पर ही टिकी है। यह हमारे घुटनों, कलाई और सभी अंतरंग भागों की चिकनाई के साथ-साथ बॉडी के जोड़ों के लिए कई महत्वपूर्ण काम करता है। शरीर में पानी की अधिकतम मात्रा शरीर से व्यर्थ चीजों और जहर आदि को निकालने के साथ-साथ पूरी बॉडी में न्यूट्रिशन को पहुंचाने का काम भी करता है।

क्या अधिकतम मात्रा में पानी पीना नुकसानदेह है?
हां, आप अपने शरीर से पसीने, मलमूत्र और सांसों आदि के जरिए जितना पानी निकालते हैं उससे ज्यादा पानी पीना नुकसानदेह हो सकता हैं।
  • जो लोग जिम जाते हैं क्या उन्हें जिम न जाने वालों के मुकाबले पानी ज्यादा पीने की जरूरत है। जिम जाने वालों को अधिक पानी पीना चाहिए? किस लेवल पर दोनों कैटेगिरी को पानी पीना चाहिए?
  • हां बिल्कुल। आपकी गतिविधियां आपकी पानी पीने की क्षमता को निर्धारित करती हैं। सामान्यतः 100 कैलोरी पर आधा गिलास या 100 मिमि. पानी पीना चाहिए। इसी के हिसाब से थोड़ा ऊपर नीचे हो सकता है। ऐसे में आपको अपना बीएमआर मेटाबोलिक रेट के हिसाब से कैलकुलेट करना चाहिए सर्वाइव करने में आपको एक कैलोरी में कितना पानी पीना होगा। अगर आप किसी गतिविधि में शामिल हैं तो उसमें 500 से 1000 तक कैलोरी को जोड़ लेना चाहिए। अगर आप जिम जाते हैं तो ऐसे में आपको अधिक से अधिक कैलोरी को जोड़ पानी पीने के लेवल में भी एडजेस्टमेंट करनी चाहिए।
यह कैसे तय किया जाए कि महिलाओं और पुरूषों को कितना पानी पीना चाहिए?
  • यह बीएमआर और एक्टिविटी लेवल पर निर्भर करता है। साधारणतयाः जिम न जाने वाले व्यक्ति को 500 कैलोरी और जिम जाने वाले को 1000 कैलोरी के हिसाब से पानी पीना चाहिए।
  • बहरहाल, 100 कैलोरी के लिए 100 एमएल पानी पीना जरूरी है। एक गिलास 200 एमएल का होता है। इसका अर्थ यह है कि 200 कैलोरी के लिए 200 एमएल पानी पीना जरूरी है। अगर आप पूरे दिन में कुल 3000 कैलोरी व्यय कर रहे हैं तो उसे 200 से भाग करने पर आपको एक दिन में 15 गिलास पानी पीना चाहिए। वैसे भी एक दिन में 12-13 गिलास पानी पीना र्प्याप्त होता है।
अधिकतम मात्रा में पानी पीने से चेहरे की झुर्रियां दूर हो जाती हैं। क्या यह सही है या सिर्फ एक मिथ है?
  • हां, कुछ हद तक तो यह सही है। पानी पीने से चेहरे पर नमी रहती है। वैसे भी एक निश्चित अंतराल के बाद स्किन को ठीक रहने और हेल्दी बनाने के लिए पानी पीने की सलाह दी जाती है।
खाना खाते हुए भी किसी व्यक्ति को अधिक से अधिक पानी पीने की सलाह दी जाती है?
  • देखिए, जरूरत से ज्यादा कुछ भी सही नहीं होता है। जैसे मैंने पहले बताया पानी पीने की मात्रा व्यक्ति के एक्टिविटी लेवल पर निर्भर करती हैं। अगर आप सही मात्रा में पानी पी रहे हैं तो हर दो घंटे बाद आपको बाथरूम जाने की आवश्यकता होगी।
  • अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को अधिक पानी पीने पर जोर देते हैं क्योंकि यह ब्लैडर कैंसर से बचाता है? क्या कम पानी पीने से एसिड यूरिन आता हैं? यह बात कहां तक सही है?
  • यह सही है कि पानी ब्लैडर कैंसर को रोकता है। लेकिन बच्चों को ऊर्जा के लिए पानी पीना चाहिए। सिर्फ व्यस्कों को ही ब्लैडर कैंसर से बचाव के लिए अधिक पानी पीने की सलाह दी जाती है। यूरिन एसिड लेवल हाई होना नुकसानदासक नहीं है लेकिन किसी व्यक्ति फिर चाहे वह महिला हो या पुरूष का गलत खान-पान और अधिक वजन होने पर समस्या पैदा होती है। ऐसे में अधिकतम पानी पीकर यूरिन एसिड लेवल कम करने की सलाह दी जाती है।
गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिला को कितना पानी पीना चाहिए?
  • पानी गर्भवती के लिए बहुत अहम न्यूट्रिशन है। गर्भ धारण के समय इसके अलग-अलग रूपों में प्रभाव पड़ते हैं। यह ऊर्जा प्रदान करता है। मिसकैरिज, कब्ज, रक्त स्राव और इलेक्ट्रॉयड को इंम्बैंलेस होने से रोकता है। इस अहम बात को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि पानी प्रेगनेंसी में शरीर को काम करने लायक बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसी से वह हॉर्मोंस ग्रहण कर पाती है जो कि जरूरत के हिसाब से एडीशनल फ्लूड इकट्ठा करने में मदद करते हैं। गर्भवती को एडीशनल फ्लूड की जरूरत पड़ती है क्योंकि अतिरिक्त पानी को फेफड़ों के माध्यम से बाहर निकाला जाता है। तीसरे महीने में दोगुना रक्त की जरूरत होती है क्योंकि किडनी के का काम ऐसे में अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में फ्लूड की जरूरत भारी मात्रा में पड़ती है।
  • गर्भवती महिला से एक दिन में कम से कम 13 गिलास पानी पीने की अपेक्षा की जाती है। इसी के साथ भारी मात्रा में पानी की अधिकता वाले फल और जूस लेना चाहिए।
  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं को तरल पदार्थों पर खासा ध्यान देना चाहिए। जब भी वे फीड कराएं उससे पहले एक गिलास पानी पीना काफी लाभदायक होता है, यह फीडिंग के दौरान हुई फ्लूड की कमी को भरता है।
खाना खाने से पहले और बाद में क्या पानी पीना हमारे पाचन तंत्र को खराब करता हैं। यह कहां तक उचित है?
  • पानी हमारे एन्जाइंम में नही मिलता क्योंकि यह हमारे पाचन तंत्रों में मिक्स नहीं हो पाता। बल्कि पानी तो शरीर में जाने वाले पौष्टिक आहार को टुकड़ों में विभाजित करता है। इसीलिए भोजन करने से कुछ समय पहले पानी पीने की सलाह दी जाती है।
मुंहासों को दूर करने के लिए कितना पानी पीना जरूरी है
  • मुंहासों और विषैले तत्वों को बाहर निकालने के लिए पानी की मदद लेनी चाहिए। आपको दिन की शुरूआत में ही तय कर लेना चाहिए कि आपको कितने पानी की जरूरत है और उसी हिसाब से थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर आपको उचित मात्रा में पानी पीना चाहिए।
पानी की कमी, चक्कर आना, थकान आदि क्या ये पानी की कमी के कारण होता है। इससे कैसे बचा जा सकता है?
  • दो फीसदी पानी की कमी होने पर कुछ लक्षण होते हैं जैसे प्यास लगती है, भूख लगती है, स्किन ड्राई हो जाती है। मुंह सूख जाता है, ठंड लगती है और डॉर्क यूरिन होता है।
  • अगर पांच फीसदी पानी की कमी होती है तो हृहय की धड़कन बढ़ जाती है। मलमूत्र त्यागने में परेशानी होती है। मांसपेशियों में जकड़न हो जाती है। थकान बहुत होने लगती है। जी मिचलाना,, सरदर्द आदि तकलीफें होने लगती है।
  • अगर 10 फीसदी से अधिक पानी की कमी है तो मेडीकल हेल्प लेने में देरी नहीं करनी चाहिए। बहुत सी तकलीफों के साथ ही मांसपेशियों में अकड़न, उल्टी आना, नब्ज का तेज होना, शरीर का सिकुड़ना, यूरिन करते समय दर्द होना, कम दिखाई देना, चक्कर आना, सांस लेने में परेशानी होना, कंफ्यूज होना, छाती में दर्द होना आदि परेशानियां होने लगती हैं।
क्या सदियों में पानी पीने की मात्रा को कम करना चाहिए?
  • सर्दियों के समय बहुत ज्यादा प्यास नहीं लगती। लेकिन रूखी हवाओं के होने से प्यास न लगने पर भी पानी को उसी मात्रा में पीना चाहिए। पानी की कमी से झिल्लियां, फेफड़ों, आंतों आदि के ड्राई होने का खतरा बना रहता है जिससे इंफेक्शन होने का भी डर है। इसीलिए यह जरूरी है कि सर्दियों में पानी उचित मात्रा में लें।
क्या गुनगुना पानी पीने से मोटापा कम होता है?
  • पानी की समुचित मात्रा आमतौर पर मोटापा घटाने में सहायक होती है। लेकिन इसके साथ ही डाइट प्लान भी बहुत जरूरी है जो कि वेस्ट चीजों को निकालने में बहुत मदद करता है। यह न सिर्फ पाचन तंत्र को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है बल्कि इससे ऊर्जा भी मिलती हैं। किडनी ठीक रहती है।


Get Cure From Methi (मेथी के औषधीय गुण)



मेथी एक वनस्पति है जिसका पौधा १ फुट से छोटा होता है। इसकी पत्तियाँ साग बनाने के काम आतीं हैं तथा इसके दाने मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बहुत गुणकारी है।

भारतीय मसाले खाने का स्वाद ही नहीं, सेक्स पावर भी बढ़ाते हैं। ऑस्ट्रेलिया के सेंटर फॉर इंटिग्रेटिव क्लिनिकल ऐंड मॉलिक्युलर मेडिसिन के रिसर्चर्स ने अपनी स्टडी में यह बात पाई है।

रिसर्चर्स ने पाया कि मेथी में सेक्स पावर बढ़ाने की कमाल की क्षमता होती है। मेथी का इस्तेमाल करने वाले पुरुषों की सेक्स ड्राइव 25 फीसदी ज्यादा रहती है। रिसर्च में 25 से 52 साल के 60 पुरुषों को छह हफ्ते तक दिन में दो बार मेथी का अर्क दिया गया। नतीजे शानदार रहे। उनकी कामेच्छा का स्तर तीन और छह हफ्ते में काफी बढ़ गई।

छह हफ्ते में उनका स्कोर औसतन 16.1 से 20.6 हो गया। यह 28 पर्सेंट ज्यादा था। जबकि गोलियों का इस्तेमाल करने वाल दूसरे ग्रुप का स्कोर बढ़ने के बजाय गिर गया। मेथी के बीज में सैपनियन तत्व होता है, जो सेक्स हार्मोन को बढ़ा देता है।

मेथी का दाना गुणों की खान है
  • मेथी दाने हो या हरी मेथी में फॉस्फेट, फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर आदि पोषक तत्व पाये जाते हैं। मेथी में प्रोटीन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। यह हमारे भूख को भी बढ़ाती है।
  • मेथी हमें बेहतर स्वास्थ्य के साथ सौंदर्य भी प्रदान करती है। हमारी सुंदरता व स्वास्थ्य दोनों का संबंध हमारे उदर (पेट) से होता है।पेट की गड़बडि़यों से त्वचा पर फुंसियाँ निकलना, त्वचा की कांति का छिन जाना, एसीडिटी आदि समस्याएँ पैदा होती हैं।
  • मेथी एक ऐसी गुणकारी औषधि है, जो हमारे पेट संबंधी विकारों को दूर कर त्वचाको सौंदर्यता प्रदान करती है व स्वस्थ शरीर प्रदान करती है।
  • अपच, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, साइटिका आदि बिमारियों में मेथी के बीजों का का सेवन करना बहुत ही फायदेमंद होता है।सुबह बासी मुंह एक चम्म्च मेथीदाना पानी के साथ निगल लें.
  • मेथी घरेलू उपचार के प्रयोगों में अत्यधिक महत्व रखती है। किसी साधारण रोग मे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, परंतु गंभीर बीमारी में डॉक्टर के परामर्श से ही लें।
  • मेथी दाने की चाय पीने से आंतों की सफाई होती है। मेथी दाने एसीडिटी के इलाज में फायदेमंद है।रोज सुबह दाने पानी से फांके।
  • मेथी के चूर्ण तथा काढ़े(चाय) से कई पेट के रोगों में आश्चर्यजनक लाभ होता है।मेथी चाय- मेथी के दानों को रात भर पानी में भिगायें। सुबह मसल कर आंच पर रख दें, चाय की तरह उबालें। फिर थोड़ा गुड़ व दूध मिला कर पियें। ऊपर बतायी गयी मेथी दाने की चाय पीने से आंतों की सफाई होती है। मेथी दाने एसीडिटी के इलाज में फायदेमंद है।रोज सुबह दाने पानी से फांके।
  • मेथी का चूर्ण बना कर रख लें। इसे सूखा रोग, बहुमूत्र, अतिसार, पथरी, बुखार, पेचिश, रक्तचाप, मानसिक तनाव इन सब में इस्तेमाल करने से वपाा पोगलाभ होता है।
  • मुंह के छाले -मेथी के साग (पत्ते) के अर्क से गरारे करें, मुंह के छाले ठीक होंगे। -
  • इसका पेस्ट आंखों के नीचे लगाने से कालापन दूर होगा।
  • सांस की बदबू आती हो, तो मेथी के दाने को पानी में डाल कर उबालें फिर गरारे करें।
  • बालों के लिए बालों -मेथी दानों को रात में भिगो दें, सुबह पेस्ट बनायें, फिर आधे घंटे के लिए बालों पर लगायें। फिर सुविधानुसार, शिकाकाई आंवले से सिर धोयें, रूसी और खुश्की दूर होगी। मधुमेह के रोगी रोज सुबह दो चम्मच मेथी पानी से लें।
  • जहां तक संभव हो, मेथी से सब्जियों में तड़का दें। मेथी में मौजूद तत्व दिमागी कमजोरी को दूर करने में मदद करती है। मेथी में लौह तत्व अधिक मात्रा में होता है, इसका नियमित रूप से सेवन करने पर रक्तल्पता दूर होती है तथा इसमें रक्त शुद्धिकरण का खास गुण होता है।
  • मेथी के दानें तथा पत्ते, दोनों गुणकारी होता है।
  • प्रसव व प्रजनन से होने वाले रोगों को दूर करती है।
  • प्रदर की शिकायत होने पर मेथी दानों से बने काढ़े का सेवन करें।
  • मेथी दाने की चाय ऊपर बतायी गयी है, उसे पीने से आंतों की सफाई होती है। मेथी दाने एसीडिटी के इलाज में फायदेमंद है।रोज सुबह दाने पानी से फांके।
  • गुणकारी मेथी को आज ही से हम अपने भोजन में शामिल करें और स्वस्थ शरीर तथा सुंदर त्वचा प्राप्त करें

सवाल आपके जबाब हमारे


मेरी तीन साल की बेटी है। प्रसव के बाद मेरे स्तन ढीले हो गए हैं। क्या उनमें पहले की तरह कसाव लाया जा सकता है?
- नाजिया
  • डिलिवरी के बाद हार्मोंस में कई तरह के बदलाव आते हैं। इस दौरान कई महिलाओं के ब्रेस्ट लटकने लगते हैं। बच्चे को गलत तरह से स्तनपान करवाने से भी यह दिक्कत आती है। इसके लिए उचित नाप की बनियान पहनें। जैतून के तेल से स्तनों पर ऊपर की तरफ मालिश करें। हर दिन व्यायाम करें और घूमने जाएं। इसके अतिरिक्त किसी अच्छे कॉस्मेटिक क्लीनिक में जाकर ब्रेस्ट लिफ्ट की सीटिंग्स लें। इससे आपको काफी फायदा होगा।  
मेरी कमर व बाजुओं पर स्ट्रेच मार्क्स हैं। क्या इनका इलाज संभव है?
- सोनाली
  • वजन घट जाने या प्रेग्नेंसी में इस तरह के निशान पड़ जाते हैं। इन्हें घरेलू उपाय से दूर करना संभव नहीं है। इसके लिए आप एक अच्छे कॉस्मेटिक्स क्लीनिक में जाकर लेजर माइक्रोएब्रेजर यंग स्किन मास्क की सिटिंग्स लें। इससे त्वचा को पोषण मिलता है और माइक्रोएब्रेजर से ऊपरी त्वचा को हटाया जा सकता है। घर पर एएचए क्रीम व विटामिन ई युक्त क्रीम से मालिश करें। इससे भी आपको बेहद लाभ होगा।
मेरी उम्र 20 वर्ष है। मेरी समस्या यह है कि मेरे चेहरे का रंग सांवला है। कोई उपाय बताएं , जिससे मेरे चेहरे का रंग गोरा हो जाए ?
- पूजा सिंह
  • जब भी घर से बाहर निकलें , सनस्क्रीन क्रीम लगाकर निकलें। चंदन पाउडर , मुल्तानी मिट्टी , कद्दकस किए कच्चे आलू को ठंडे दूध में मिलाकर पैक बनाएं। इसे चेहरे पर लगाएं और सूख जाने पर धो दें। रोजाना ऐसा करने से आपकी स्किन काफी हद तक साफ हो जाएगी। इसके अलावा , आप किसी अच्छे कॉस्मेटिक्स क्लीनिक में जाकर अपनी त्वचा को निखारने के लिए आधुनिक तकनीक वाइट सीक्रेटस या स्किन पॉलिशिंग अपना सकती हैं।

प्रसव की सम्भावित तिथि की गणना



आप की अन्तिम माहवारी के पहले दिन से लेकर सामान्यतः गर्भ 40 सप्ताह तक रहता है, यदि आप को अन्तिम माहवारी की तिथि याद हो और आपका चक्र नियमित हो तो आप घर बैठे प्रसव की सम्भावित तिथि की गणना कर सकते हैं। यदि आप का चक्र नियमित और 28 दिन लम्बा हो तो अन्तिम माहवारी के आधार पर (एल एम पी) आप पहले दिन में नौ महीने और 7 दिन जोड़कर प्रसव की सम्भावित तिथि का निर्धारण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप की अन्तिम माहवारी 5 सितम्बर को शुरू हुई थी तो प्रसव की सम्भावित तिथि अगले वर्ष 12 जून होगी। आप यहाँ दिए गए संगणक की मदद भी ले सकती है :-



Last Menstrual Period:        
                              (MM/DD/YYYY format)

Average Length of Cycles:      (22 to 45)
                              (defaults to 28)

Average Luteal Phase Length:   (9 to 16)
                              (defaults to 14)

Estimated Conception: Estimated Due Date: Estimated Fetal Age:


महिला कंडोम क्या होता है?

महिला कंडोम महिलाओं के लिए गर्भ निरोधक विकल्प महिला कंडोम क्या होता है? महिला कंडोम की क्या विशेषता है? महिला कंडोम के उपयोग के लाभ क्या हैं? जनाना कंडोम के उपयोग की सही विधि क्या है?

क्या होता है?
  • महिला कंडोम 17 सेमी. (6.5 इंच) लम्बी पोलीउस्थ्रेन की थैली होती है। सम्भोग के समय पहना जाता है। यह सारी योनि को ढक देती है जिससे गर्भ धारण नहीं होता और एच आई वी सहित यौन सम्पर्क से होने वाले रोग नहीं होते।

विशेषता क्या है?
  • कंडोम के दोनों किनारों पर लचीला रिंग होता है। थैली के बन्द किनारे की ओर से लचीले रिंग को योनि के अन्दर डाला जाता है ताकि कंडोम अपनी जगह पर लग जाए। थैली की दूसरी ओर खुले किनारे का रिंग बल्वा के बाहर योनि द्वार पर रहता है। सहवास के समय लिंग को योनि के अन्दर डालते समय वह रिंग एक मार्गदर्शक का काम करता है और थैली को योनि में ऊपर नीचे उछलने से रोकता है। कंडोम में पहले से ही सिलिकोन आधारित चिकनाई लगी रहती है।

उपयोग के लाभ क्या हैं?
  • कंडोम प्रयोग को अपने साथी के साथ के बांटने का अवसर महिला को मिलता है।
  • यदि पुरूष कंडोम प्रयोग के लिए राजी न हो तो महिला अपने लिए कर सकती है।
  • पौलियूरथेन से बने महिला कंडोम से पुरूष के लेटैक्स से बने कंडोम की अपेक्षा एलर्जी की सम्भावनाएं कम रहती हैं।
  • यदि सही इस्तेमाल किया जाए तो यह गर्भ धारण एवं एसटीडी से बचाता है।
  • सम्भोग के आठ घन्टे पहल से लगाया जा सकता है इसलिए इससे रतिक्रिया में बाधा नहीं पड़ती।
  • पौलियूथरेन पतला होता है और ऊष्मता को सह जाता है अतः यौन अनुभूत बनी रहती है।
  • इसे तेल आधारित चिकनाई से काम में लाया जा सकता है।
  • इसको रखने के लिए किसी विशेष सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि पोलियूथेन पर तापमान और आर्द्रता के बदलाव का असर नहीं पड़ता। जनाना कंडोम निर्मित के पांच साल बाद तक काम में लायें जा सकते हैं।

गर्भधारण को रोकने में जनाना कंडोम कितना प्रभावशाली है?
  • यदि इसका सही ढ़ंग से और नियमित रूप से प्रयोग किया जाए तो इसकी प्रभविष्णुता 98 प्रतिशत है अगर सही और नियमित न हो तो प्रभविष्णुता की दर घट जाती है।

उपयोग की सही विधि क्या है?
  • पैकेट को सावधानी से खोलें – कंडोम को योनी के अन्दर डालने के लिए सुविधाजनक स्थिति चुने- पालथी, एक टांग उठाकर, बैठकर या लेटकर
  • कंडोम के अन्दर वाले रिंग को अन्दर दबाएं अंगूठे और मध्यमा की मदद से ताकि वह लंम्बा और तंग हो जाए और तब आन्तरिक रिंग और थैली को यानि द्वार से डालें।
  • तर्जनी को कंडोम के अन्दर डालें और रिंग जहां तक जाये उसमें दबा दें।
  • सुनिश्चत करें कि कंडोमं सीधा लगा है और योनि में जाकर मुडे नहीं। बाहरी रिंग योनि से बाहर ही रहना चाहिए।
  • सह्वास के लिये लिंग को योनी में डालवाते हुए लिंग को कंडोम के अन्दर ले जाने का रास्ता दिखायें और ध्यान रखें कि वह कंडोम से बाहर योनि में न चला जाए।

क्या महिला कंडोम का प्रयोग सरल है?
  • महिला कंडोम का उपयोग कठिन नहीं है परन्तु उसके उपयोग के लिए अभ्यास की जरूरत है। पहली बार सम्भोग के दौरान इसका उपयोग करने से पहले महिला को डालने और निकालने का अभ्यास कर लेना चाहिए। संस्तुति की जाती है कि इसके उपयोग में आत्मविश्वस्त होने और सुविधा महसूस करने के लिए उपयोग से पहले कम से कम तीन बार इसका अभ्यास कर लेना चाहिए।

क्या महिला कंडोम के लिए चिकनाई का प्रयोग किया जाना चाहिए, यदि हां तो कैसी चिकनाई?
  • महिला कंडोम में पहले से ही चिकनाई होती है, उनमें सिलिकोन आधारित स्परमिसिडिल रहित चिकनाई होती है। इससे कंडोम को लगाने में आसानी होती है और संभोग की गतिविध में सुविधा रहती है। पहले हो सकता है कि चिकनाई से कंडोम फिसले। यदि बाहरी रिंग कंडोम कंडोम के अन्दर चला जाये या योनि से बाहर आ जाए तो और अधिक चिकनाई की जरूरत पड़ती है। इसके अतिरिक्त, अगर सम्भोग के समय कंडोम का शोर हो तो थोड़ी सी चिकनाई और लगायें। महिला कंडोम जल आधारित के वाई जैली और तेल आधारित वैसलीन या बेबी ऑयल दोनों प्रकार की चिकनाई से लगाये जा सकते हैं।

सम्भोग के दौरान यदि कंडोम खिसक जाए या फट जाए तो क्या करना चाहिए?
  • यदि सम्भोग के समय कंडोम फट जाए या लिंग योनि में चला जाए तो एकदम रूकें और कंडोम को बाहर निकालें। नया कंडोम लगाएं और थैली के द्वार पर लिंग पर अतिरिक्त चिकनाई लगायें।

कंडोंम को कैसे निकालें या फैकें?
  • कंडोम को निकालने के लिए बाहरी रिंग को हल्के से घुमायें और कंडोम को इस तरह बाहर निकालें कि वीर्य उसी में रहे। कंडोम को टिशु या पैकेट में लपेट कर फैकें। उसे टॉयलट में मत डालें।

क्या महिला कंडोम का दोबारा उपयोग हो सकता है?
  • नहीं इसका दोबारा उपयोग नहीं करना चाहिए।

महिला कंडोम से क्या हानियां हो सकती हैं?
इसके उपयोग से निम्नलिखित हानियां देखने को आई हैं -
  • क्योंकि बाहरी रिंग योनि से बाहर रहता है तो कुछ कुछ औरतों का ध्यान उसी में रहता है।
  • सम्भोग के समय आवाजें कर सकता है। अधिक चिकनाई से यह सम्स्या हल हो सकती है।
  • कुछ महिलाओं को इसे लगाना और हटाना बड़ा कठिन लगता है।
  • गोली जैसे अनवरोधक की अपेक्षा इसकी असफलता दर कुछ ऊंची है।
क्या एक ही समय महिला कंडोम और पुरूष कंडोम दोनो का उपयोग किया जा सकता है?
  • एक एक समय में दोनो प्रकार के कंडोम का उपयोग नहीं करना चाहिए। साथ-साथ उपयोग करने से रगड़ लगने पर कोई एक या दोनों ही फिसल सकते हैं या फट सकते हैं या बाहरी रिंग को हिलाकर योनि में डाल सकते हैं।

डैंड्रफ की प्रॉब्लम व समाधान


डैंड्रफ की प्रॉब्लम हममें से कई को सताती है। इससे जहां बालों की खूबसूरती खराब होती है, वहीं सिर में इंफेक्शन भी हो सकता है। कई लोग डैंड्रफ की प्रॉब्लम से पीडि़त होते हैं। दरअसल, डैंड्रफ बैक्टीरिया और फंगस से होने वाले इंफेक्शन से होता है। यूं तो इसके होने के पीछे कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में खराब क्वॉलिटी का शैंपू, सोप, जिंक की कमी, न्यूट्रिशन की कमी और फंगस की वजह से डैंड्रफ की प्रॉब्लम होती है। दरअसल, जब सिर की स्किन ड्राई हो जाती है, तो उस पर डैंड्रफ बनने लगता है। आइए जानते हैं, इससे बचने के कुछ टिप्स:  

  • अपने बालों में नियमित रूप से तेल लगाएं। इससे बालों की जड़ें भी मजबूत होंगी। खासतौर पर ऑलिव ऑयल से मसाज करना आपके लिए बेहद फायदेमंद रहेगा। 
  • धूप सेंकना भी ड्रैंड्रफ का अच्छा इलाज है। इससे डैंड्रफ पर काबू पाने में मदद मिलेगी। 
  • दही, लाइम जूस और आंवला का मिक्सचर बनाकर बालों में मसाज करें। इससे डैंड्रफ के साथ-साथ बाल झड़ने से भी राहत मिलेगी। 
  • बाल धोते समय लास्ट रिंज में फ्रेश लाइम जूस यूज करें। इससे डैंड्रफ दूर होंगे और बालों में मजबूती आएगी। 
  • पूरी रात मैथी के बीजों को भिगोएं। इसका पेस्ट बनाकर सिर की स्किन पर लगाएं। 45 मिनट तक लगाने के बाद इसे शिकाकाई और रीठा की मदद से धो दें। सिर में डैंड्रफ की प्रॉब्लम से काफी हद तक छुटकारा मिल जाएगा। 
  • बालों में नारियल का तेल गर्म करके लगाना भी डैंड्रफ का बहुत अच्छा इलाज है। इससे बालों में मजबूती आती है और डैंड्रफ दूर भागते हैं।

पॉश्चर की अहमियत

चलते, उठते, बैठते हुए हमारे शरीर की मुद्रा यानी हाव-भाव पॉश्चर कहलाता है। ऐसा पॉश्चर, जिसमें मसल्स का इस्तेमाल बैलेंस्ड तरीके से हो, सबसे सही माना जाता है। मसलन अगर हम खड़े हैं तो यह जरूरी है कि हमारा सिर, धड़ और टांगे, तीनों एक सीध में एक के ऊपर एक हों। इससे शरीर के किसी भी हिस्से पर ज्यादा दबाव नहीं होगा। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर कुछ ईंटें एक के ऊपर रखी हैं तो उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं होगी, जबकि अगर वे टेढ़े-मेढ़े ढंग से रखी गई हैं तो उन्हें सहारे की जरूरत पड़ती है। कमर या कंधे झुके हों या हिप्स (नितंब) पीछे को निकलें हों या फिर सीना बहुत ज्यादा आगे को निकला हो, यानी जिस पॉश्चर में मसल्स का सही इस्तेमाल नहीं होता, उसे खराब पॉश्चर कहा जाता है। 

जब हम शरीर को साइड से देखते हैं तो हमें तीन कर्व नजर आते हैं। पहला गर्दन के पीछे, दूसरा कमर के ऊपरी हिस्से में और तीसरा लोअर बैक में। पहला और तीसरा कर्व उलटे सी (c) की तरह नजर आते हैं, जबकि दूसरा कर्व सीधा सी (c) होता है। दूसरे कर्व में ज्यादा मूवमेंट नहीं होता, इसलिए उसमें दिक्कत भी कम ही आती है, जबकि पहला और तीसरा कर्व सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस/ स्पॉन्डिलोसिस और कमर दर्द की वजह बन सकता है। इसी तरह, हम इंसानों में रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) का रोल काफी ज्यादा होता है। मूवमेंट के साथ-साथ वजन उठाने का भी काम करती है हमारी रीढ़। इसी रीढ़ में होते हैं 24 वटिर्ब्रा, जिनके बीच में शॉक ऑब्जर्वर होते हैं, जो डिस्क कहलाते हैं। हमारे शरीर का वजन डिस्क के बीच से जाना चाहिए लेकिन जब यह साइड से जाने लगता है तो दर्द शुरू हो जाता है। लेकिन अगर हम पॉश्चर पर ध्यान दें, तो इस तरह की परेशानियों से काफी हद तक बचा जा सकता है। 

सही पॉश्चर की खासियत 
  • सही पॉश्चर वह है, जिसमें हमारी मसल्स की लंबाई नॉर्मल हो यानी किसी मसल को न तो जबरन खींचा जाए और न ही उसे ढीला छोड़ा जाए। अगर कोई लगातार गर्दन को झुकाकर बैठता है तो गर्दन में दर्द हो सकता है। यहां तक कि कई बार अडेप्टिव शॉर्टनिंग यानी आगे की मसल्स छोटी हो जाती हैं। तब स्ट्रेचिंग कर मसल्स को नॉर्मल किया जाता है। हमारे यहां अक्सर लड़कियां झुककर चलती हैं। वैसे, कई लोग सही पॉश्चर का मतलब मिलिट्री पॉश्चर से लगा लेते हैं, जिसमें कंधों और गर्दन को बहुत ज्यादा पीछे खींचा जाता है। यह सही नहीं है। इसमें रीढ़ की हड्डी के पीछे वाले भागों पर ज्यादा प्रेशर आ जाता है। साइड से देखें तो कान, कंधे, हिप्स और टखने से थोड़ा आगे का हिस्सा अगर एक लाइन में आते हैं तो अच्छा पॉश्चर बनता है। सामने से देखें तो सिर सामने ऊपर की ओर, ठोड़ी फर्श के लेवल में, सीना सामने की ओर, कंधे आराम की मुद्रा में और पेट का निचला हिस्सा सपाट हो तो अच्छा पॉश्चर कहा जाएगा। 
कैसे-कैसे पॉश्चर 
  • स्वे बैक पॉश्चर: पैरों के ऊपर, कमर सीधी होने के बजाय पीछे की ओर झुकी होती है। 
  • मिलिट्री पॉश्चर: दोनों कंधे पीछे की तरफ, सीना बाहर निकला हुआ। 
  • हाइपर लॉडोर्टिक पॉश्चर: प्रेग्नेंट महिलाओं या बहुत मोटे लोगों का ऐसा पॉश्चर होता है। इसमें तोंद बहुत बड़ी और कमर काफी अंदर की तरफ होती है। 
  • काइसोटिक पॉश्चर: इसमें कमर का ऊपरी हिस्सा थोड़ा बाहर (कूबड़) निकल जाता है। टीबी के मरीजों और जवान लड़के व लड़कियों में होता है। 
  • स्कोल्योटिक पॉश्चर: वर्टिब्रा सीधी होने के बजाय साइड को मुड़ जाती है। यह पॉश्चर काफी कॉमन होता है। 
गलत पॉश्चर की वजहें 
  • एनकायलोसिस (जोड़ों में जकड़न), स्पॉन्डिलोसिस (गर्दन में दर्द), कमर का टेढ़ापन, रिकेट्स, ऑस्टियोपोरॉसिस या पोलियो जैसी बीमारियां। 
  • हड्डियों में पैदाइशी विकार। 
  • स्पाइनल कोड में विकार। 
  • आनुवांशिक कारण। 
  • झुककर चलने की आदत, खासकर लड़कियों में। 
  • घंटों एक ही जगह बैठकर कंप्यूटर पर काम करना। 
  • डेंटिस्ट, सर्जन आदि का लंबे समय तक झुककर काम करना। 
  • उलटे-सीधे तरीके से लेटकर टीवी देखना। 
  • कंधे और कान के बीच फोन लगाकर एक ओर सिर झुकाकर लंबी बातें करना। 
  • किचन में नीचे स्लैब पर काम करना। 
  • प्रेस करते हुए पॉश्चर का ध्यान न रखना। 
  • प्रेग्नेंसी में स्पाइन का पीछे जाना, जिसे लॉडोर्स कहते हैं। 
  • बढ़ती उम्र के साथ आमतौर पर शरीर कुछ झुक जाता है। 
  • आरामतलबी और रिलैक्स के नाम पर गलत पॉश्चर अपनाना। 

गलत पॉश्चर से नुकसान 
  • गर्दन और कमर संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं, मसलन सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस/स्पॉन्डिलोसिस या कमर दर्द आदि। 
  • डिस्क प्रोलेप्स या डिस्क से जुड़ी दूसरी बीमारियां हो सकती हैं। 
  • जॉइंट्स में टूट-फूट यानी ऑर्थराइटिस हो सकता है। 
  • थकने की वजह से मसल्स अपना पूरा काम नहीं कर पाएंगी। 
  • मांसपेशियों में गांठें या सूजन आ जाती है। 
  • महिलाओं को किचन में काम करने की वजह से कंधों और कमर में दर्द जल्दी हो सकता है। 
  • रिपिटेड स्ट्रेस इंजरी हो सकती है, यानी किसी एक ही अंग के ज्यादा इस्तेमाल से उसमें दिक्कत आ सकती है। 

सही पॉश्चर के फायदे 
  • रीढ़ के जोड़ों को एक साथ जोड़े रखनेवाले लिगामेंट्स पर प्रेशर कम होता है। 
  • रीढ़ को किसी असामान्य स्थिति में फिक्स होने से बचाता है। 
  • मसल्स का सही इस्तेमाल होने से थकान नहीं होगी। 
  • कमर दर्द और जोड़ों के दर्द की आशंका कम होती है। 
  • देखने में व्यक्ति ज्यादा आकर्षक लगता है। 

सही पॉश्चर के लिए क्या जरूरी 
  • सही पॉश्चर के लिए मसल्स में अच्छी लचक, जोड़ों में सामान्य मोशन, र्नव्स का सही होना, रीढ़ के दोनों तरफ की मसल्स पावर का बैलेंस्ड होना जरूरी है। साथ ही, हमें अपने पॉश्चर की जानकारी भी होनी चाहिए और सही पॉश्चर क्या है, यह भी मालूम होना चाहिए। थोड़ा ध्यान देने और थोड़ी प्रैक्टिस के बाद गलत पॉश्चर को सुधारा जा सकता है। 
खड़े होने या चलने का सही तरीका 
  • सिर सामने ऊपर की ओर, ठोड़ी फर्श के लेवल में, सीना सामने की ओर, कंधे आराम की मुद्रा में और पेट का निचला हिस्सा सपाट हो। 
  • सिर या कंधों को पीछे, आगे या साइड में न झुकाएं। 
  • कंधे झुकाकर न चलें, न ही शरीर को जबरन तानें। 
  • कानों के लोब्स कंधों के मिडल के साथ एक लाइन में आएं। 
  • कंधों को पीछे की तरफ रखें, घुटनों को सीधा रखें और बैक को भी सीधा रखें। 
  • जमीन पर अपने पंजों को सपाट रखें। पंजे उचकाकर न चलें। 
  • एक पैर पर न खड़े हों। 
  • खड़े होते हुए दोनों पैरों के बीच में थोड़ा अंतर रखें। इससे पकड़ सही रहती है। 
  • चलते हुए पहले एड़ी रखें और फिर पूरा पंजा। पैरों को पटक कर या घुमाकर न चलें। 
  • चलते समय बहुत ज्यादा न हिलें। 

बैठने का सही तरीका 
  • सबसे पहले सही कुर्सी का चुनाव करें। यह पॉश्चर के लिए काफी अहम हैं। ऑफिस में कुसीर् को अपने मुताबिक एडजस्ट कर लें। हो सके तो अपने पॉश्चर के अनुसार कुर्सी तैयार कराएं। ध्यान रखें कि कुसीर् की सीट इतनी बड़ी हो कि बैठने के बाद घुटने और सीट के बीच बस तीन-चार इंच की दूरी हो, यानी सीट चौड़ी हो। बैठते हुए पूरी थाइज को सपोर्ट मिलना चाहिए। हैंड रेस्ट एल्बो लेवल पर होना चाहिए। बैक रेस्ट 10 डिग्री पीछे की तरफ झुका हो। 
  • कमर को सीधा रखकर और कंधों को पीछे की ओर खींचकर बैठें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अकड़कर बैठें। कमर को हल्का-सा कर्व देकर बैठें। कुसीर् पर बैठते हुए ध्यान रहे कि कमर सीधी हो, कंधे पीछे को हों और हिप्स कुसीर् की पीठ से सटे हों। 
  • बैक के तीनों नॉर्मल कर्व बने रहने चाहिए। एक छोटा तौलिया भी लोअर बैक के पीछे रख सकते हैं या फिर लंबर रोल का इस्तेमाल कर सकते हैं। 
  • अपने घुटनों को सही एंगल पर झुकाएं। घुटनों को क्रॉस करके न बैठें। बैठते हुए घुटने या तो हिप्स की सीध में हों या थोड़ा ऊपर हों। पैरों के नीचे छह इंच ऊंचा स्टूल भी रख सकते हैं। 
  • बैठकर जब उठें तो कमर को आगे की तरफ झुकाएं, पैरों को पीछे की तरफ लेकर जाएं। ऐसा करने पर पंजे, घुटने और सिर जब एक लाइन में आ जाएं तो उठें। 
कंप्यूटर पर काम करते हुए 
  • कंप्यूटर पर काम करते वक्त कुर्सी की ऊंचाई इतनी रखें कि स्क्रीन पर देखने के लिए झुकना न पड़े और न ही गर्दन को जबरन ऊपर उठाना पड़े। कुहनी और हाथ कुर्सी पर रखें। इससे कंधे रिलैक्स रहेंगे। 
  • कुर्सी के पीछे तक बैठें। खुद को ऊपर की तरफ तानें और अपनी कमर के कर्व को जितना मुमकिन हो, उभारें। कुछ सेकंड के लिए रोकें। अब पोजिशन को थोड़ा रिलैक्स करें। यह एक अच्छा सिटिंग पॉश्चर होगा। अपने शरीर का भार दोनों हिप्स पर बराबर बनाए रखें। 
  • डेस्कटॉप उस पर काम करनेवाले व्यक्ति के मुताबिक तैयार होना चाहिए। कुसीर् ऐसी हो, जो लोअर बैक को सपोर्ट करे। पैरों के नीचे सपोर्ट के लिए छोटा स्टूल या चौकी रखें। 
  • किसी भी पॉजिशन में 30 मिनट से ज्यादा लगातार न बैठें। बैठकर काम करते हुए या पढ़ते हुए हर घंटे के बाद पांच मिनट का ब्रेक लेना चाहिए। दो घंटे के बाद तो जरूर ब्रेक लें। 
  • रोजाना गर्दन की एक्सरसाइज करें। ब्यौरा नीचे देखें। 
  • घूमने वाली कुर्सी पर बैठे हैं तो कमर को घुमाने की बजाय पूरे शरीर को घुमाएं। 

ड्राइव करते हुए सही पॉश्चर 
  • कमर के नीचे वाले हिस्से में सपोर्ट के लिए एक बैक सपोर्ट (छोटा तौलिया या लंबर रोल) रखें। 
  • घुटने हिप्स के बराबर या थोड़े ऊंचे हों। 
  • सीट को स्टेयरिंग के पास रखें ताकि बैक के कर्व को सपोर्ट मिल सके। 
  • इतना लेग-बूट स्पेस जरूर हो, जिसमें आराम से घुटने मुड़ सकें और पैर पैडल पर आराम से पहुंच सकें। 

सोने का सही तरीका 
  • ऐसी पोजिशन में सोने की कोशिश करें, जिसमें आपकी बैक का नेचरल कर्व बना रहे। पीठ के बल सोएं, तो घुटनों के नीचे पतला तकिया या हल्का तौलिया रख लें। जिनकी कमर में दर्द है, वे जरूर ऐसा करें। 
  • घुटनों को हल्का मोड़कर साइड से भी सो सकते हैं लेकिन ध्यान रखें कि घुटने इतने न मोड़ें कि वे सीने से लग जाएं। 
  • पेट के बल सोने से बचना चाहिए। इसका असर पाचन पर पड़ता है। साथ ही, कमर में दर्द और अकड़न की आशंका भी बढ़ती है। कमर दर्द है तो पेट के बल बिल्कुल नहीं सोना चाहिए। 
  • कभी भी बेड से सीधे न उठें। पहले साइड में करवट लें, फिर बैठें और उसके बाद उठें। 

गद्दा और तकिया 
  • गद्दा सख्त होना चाहिए। कॉयर का गद्दा सबसे अच्छा है। रुई का गद्दा भी इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि उसमें स्पंज इफेक्ट बचा हो। ऐसा न हो कि वह 10-12 साल पुराना हो और पूरी तरह चपटा हो गया हो। जमीन पर सोने से बचना चाहिए, क्योंकि सपाट और सख्त जमीन पर सोने से रीढ़ के कर्व पर प्रेशर पड़ता है। 
  • बहुत ऊंचा तकिया लेने या तकिया बिल्कुल न लेने से पॉश्चर में प्रॉब्लम हो सकती है, खासकर उन लोगों को, जिनकी मसल्स कमजोर हैं। अगर आप सीधा सोते हैं तो बिल्कुल पतला तकिया ले सकते हैं। करवट से सोते हैं तो 2-3 इंच मोटाई का नॉर्मल तकिया लें। तकिया बहुत सॉफ्ट या हार्ड नहीं होना चाहिए। फाइबर या कॉटन, कोई भी तकिया ले सकते हैं। ध्यान रहे कि कॉटन अच्छी तरह से धुना गया हो और उसमें नरमी बाकी हो। तकिया इस तरह लगाएं कि कॉन्टैक्ट स्पेस काफी ज्यादा हो और कंधे व कान के बीच के एरिया को सपोर्ट मिले। कंधों को तकिया के ऊपर नहीं रखना चाहिए। जिनकी गर्दन में दर्द है, उन्हें भी पतला तकिया लगाना चाहिए। 

एक्सरसाइज और योग 
  • कमर की मांसपेशियां कमजोर हों तो पॉश्चर गड़बड़ हो जाता है। ऐसे में हम कमर को झुकाकर चलने लगते हैं। हमें लगता है कि इससे आराम मिल रहा है लेकिन इससे हमारी जीवनी शक्ति और प्राणऊर्जा बाधित हो जाती है यानी हमारी सेहत जितनी बेहतर होनी चाहिए, उतनी नहीं होती। झुककर चलने या बैठने से निराशा भी आती है। ऐसे में ध्यान देकर अपना पॉश्चर सुधारना जरूरी है। इसके लिए नीचे लिखी एक्सरसाइज और आसन फायदेमंद हैं : 
  • जो लोग डेस्क जॉब में हैं, उन्हें रस्सी कूदना, सीढि़यां चढ़ना-उतरना, वॉकिंग, जॉगिंग, दौड़ना, स्विमिंग, साइक्लिंग, आदि करना चाहिए। इससे शरीर में लचक बनी रहेगी। ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सरसाइज करते रहना चाहिए। 
  • रोजाना स्ट्रेचिंग करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। कमर और पेट को मजबूती देने वाली एक्सरसाइज करें। 
  • ताड़ासन, अर्धचक्रासन, कटिचक्रासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन, अर्धनौकासन, मकरासन, बिलावासन, ऊष्ट्रासन, पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन आदि करें। ये आसन इसी क्रम से किए जाएं तो ज्यादा फायदा होगा। 
  • गर्दन को मजबूत बनानेवाली सूक्ष्म क्रियाएं करें। सिर को पूरा गोल घुमाएं। एक बार राइट से लेफ्ट और फिर लेफ्ट से राइट को गर्दन घुमाएं। गर्दन को ऊपर-नीचे भी करें। कंधों को गोल-गोल घुमाएं। 
  • हफ्ते में कम-से-कम चार-पांच दिन 40 मिनट में 4 किमी वॉक करें। 
ऐसे अपनाएं सही पॉश्चर 
  • अपने पॉश्चर पर ध्यान दें। थोड़े दिन गौर करना पड़ेगा। बाद में आपको खुद-ब-खुद सही पॉश्चर की आदत बन जाएगी। जितना ध्यान देंगे, उतना जल्दी पॉश्चर सुधरेगा। 
  • जहां-जहां आप जाते हैं, मसलन अपने कमरे में, किचन में, ऑफिस में, टायलेट आदि वहां 'कमर सीधी' या 'बैक स्ट्रेट' लिखकर दीवार पर चिपका लें। 
  • जो लोग आगे झुककर चलते हैं, वे वॉक करते हुए, हर 10 मिनट में तीन-चार मिनट के लिए अपने हाथों को पीछे बांध लें। इससे पॉश्चर सीधा होता है। 
  • स्कूली बच्चे एक कंधे पर बैग टांगने के बजाय दोनों कंधों पर बदलते रहें। लैपटॉप बैग या पर्स भी बदलते रहें। कोशिश करें कि पिट्ठू बैग लें। 
  • कोई भी चीज उठाने के लिए कमर से न झुकें, बल्कि घुटने के बल बैठें और फिर चीज उठाएं। 
  • किचन में स्लैब की ऊंचाई इतनी हो कि झुककर काम न करना पड़े। 
  • बेड पर लेटकर पढ़ने के बजाय कुर्सी-मेज पर पढ़ें। 
  • बेड पर आधे लेटकर टीवी न देखें। सही तरीके से बैठें या थक गए हैं तो पूरा लेटकर टीवी देखें। 
  • वजन न बढ़ने दें। जिनकी तोंद है, वे खासतौर पर सावधानी बरतें। 
  • पोंछा लगाते हुए और कपड़े प्रेस करते हुए ध्यान रखें और उलटी-सीधी दिशा में झुके नहीं। 
  • अगर लंबे वक्त से खड़े हैं तो कुछ-कुछ देर बाद पोजिशन बदलें। वजन एक पैर से दूसरे पैर पर डालें। इससे पैरों को आराम मिलता है। 
  • 50-55 साल के बाद महिलाओं की हड्डियां कमजोर हो जाती है। उन्हें रोजाना आधा घंटा सूरज की रोशनी में बैठना चाहिए। इसके अलावा, बोन डेक्सा स्कैन कराकर हड्डियों की सघनता जांच लें। अगर जरूरत पड़े तो डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम ले सकती हैं। 

कैसे पहचानें पॉश्चर 
  • बैठने पर: चौकड़ी मारकर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। जब हमारी कलाई (जहां घड़ी बांधते हैं) घुटने के लेवल पर आती है तो पॉश्चर ठीक है। ध्यान रखें कि घुटने सीधे हों। 
  • खड़े होने पर: रोजाना एक मिनट तक शीशे के सामने सीधे खड़े हों। ध्यान रखें कि ठोड़ी शरीर से आगे न निकली हो और दोनों कंधे एक लेवल पर हों। पेट भी सीधा-सपाट हो। कमर किसी तरह झुकी न हो। 
ऐसे सुधारें पॉश्चर 
  • जो लोग डेस्क जॉब ज्यादा करते हैं, वे रोजाना सुबह 2-3 मिनट के लिए दीवार के सहारे सटकर खड़े हो जाएं। सिर, दोनों कंधे, हिप्स और एड़ी (एक-आध इंच आगे भी हो, तो चलेगा) दीवार के सहारे लगकर खड़े हो जाएं। रोजाना 2-3 मिनट प्रैक्टिस करने से पॉश्चर ठीक हो सकता है। 
पॉश्चर का कमाल 
  • आप कैसे चलते हैं, कैसे बैठते हैं, ये बातें आपकी पर्सनैलिटी पर असर डालती हैं, यह सभी जानते हैं लेकिन हाल में एक रिसर्च में यह बात और पुख्ता हुई है। इलिनोइस (अमेरिका) में नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवसिर्टी में हुई इस रिसर्च में 76 स्टूडेंट्स में से आधों को हाथ बांधकर, कंधे झुकाकर और पैर मिलाकर बैठने को कहा गया, जबकि बाकी को पैर फैलाकर और हाथ बाहर की ओर खोलकर बैठने को कहा गया। बंधे हुए पॉश्चर में बैठे लोगों ने हर टास्क में कम नंबर पाए, जबकि दूसरों ने अच्छा परफॉर्म किया। यानी रिसर्च साबित करती है कि अच्छा पॉश्चर कॉन्फिडेंस बढ़ाता है।

घरेलू नुस्खें अपनाये बदहजमी को बाय बाय कहें

बदहजमी की तमाम वजहें हो सकती हैं। ओवरइटिंग, खाने को सही तरीके से नहीं चबाना, खाना सही तरह से पका न होना या फिर एक्सरसाइज न करना। इन घरेलू नुस्खों को अपनाकर आप भी अपच से छुटकारा पा सकते हैं।  

  • एक चम्मच अजवाइन के साथ नमक मिलाकर खाने से बदहजमी से तुरंत छुटकारा मिलता है।
  • एक गिलास पानी में पुदीने के रस की दो-तीन बंूदे डालकर हर तीन-चार घंटे के अंतराल पर पीएं।
  • एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच नींबू और अदरक का रस मिला लें। साथ ही दो छोटे चम्मच शहद भी मिला ले, इसे पीने से फायदा होगा और अपच की परेशानी दूर होगी।
  • अगर एसिडिटी से पीडि़त हैं, तो एक गिलास में थोड़ा लेमन जूस मिक्स कर खाने से पहले पीएं।
  • अगर चाय पीने नहीं छोड़ सकते, तो हर्बल चाय हमेशा आपको फायदा देगी।
  • तुरंत राहत के लिए एक गिलास पानी में खाने का सोडा मिलाकर पीएं।
  • आधे कप सोया ऑयल में लहसुन के तेल की दो-तीन बूंदे मिलाकर पेट की मसाज कर सकते हैं।
  • पूरा दिन में तीन भारी मील खाने से बेहतर है दिन 5 छोटे मील लेना। इससे डाइजेस्टिव सिस्टम पर ज्यादा प्रेशर नहीं पड़ेगा।
  • कॉफी, अलकोहल और स्मोकिंग की मात्रा न बढ़ने दें। इनसे इनडाइजेशन बढ़ता है।
  • बहुत ज्यादा टाइट जींस और कपड़े पहनने से भी दिक्कत हो सकती है।
  • डिनर सोने से कम से कम दो-तीन घंटे पहले कर लें।

एक्सपर्ट की सलाह

अक्सर न्यूज पेपर व मैग्जीन में पढ़ने को मिलता है कि सर्दियों में बॉडी के ओपन पार्ट्स पर सनस्क्रीन लगाना जरूरी होता है। क्या यह सही है?
डॉली

बिल्कुल इस मौसम में भी बॉडी के ओपन पार्ट्स पर सनस्क्रीन लगाना जरूरी होता है। दरअसल, इन दिनों में भी सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणें उतनी ही नुकसानदेह होती हैं, जितनी गर्मियों में।

मैं 20 वर्ष की स्टूडेंट हूं। बहुत ज्यादा पिंपल्स होने से मेरे चेहरे पर दाग हो गए हैं। कोई घरेलू उपाय बताएं, ताकि मैं इन्हें पूरी तरह दूर कर सकूं।
ललिता
कई बार छील देने से पिंपल्स चेहरे पर दाग छोड़ जाते हैं। इसे दूर करने के लिए आप घर पर ही स्क्रब तैयार कर सकती हैं। इसके लिए एक चम्मच चोकर, एक चम्मच चंदन पाउडर में पाइन एपल जूस और रोज वाटर आधा-आधा मिलाकर पेस्ट बना लें। इसे पांच मिनट तक चेहरे पर हल्के हाथों से मलें। पांच मिनट बाद साफ पानी से चेहरा धो लें। इससे काफी हद तक पिंपल्स के निशान ठीक हो जाते हैं। लेकिन पिंपल्स की वजह से यदि चेहरे पर गड्ढे हो गए हैं, तो किसी कॉस्मेटिक क्लीनिक से लेजर, एएचए और यंग स्किन मास्क की सिटिंग्स लें। दिन में बाहर निकलने से पहले चेहरे पर सनस्क्रीन क्रीम लगाना न भूलें। रात को सोने से पहले निशानों और गड्ढों पर एएचए युक्त सीरम लगा लें।

मैं 28 वर्षीय हाउस वाइफ हूं। सब्जी काटते समय चाकू से उंगलियों में दरारें बन जाती हैं। इससे हाथ गंदे और खुरदरे हो जाते हैं। इन्हें दूर करने का कोई तरीका बताएं।
सविता
सब्जी काटने के लिए अगर आप लोहे के चाकू का इस्तेमाल करती हैं, तो सबसे पहले इसे बदलें। इसकी जगह स्टील वाला चाकू यूज करें। जैतून के तेल से हाथों की मालिश करें, फिर इन्हें दो से पांच मिनट तक नमक मिले पानी में भिगोकर रखंे। एक कटोरी में नीबू, चीनी और मलाई मिक्स कर लें। इस मिक्सचर को हाथों पर दो से चार मिनट मलें। इसके बाद हाथों को धोकर हैंड क्रीम से मालिश करें। किसी अच्छे ब्यूटी क्लीनिक से मेनिक्योर करवाना भी ठीक रहेगा।

मैं 24 वर्ष की हूं। मेरी आंखों के नीचे झुर्रियां नजर आने लगी हैं। इनसे बचने का कोई उपाय बताएं ?
सुहाना
आंखों के नीचे की स्किन बहुत नाजुक होती है। बार - बार रगड़ने से भी यह लूज हो जाती है। बादाम के तेल से हल्के हाथों से इस एरिया की तकरीबन 5 से 8 मिनट मसाज करें। रात को सोने के पहले एएचए युक्त क्रीम से भी आंखों के नीचे मालिश करना फायदेमंद रहेगा। धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन लोशन लगाना न भूलें। सनग्लासेज का इस्तेमाल भी बेहतर रहेगा। अगर तुरंत रिजल्ट चाहती हैं , तो अच्छे कॉस्मेटिक क्लीनिक से बायप्ट्रॉन और यंग स्किन मास्क की सिटिंग ले सकती हैं।